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Friday, October 7, 2016

‘नियंत्रण रेखा’ तो ठीक, घर के अंदर ‘सीमा रेखा’ क्यों?

‘नियंत्रण रेखा’ तो ठीक, घर के अंदर ‘सीमा रेखा’ क्यों?

इस तर्कपूर्ण निष्कर्ष के विरोध में दलगत राजनीति के पोषक, अनुसरणकर्ता विचारकों की पंक्ति खड़ी हो जाएगी। नियंत्रण रेखा से आगे बढ़ते हुए अगर यह कह दिया जाये कि सबूत मांगना भी गलत और सबूत नहीं देना भी गलत, तब तोज्ञानीविचारक शोर का ऐसा बवंडर खड़ा कर देंगे जिसमें से सुरक्षित सिर्फ कथितराष्ट्रभक्तही निकल पाएंगे। राष्ट्रीय संकट अथवा राष्ट्रीय आवश्यकता की घड़ी में जब पूरा देश एकजुट हो, देश की अखंडता, सार्वभौमिकता की रक्षार्थ कटिबद्ध हो, वितंडावाद के पोषक अपने घर में हीवाणीयुद्ध में व्यस्त हैं। इस शर्मनाक स्थिति से निकलने के लिए जरूरी है कि आलोच्य मुद्दे की तर्कसंगत विवेचना की जाये। बुद्धिमान भारत इसका आकांक्षी है।
यह स्वागत योग्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विषय की गंभीरता और समय की नजाकत  को देखते हुए अपने मंत्रियों को अति उत्साह दिखाते हुए उन्माद से बचने की सलाह दी है।सर्जिकल स्ट्राइकजैसे मुद्दे को लेकर राजनीति से परहेज करने की सलाह देकर प्रधानमंत्री ने निश्चय ही अपनी पार्टी के साथ-साथ विपक्षी दलों को भी संयम बरतने की सलाह दी है। देर से ही सही, प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा कर राजनीतिक परिपक्वता का उदाहरण दिया है लेकिन, सवाल यह कि ऐसी स्थिति पैदा ही क्यों हुई? या क्यों कर दी गई? दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन दिनों सत्तापक्ष के साथ-साथ अन्य दलों संगठनों के निशाने पर हैं। आरंभ में दिग्विजय सिंह द्वारा सबूत मांगने पर कांग्रेस को भी आड़े हाथों लिया गया था, किंतु दल की ओर से अधिकारिक रूप से इस घोषणा के बाद कि कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार के साथ है उसे बख्श दिया गया। किंतु, केजरीवाल को बख्शने केमूडमें कोई नहीं दिखता। आखिर केजरीवाल ने कहा तो क्या कहा? केजरीवाल नेसर्जिकल स्ट्राइकपर कोई संदेह व्यक्त नहीं किया है। उन्होंने इसके लिए मोदी सरकार की प्रशंसा भी की है। लेकिन, केजरीवाल चाहते हैं कि पाकिस्तान के इनकार और उसके द्वारा पूरी दुनिया में झूठ फैलाए जाने का पर्दाफाश करने के लिए जरूरी है कि सरकारसर्जिकल स्ट्राइकके सच के पक्ष में सबूत सार्वजनिक कर दे। अरविंद केजरीवाल संभवत: अपनी जगह गलत नहीं हंै। पाकिस्तान ने केवलसर्जिकल स्ट्राइकको झूठा बताया है कि बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया के प्रतिनिधियों को अपने कब्जेवाले कश्मीर में ले जाकर यह प्रमाणित करने की कोशिश की है कि कोईसर्जिकल स्ट्राइकनहीं हुई। ऐसे में पाकिस्तानी कुप्रचार को नंगा करने के लिए केजरीवाल की मांग तर्कहीन कैसे? इस बिंदु पर केजरीवाल के शब्दों को नहीं, उनकी भावनाओं को समझना होगा। अभिव्यक्ति एक कला है। इसमें पारंगत व्यक्ति ही मधुर-कटु शब्दों का इस्तेमाल कर बच निकलते हैं। इसकी बारीकी नहीं समझ पाने वाले उलझ जाते हैं। केजरीवाल के साथ भी ऐसा ही हुआ है। वे चाहते तो हंै कि पाकिस्तान के दुष्प्रचार का जवाब दिया जाये, किंतु उनकी अभिव्यक्ति कुछ ऐसी रही कि जैसे वेसर्जिकल स्ट्राइककी सच्चाई पर ही संदेह प्रकट करते हुए सबूत मांग रहे हों। हालांकि, केजरीवाल अपनी ओर से स्थिति साफ करने की कोशिश कर रहे हैं, किंतु लगता है विलंब हो चुका है। अब देश को यह समझाना उनके बूते का नहीं कि उनकी मंशा सरकार विरोधी नहीं है। लेकिन, मेरी व्यथा यह है कि देश की जनता को सच्चाई से अवगत कराने के जिम्मेदार मीडिया और अन्य विचारक केजरीवाल के शब्दों के अर्थ को अनर्थ की श्रेणी में क्यों खड़ा कर रहे हैं? राजनीतिज्ञों की राजनीति तो समझ में आती है, किंतु विचारकों के विचार पर दलगत राजनीति का साया क्यों? ऐसा नहीं होना चाहिए।
