tag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post1526922046931191331..comments2023-09-26T19:57:38.188+05:30Comments on चीरफाड़: ... और हार गया भारत का 'दूसरा गांधी'!एस.एन. विनोद !http://www.blogger.com/profile/15928209423094784655noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-37245114531689009002009-01-17T14:14:00.000+05:302009-01-17T14:14:00.000+05:30माफ करें मगर इस तरह तो पत्रकारिता इंस्टीट्यूट से न...माफ करें मगर इस तरह तो पत्रकारिता इंस्टीट्यूट से निकला कोई स्टूडेंट<BR/> भी नहीं लिखेगा। अब समझ में आया अखबारों का स्तर दिन-ब-दिन गिरता क्यों जा रहा है।दिनेश श्रीनेतhttps://www.blogger.com/profile/15607120596999021572noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-85012346534079776562009-01-14T02:08:00.000+05:302009-01-14T02:08:00.000+05:30...और हार गया 'दूसरा गाँधी' ! शीर्षक पड़ते ही लगा ......और हार गया 'दूसरा गाँधी' ! शीर्षक पड़ते ही लगा की आप गाँधी नाम की आड़ लेकर अपने व्यंग बाणों से कोई सशक्त वक्तव्य देना चाहते हैं.... ! "कहीं पे निगाहें -कहीं पे निशाना " जैसा कुछ! लेकिन पड़ते पड़ते , पूरा लेख ख़त्म हो गया और कुछ ऐसा हाथ नही लगा कि जिसकी आस थी। आप वरिष्ट पत्रकार हैं अत: आपको अपने लिखे का महत्व अधिक समझ में आया होगा....! बाकी मेरे विचार तो मिहिर भाई से ही मेल खाते हैं, अत: मैं बहुत कुछ कहना चाह कर भी कुछ कह ना पाऊंगा ! वस्तुत: विचार अपने अपने , समझ अपनी अपनी !<BR/>" प्रथम गांधी की हत्या के बाद द्वितीय गांधी की पराजय पर रुदन तो होगा ही!" ....यह वाक्य मन को बहुत श्लील नही लगा ! यह आपके तथा-कथित दूसरे गाँधी कितने सरल-हृदयी हैं और कितने कुर्सी प्रेमी और कुटिल - यह तो अभी हाल में सभी ने देखा ही है ! आपकी 'गुरु-भक्ती' इसे नज़र अंदाज़ कर गयी हो तो कुछ कहा नही जा सकता !<BR/><BR/>बहरहाल, मुझे अन्यथा ना ले...यहाँ बात केवल मतान्तर की है !<BR/><BR/>शुभकामनायें !रोमेंद्र सागरhttps://www.blogger.com/profile/15893431216162497924noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-68694895074643942232009-01-12T14:01:00.000+05:302009-01-12T14:01:00.000+05:30कमल जी आप की तरह मैं भी पोस्ट से जस का तस् दे रहा ...कमल जी आप की तरह मैं भी पोस्ट से जस का तस् दे रहा हूँ, आप किसी को ये आरोपित नही कर सकते की हमने बिना पढ़े टिपिया दिया, कब से कम ब्लॉग पर अभी तक ऎसी परम्परा की शुरुआत नही हुई है जो अमूमन अखबारों में होता है कि शीर्षक और ख़बर का कोई सामंजस्य नही.<BR/><BR/>"उपचुनाव में मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की हार नहीं हुई है. हारा है भारत का 'दूसरा गांधी'! हारा है झारखंड के लाखों आदिवासियों का गुरु! हारा है झारखंड का शेर! हारा है झारखंड का जनक! और हारा है लाखों आदिवासी महिलाओं का वह आराध्य...."<BR/><BR/>नि:संदेह गुरु जी कि गाथा कहने कि कोशिश कि गयी है तत्कालीन सम्पादक के द्वारा जब गुरु जी का जय जय कार हुआ करता था, शायद ये लेख भी उसी जय जय कार का हिस्सा मात्र लगता है, जमीनी हकीकत तो सिर्फ़ ये कि गुरु जी कि हार यानी की लोक तंत्र की जीत.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-50342489745605682652009-01-09T16:37:00.000+05:302009-01-09T16:37:00.000+05:30टिप्पणी करने वाले सभी ध्यान से पढ़ें इस पोस्ट क...टिप्पणी करने वाले सभी ध्यान से पढ़ें इस पोस्ट को विनोद जी ने शिबू सोरेन को गांधी नहीं कहा है। उनकी पोस्ट से यह लाइन उठाकर जस की तस दे रहा हूं जिसे बेहद ध्यान से पढि़ए...जानकारी के लिए बता दूं कि ये वही शिबू सोरेन हैं, जिनके लिए 70 के दशक में तत्कालीन सोवियत संघ और चीन में लिखा गया था कि ''शिबू सोरेन भारत के दूसरे गांधी हैं.'' शिबू को यह तमगा तत्कालीन सोवियत संघ और चीन ने दिया, विनोद जी नहीं। विनोद जी की आलोचना से पहले यह तो पढ़ लो कि गांधी किसने कहा शिबू को।चलते चलतेhttps://www.blogger.com/profile/00891524525052861677noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-74665017956193116662009-01-09T12:04:00.001+05:302009-01-09T12:04:00.001+05:30वस्तुतः सिबू सोरेन की हार लोकतंत्र की जीत है.वस्तुतः सिबू सोरेन की हार लोकतंत्र की जीत है.