दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों में 40 फीसदी भारतीय'
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से है, लेकिन यहां कुपोषित बच्चों की तादाद शर्मनाक रूप से बढ़ रही है. दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों में 40 फीसदी भारतीय हैं. यह संख्या अफ्रीका से भी ज्यादा है. यूनिसेफ की रिपोर्ट है कि देश के साढ़े 5 करोड़ बच्चे यानी 5 साल से कम उम्र के लगभग आधे भारतीय बच्चे कुपोषित हैं.
फंड में कटौती से बच्चों की जान पर बनी
नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से भारत की समाज कल्याण योजनाओं के फंड में काफी कटौती की गई है. लाखों बच्चों को खाना, साफ पानी और शिक्षा मुहैया कराने वाली इन योजनाओं के मद में कटौती करके सरकार सडक़, बंदरगाह और पुल बनाने पर खर्च बढ़ा रही है. लेकिन इन सडक़ों का इस्तेमाल करने लायक होने से पहले ही बच्चे जान से जा रहे हैं. मानवाधिकार आयोग ने पालघर में बच्चों की मौत को मानवाधिकारों का उल्लंघन माना है.
रंग लायेगा कुपोषण घोटाला
2014
के आंकड़ों के अनुसार 2 अरब लोग कुपोषित हैं पूरी दुनिया में
ऐसा ही नहीं कि डायरिया, निमोनिया और कुपोषण की चपेट में आने से अकेले श्योपुर जिले में ही मासूम बच्चे काल के गाल में समाये बल्कि इस मामले में भोपाल जिले में 587, बडवानी में 537, बैतूलमें332, विदिशा में 341, उज्जैन में 301, सतना में 346, मुरैना में 228, झाबुआ में 251, जबलपुर में 276, धार में 223, गुना में 207
यह आकंडा तो विधानसभा में दिये गये सरकारी आंकड़ा है लेकिन यह भी संभावना प्रबल दिखाई देती है कि उन सरकारी आंकड़ों से स्थिति कहीं अधिक हो सकती है, क्योंकि सरकार और राज्य शासन में बैठे अधिकारी तो अपनी जान बचाने के लिये सच्चाई छुपाने में लगे रहते है तो यह संभावनायें नजर आती है कि गैर सरकारी आंकडे भी सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक होगें। रावत के अनुसार श्योपुर में पिछले दो माह में 70 से अधिक बच्चों की मौत कुपोषण से हो चुकी है और हजारों बच्चे आज भी कुपोषण से पीडि़त है।
द्द रहीम खान
मध्य प्रदेश में यूं तो कुपोषण के नाम पर करोड़ों रुपये मुख्यमंत्रीजी शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान खर्च किए गए, लेकिन मजे की बात यह रही कि कर्ज के बोझ से दबे प्रदेश का खजाना खाली होने के बावजूद ना सिर्फ इतनी भारी भरकम राशि खर्च की गई, वरन अन्य सरकारी योजनाओं की तरह इसमें भी मुख्यमंत्री के चहेते अधिकारियों ने दिल खोलकर लूट खसोट का काम किया और उन्हें बच्चों और गर्भवती महिलाओं के निवाले को छीनने में जरा भी शर्म नहीं आई. यदि कुपोषण के मामले में की गई फर्जी कार्यवाहियों और इस मुद्दे पर किए गए खर्च की किसी निष्पक्ष एजेंसी से ईमानदारी से जांच करवाई जाए तो साफ हो जाएगा कि राज्य में मुख्यमंत्री की अच्छी मंशा को पलीता लगाने का काम जो मुख्यमंत्री के चहेते अधिकारियों और ठेकेदारों के रैकेट द्वारा वर्षो से किया जा रहा है और वे देश के विकास और उसकी समृद्धि की चिंता न करते हुए अपने हितों और लक्ष्मी दर्शन को ही सर्वाधिक वरीयता देते हैं. हालांकि, इस मुद्दे को लेकर राज्य के कांग्रेसी विधायक रामनिवास रावत ने