बात जब राजनीति की आती है तो आलोच्य प्रसंग में राजनीतिकों का आचरण देश की एकता तार-तार करने वाला है। हालांकि, स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने इस मामले में राजनीति से परहेज करने का सुझाव दिया है, किंतु प्रमाण मौजूद हैं कि ऐसे गौरवशाली कृत्यों का अपने हक में राजनीतिक इस्तेमाल समय-समय पर सत्तापक्ष करता आया है। भला उपलब्धियों को कोई सरकार अपने पक्ष में भुनाना क्यों नहीं चाहेगी? पाकिस्तानी हरकतों के जवाब में जब मोदी सरकार ने कड़े जवाबी कदम उठाये, तब सरकार और पार्टी इसे अपनी उपलब्धि बताने से चूकेगी कैसे? हां, इस पूरी कवायद में संयम और शालीनता का परित्याग नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री जब उन्माद से बचने की सलाह देते हंै तो इशारा इसी तरफ है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के अलावा कांग्रेस के संजय निरुपम पर शाब्दिक आक्रमण के दौरान सत्तापक्ष की ओर से जिस प्रकार से अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किया गया, उसकी भी भत्र्सना की जानी चाहिए। सत्ता पक्ष की ओर जहां ऐसी कार्रवाई के उद्देश्य और उपलब्धियों को चिन्हित किया जाना चाहिए था, उसकी जगह स्वयं कुछ मंत्रियों ने प्रधानमंत्री की सलाह के ठीक विपरीत उन्माद फैलाने की कोशिश की। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की टिप्पणी किसर्जिकल स्ट्राइकके बाद पाकिस्तान बेहोशी में है और भारतीय सेना हनुमान की तरह अपनी शक्ति को पहचान जाग गई है, शालीनता से दूर दिखती है। इसी प्रकार कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की टिप्पणी कि सरकार और सेना पर सवाल उठाने वाले पाकिस्तान के साथ हैं, आपत्तिजनक है। पाकिस्तान के झूठे प्रचार को पर्दाफाश करने के लिए सबूत की मांग करने वाले पाकिस्तानी कैसे हो सकते हैं? प्रधानमंत्री मोदी ने बिलकुल सही समय पर अपने मंत्रियों को संयम में रहते हुए अनावश्यक टिपण्णी करने से मना कर दिया है।
यह ठीक है कि पूर्व की कांग्रेस नेतृत्व की सरकार ने भी ऐसेसर्जिकल स्ट्राइकको अंजाम दिया था, किंतु उन्होंने सार्वजनिक नहीं किया। कारण रणनीतिक गोपनीयता रही होगी। ताजा पहल और शोरगुल का पाश्र्व भिन्न है। राजनीतिक मजबूरी भी कह सकते हैं। मोदी सरकार को इसका लाभ भी मिला। 26 मई 2014 को सत्ता में आने के बाद संभवत: 27-28 सितंबर 2016 की सैन्य कार्रवाई एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर मोदी सरकार को राष्ट्रव्यापी भरपूर सकारात्मक समर्थन मिला। शायद इसी कारण बेचैन विपक्ष और मोदी-भाजपा विरोधियों ने प्रतिकूल वातावरण बनाने की कोशिश की थी। किंतु, अपनी संस्कृति और प्रकृति के अनुरुप भारत ने एकजुटता प्रदर्शित करते हुए सरकार के इस कदम का साथ दिया।
इस शोरगुल के बीच प्रधानमंत्री मोदी की परिपक्वता भी चिन्हित हुई। देश ने उनमें एक सुखद परिवर्तन देखा। अति उत्साही प्रधानमंत्री मोदी नेअति उत्साहसे पार्टी नेताओं को बचने की सलाह देकर यह चिन्हित कर दिया कि वे अब ताजा अर्जित अनुभव से निर्देशित हो रहे हैं। इसे मैं एक सकारात्मक परिवर्तन  के रूप में देखना चाहूंगा। मुद्दा आधारित टिप्पणी के प्रत्येक पक्षधर इस बिंदु पर प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन करेंगे। हां, यह चेतावनी अवश्य कि नियंत्रण रेखा पार कर सबक सिखाना तो ठीक किंतु अपने घर के अंदर सीमा रेखा खींचना गलत होगा। प्रधानमंत्री मोदी, उनकी पार्टी भाजपा और सलाहकारों को यह बात गांठ बांध लेनी चाहिए।


1 comment:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

लेकिन वर्तमान सरकार अच्छा काम कर रही है।