tag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post2699496693846431248..comments2023-09-26T19:57:38.188+05:30Comments on चीरफाड़: झूठ के बोझ तले सिसकता सच!एस.एन. विनोद !http://www.blogger.com/profile/15928209423094784655noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-44802935558286252112009-11-02T00:31:47.960+05:302009-11-02T00:31:47.960+05:30श्रि एस,एन, विनोद जि,
धन्यवाद एक टिप्पणी के विषय प...श्रि एस,एन, विनोद जि,<br />धन्यवाद एक टिप्पणी के विषय पर ध्यान देने के लिए।<br />परन्तु एक एस,पी, दुबे की ही नही लाखो, करोडो लोगो की धारणा की पुष्टि होती जा रही है दिन प्रतिदिन, वर्तमान व्यवस्था मे जनसाधारण का विश्वास उठ चुका है हम यह अतिसयोक्ति मे नही होश मे लिख रहा हू यदि व्यवस्था को होश नही आया तो वह दिन दूर नही है जब जनता व्यवस्था अपने हाथ मे ले लेगी तो उस समय की अवस्था क्या होगी कल्पनाती परिणाम की कल्पना मे दिल दहल जाता है, जनसामान्य कभी समाप्त नही होता है और वयस्था अपनी दुर्गति को प्राप्त हो कर समाप्त हो जाती है, हो जायेगी, होगइ है इतिहास साक्षी है।SP Dubeyhttps://www.blogger.com/profile/17295823623260271131noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5804599932580301957.post-71042687329780828072009-11-01T16:13:37.125+05:302009-11-01T16:13:37.125+05:30झूठ के बोझ तले सिसकता ! वाकई एक गहरी पोस्ट है। गं...झूठ के बोझ तले सिसकता ! वाकई एक गहरी पोस्ट है। गंभीरता से देखे तो श्रीमती इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी काल में प्रेस का खूब दमन किया। उस समय अनेक छोटे बड़े अखबारों के साथ इंडियन एक्सप्रेस ने भी इसका जमकर विरोध किया। कुलदीप नैयर जी के अलावा और भी जिन पत्रकारों को परेशान किया गया, गिरफ्तार किया गया उसका विरोध हुआ। रामनाथ गोयनका जी तो अपनी धुरंधर पत्रकारिता के लिए जग विख्यात रहे और इमरजेंसी का उनकी प्रेस ने भी सबसे ज्यादा विरोध किया लेकिन लगता है शेखर गुप्ता जी के कार्यकाल में सब बदल गया है। जिस तरह अब महिमामंडन किया जा रहा है उससे रामनाथ गोयनका जी की आत्मा को तड़प उठी होगी कि मेरे पत्रकारिता के साम्राज्य में यह कौन संपादक आ गया। विनोद जी आप इंडियन एक्सप्रेस की इमरजेंसी के समय की भूमिका, उसके विरोध और रामनाथ गोयनका जी के बारे में अगली पोस्ट में जरुर लिखें ताकि लोग सच्चाई जान सकें। श्रीमती इंदिरा गांधी का देश की राजनीति में अहम योगदान रहा लेकिन उजले पहलूओं के बीच इमरजेंसी जैस काला पक्ष भी है जो कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि भारतीय प्रेस को अचानक 25 साल बाद इंदिरा गांधी प्रेम क्यों हो गया। आपने लिखा कि किसी के पास उत्तर नहीं है कि हम रजत जंयति मना रहे है क्या...। लगता है भावी हितों की खातिर अब कुछ प्रेस और पत्रकार समझौता तो नहीं कर रहे हैं और ये समझौते किसी भी हद तक के हो सकते हैं...जिनमें प्रधानमंत्री का प्रेस सलाहकार बनना या राज्यसभा में पहुंचना अथवा और भी कुछ हो।चलते चलतेhttps://www.blogger.com/profile/00891524525052861677noreply@blogger.com