मुख्यमंत्री चौहान को ब्यौरावार विवरण देते हुए एक लम्बी चौड़ी चिट्टी लिखी है. यह पत्र यह दर्शाता है कि मुख्यमंत्री के इर्दगिर्द और उनके चहेते उनकी आंखों के नूर अधिकारियों का जो काकस है, वह मुख्यमंत्री की छवि बनाने के बजाय उसमें पलीता लगाने में लगा हुआ है. हैरत इस पर अधिक है कि मुख्यमंत्री इस रैकेट का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे हैं. अब इसके पीछे क्या कारण हैं, इसको लेकर लोगों के बीच अपनी-अपनी चर्चाएं हैं, अपने-अपने कयास हंै. रावत ने अपने पत्र में बताया है कि उन्होंने एक अप्रैल, 2014 से जनवरी, 2016 तक प्रदेश के अन्य कुपोषित कुपोषण का दंश झेल रहे क्षेत्र के नहीं बल्कि अकेले श्योपुर जिले में छह वर्ष तक की आयु तक के 1160 और छह से 12 वर्ष तक के 120 को मिलाकर कुल 1280 बच्चों की मौत कुपोषण के कारण हुई हैै. जिले में किये गये सर्वे के अनुसार 80,918 बच्चों में से 19,724 बच्चे कुपोषित पाए गए. अकेले श्योपुर जिले में ही पिछले 152 दिनों में कुपोषण से 132 बच्चों की मौत हुई, यानि प्रतिदिन एक बच्चा कुपोषण के कारण काल के गाल में समाता रहा. रामनिवास रावत के अनुसार, यह स्थिति केवल श्योपुर की है, लेकिन उनके द्वारा लिखे गये अपने पत्र में जो पूरे प्रदेश का ब्यौरा दिया है, वह इस बात का प्रमाण है कि मुख्यमंत्री के चहेते अधिकारियों और ठेकेदारों के रैकेट के चलते इस प्रदेश में किस तरह से कुपोषण के नाम पर बेहिसाब गड़बड़झाला किया गया है और जिस कुपोषण के कलंक की चिंता से मुख्यमंत्री चितिंत है, उसे लेकर ही उनकी छवि को तार-तार किए जाने की साजिश रची गई है. यह बात और है कि इसके बावजूद मुख्यमंत्री उनकी छवि को दागदार करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही करने में असहाय हैं. इसको लेकर भी तरह तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं. रावत द्वारा दिए गए आंकड़े में सरकार द्वारा उनके 18 जुलाई, 2016 को विधानसभा में पूछे गये प्रश्न के उत्तर में जून, 2016 तक की अवधि में जिन 27 लाख 62 हजार 638 बच्चों का सर्वे किए जाने की जानकारी दी थी, उनमें से 13 लाख, 31 हजार, 88 बच्चे कुपोषित पाए गए. इन आंकड़ों में 80,918 में से 19724 बच्चे अकेले श्योपुर में मिले. इन आंकड़ों को देखने के बावजूद भी राज्य शासन द्वारा श्योपुर जिले में कुपोषण से जूझ रहे बच्चों के प्रति जरा भी संवेदना नहीं दिखाते हुए उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया, परिणामस्वरूप हाल ही में श्योपुर जिले में कुपोषण के शिकार बच्चों की एक के बाद मौत की घटनाएं घटित हुईं. प्रदेश में कुपोषण के नाम पर मुख्यमंत्री के चहेते अधिकारियों द्वारा जो भ्रष्टाचार का नंगा नाच चंद ठेकेदारों के द्वारा खेला गया, उसकी कहानी भी रावत ने बखान की है कि बच्चों और गर्भवती महिलाओं के निवालों पर इन मुख्यमंत्री के चहेते अधिकारियों द्वारा किस तरह से डाका डालने का काम किया है।