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-45192617903176760362009-01-09T12:04:00.000+05:302009-01-09T12:04:00.000+05:30अगर गांधी जी ऐसे थे तो हम गांधी जी को राष्ट्रपिता ...अगर गांधी जी ऐसे थे तो हम गांधी जी को राष्ट्रपिता मानने से इनकार कर देंगे, मगर नही क्यौंकी हमें पता है हमारा राष्ट्रपिता त्याग और बलिदान की प्रतिमुर्ती कैसा था.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-62715724772778101162009-01-09T12:02:00.000+05:302009-01-09T12:02:00.000+05:30विनोद जी,आपकी पत्रकारिता संदेह के घेरे में आ चुकी ...विनोद जी,<BR/>आपकी पत्रकारिता संदेह के घेरे में आ चुकी है, <BR/>गुरु जी बनाम गांधी जी,<BR/>त्याग बनाम हत्यारा,<BR/>आपके लेख पर सिर्फ़ इतना कहना की कहीं ना कहीं गुरु जी के साथ आपकी सक्रियता और भागीदारी की बू आती है. पत्रकारिता को लांक्षित और कलंकित ना करें.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-50971382809658426342009-01-09T11:24:00.000+05:302009-01-09T11:24:00.000+05:30चलो जी पता तो चला कि गाँधी कैसे होते है?चलो जी पता तो चला कि गाँधी कैसे होते है?संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-74802310315938197392009-01-09T10:46:00.000+05:302009-01-09T10:46:00.000+05:30आप का नाम विनोद है सो हम ये माने लेते हैं कि आपने ...आप का नाम विनोद है सो हम ये माने लेते हैं कि आपने शिबू सोरेन को गांधी बता कर शायद कोई व्यंग्य विनोद ही किया होगा<BR/><BR/>वरना गांधी जी की शिबू सोरेन से तुलना करना उन्हें गाली देने के समान है.<BR/><BR/>वैसे पत्रकारों का क्या भरोसा, कल को शहाबुद्दीन और डीपी यादवों को भी गांधी बता डालें.Dr. Devang Mehtahttps://www.blogger.com/profile/11910524223461760278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-1627173436627879152009-01-09T01:40:00.000+05:302009-01-09T01:40:00.000+05:30एक बात और अर्ज करना चाहूंगा--गांधी ने हमेशा सत्ता ...एक बात और अर्ज करना चाहूंगा--<BR/>गांधी ने हमेशा सत्ता का त्याग किया...लेकिन सोरेन का कुर्सी से जो लगाव है वो जगजाहिर है!मिहिरhttps://www.blogger.com/profile/06839221691017909261noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-79132359765060798972009-01-09T01:30:00.000+05:302009-01-09T01:30:00.000+05:30हो सकता है आज के दौर में गांधी लफ्ज के खास मायने न...हो सकता है आज के दौर में गांधी लफ्ज के खास मायने नहीं रह गए हों...ये भी मुमकिन है कि गांधी अब बहसों , छब्बीस जनवरियों और पंद्रह अगस्तों तक ही सिमट कर रह गए हों..ये भी मुमकिन है कि मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म के बहाने ही सही एक बार फिर गांधी का क्रेज लौटा हो....ये भी संभव है कि गांधी की नीतियों में एक बड़ी आबादी यकीन नहीं करती...आजादी के आंदोलन में भी गांधी से ज्यादा नेताजी औऱ चंद्रशेखर आजाद का योगदान था---ऐसा कहने वालों की भी कमी नहीं...लेकिन मेरी अपनी निजी राय है...कि इन तमाम विरोधाभासों के बीच भी गांधी शब्द में एक जादू है...जिसका असर वक्त बीतने के बाद भी बरकरार है...गुस्ताखी माफ की अर्जी देते हुए बस इतना कहना चाहूंगा कि आप किसकी तुलना किससे कर रहे हैं...<BR/>दिशम गुरु से गांधी जी की कोई तुलना हो सकती है...ये सोचकर भी मैं हैरान हूं..आप बेहद वरिष्ठ पत्रकार हैं...मालूम है...प्रभात खबर के नाते रांची औऱ झारखंड की धड़कनों को भी आप दिल से महसूस कर सकते हैं ये भी पता है...लेकिन मेरा अपना नजरिया है औऱ कृपया इसको अन्यथा नहीं लीजिएगा---गांधी कभी हार नहीं मानता...जिसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद से हार नहीं मानी...वो भला टुच्ची सियासत में क्या हार मानेगा...लिहाजा सोरेन को सोरेन रहनें दे गांधी नहीं बनाएं...गांधी एक आंदोलन का नाम था-किसी व्यक्ति का नहीं...गांधी इतिहास में सिर्फ एक ही हुआ था...आगे दूसरा होगा कि नहीं कोई दावे से नहीं कह सकता....<BR/>आग्रह सिर्फ यही है कि गांधी को बख्श दीजिए...क्योंकि इससे बेहतर वो किताबों के पन्नों में ही सुरक्षित हैं जिन्हें अब भले ही कोई नहीं पढ़ता...जिन पर भले ही वक्त की गर्द जम गई हो...लेकिन कम से कम गांधी की गरिमा तो कम नहीं होती....<BR/>आदर के साथमिहिरhttps://www.blogger.com/profile/06839221691017909261noreply@blogger.com