उनके अनुसार एक जनवरी, 2016 से जून, 2016 तक 152 दिनों में प्रदेश में डायरिया, निमोनिया और कुपोषण से 9167 बच्चों की मौत हुई, यानि प्रतिदिन 60 बच्चे. आंकड़े यह भी साबित करते हैं कि यह सब खेल उच्चस्तरीय सांठगांठ की बदौलत ही राज्य में चलना संभव है. अब कुपोषण के नाम पर मिलने वाली भारी भरकम राशि पर डाका डालने में किस किसने हिस्सेदारी हासिल की है, इसका भी खुलासा होना चाहिए. उनका आरोप है कि बच्चों की पीड़ा का कारण सरकार है क्योंकि सरकार द्वारा बच्चों और महिलाओं को बांटे जाने वाला पूरक पोषण आहार एवं मध्यान्ह भोजन भारी भ्रष्टाचार के चलते उन तक पहुंच ही नहीं रहा है, वहीं भारी सूखे के बावजूद रोजगारमूलक काम शुरू न हो पाने से गरीब आदिवासियों को दो जून का भोजन भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. और दूसरी तरफ लोगों को राहत पहुंचाने की बजाए प्रशासन बच्चों की मौत पर पर्दा डालने की कोशिश में लगा हुआ है. हालांकि, मुख्यमंत्री चौहान द्वारा हाल ही में कुपोषण के मामले में श्वेत पत्र जारी करने की घोषणा की गई है, जिसमें प्रदेश के कुपोषण के नाम पर उनके चहेते अधिकारियों की सांठगांठ से चल रहे कुपोषण के धंधे का काला सच को उजागर किए जाने की मांग कई स्वयंसेवी संगठनों और राजनेताओं के साथ-साथ भाजपा से जुड़े कई नेता भी दबी जुबान से कर रहे हैं. इन भाजपा नेताओं का यहां तक कहना है कि कम से कम मुख्यमंत्री श्वेत पत्र के बजाए यदि कुपोषण के नाम पर चल रहे उनके करीबी अधिकारियों के गोरखधंधे और सांठगांठ को काले चि_े के नाम पर उजागर करने की पहल ही कर दें तो उनकी छवि में काफी निखार आएगा और यह बात भी जनता के सामने आएगी कि मुख्यमंत्री किस तरह से भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करने और दोषियों को नहीं बख्शने के अपने कथन पर कायम रहते हुए अपने ही इर्द गिर्द के अधिकारियों की छवि को बेनकाब करने में भी पीछे नहीं रहते हैं. इस तरह लोगों को इंतजार है मुख्यमंत्री द्वारा श्वेत पत्र के बजाय अधिकारियों के काले कारनामों का काला चि_ा उजागर किए जाने का. देखना यह भी है कि मुख्यमंत्री भ्रष्ट अधिकारियों को बख्शे नहीं जाने के अपने दावे पर कायम भी रह पाते हैं या नहीं.
80.5 करोड़ ऐसे लोग हैं दुनिया भर में जिनके पास पर्याप्त खाना नहीं
कौन हैं पालघर में 600 बच्चों की मौत के जिम्मेदार
महाराष्ट्र में इस वर्ष भारत सरकार की वजह से 600 बच्चों की जान चली गई. इन मौतों का सीधा संबंध समाज कल्याण की योजनाओं में हुई फंड की कटौती से है. मामला पालघर जिले से जुड़ा है, जहां 600 बच्चों के इस वर्ष कुपोषण के कारण मरने की खबर है. असल में इन बच्चों की मौत की दोषी केंद्र सरकार है. ये बच्चे इसलिए मरे क्योंकि केंद्र सरकार ने कल्याण योजनाएं बंद कर दीं और राज्य सरकार ने उसकी योजनाओं के लिए फंड नहीं दिया. हैरत इस पर भी है क्योंकि भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई से पालघर की दूरी सिर्फ 100 किलोमीटर है, जहां बच्चे भूख से मर रहे हैं. पालघर के ज्यादातर बाशिंदे गरीबी हैं और पंडित बताते हैं कि ये लोग समाज कल्याण की सरकारी योजनाओं पर ही निर्भर हैं. इनमें स्वास्थ्य और दूसरी कई तरह की सेवाएं हैं. जिले में मेडिकल सुविधाएं बहुत कम हैं और पहुंच से लगभग बाहर हैं. सत्य है कि हमें नौकरियां उपलब्ध करानी हैं, गरीबी को भी दूर करना है लेकिन यह भी तो सुनिश्चित करना है कि बच्चों को खाना मिले. हमारे पास संसाधन तो हैं लेकिन इन बच्चों के लिए सहानुभूति नहीं है, इसलिए कोई कुछ नहीं करता.