पहली बार हां यह पहला
अवसर है जब नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देते हुए न केवल
देशवासियों को आश्वस्त करने में सफल रहे बल्कि पाकिस्तान को ठोस चेतावनी भी दे दी।
उरी में पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा 18 भारतीय जवानों को मौत की नींद सुलाने की घटना
के बाद पूरे देश में उठा जनाक्रोश और विभिन्न खबरिया चैनलों के 'युद्ध-कक्ष’ से छोड़े जा रहे बमों-मिसाइलों
के बीच सभी आशा कर रहे थे कि प्रधानमंत्री मोदी सेना को कूच का आदेश देंगे। रक्षामंत्री
मनोहर पर्रिकर ने साफ शब्दों में सेना को कह दिया था कि उरी का बदला लें। सत्तारुढ
भाजपा के एक महामंत्री राम माधव ने तो एक दांत के बदले पूरे जबड़े को उखाड़ डालने का
आह्वान कर डाला था। ऐसे में जब घटना के एक सप्ताह बाद प्रधानमंत्री मोदी केरल में एक
आम रैली को संबोधित करने वाले थे, ऐसा वातावरण बनाया गया कि प्रधानमंत्री सभा मंच से
ही युद्ध की घोषणा कर देंगे। गैर जिम्मेदार मीडिया और अतिउत्साही राजनेताओं ने मिलकर
प्रधानमंत्री को उकसाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा था। लेकिन साधुवाद कि प्रधानमंत्री
मोदी भावावेग से दूर व्यवहारिक जमीन पर जमे रहे। जाल में नहीं फंसे । युद्ध की कथित
उपलब्धियों की जगह उन्होंने देश की आर्थिक नींव को पुख्ता करने की नीति को प्राथमिकता
दी। ऐसा ही होना चाहिए था। प्रधानमंत्री ने बुद्धिमानी का परिचय दिया।
उकसावे से दूर जब प्रधानमंत्री
ने पाकिस्तान को ललकारा कि वह भारत के साथ गरीबी और बेरोजगारी के मोर्चे पर युद्ध कर
ले, तब वस्तुत: उन्होंने भारत और स्वयं अपनी परिवर्तित नीति को चिन्हित किया। युद्ध
की नकारात्मक उपलब्धियों के ऊपर प्रधानमंत्री ने विकास की सकारात्मक उपलब्धियों को
वरीयता दी। दलीय आधार पर आलोचनाओं को छोड़ दें तो नरेंद्र मोदी को इस नीति का पक्षधर
आरंभ से ही माना जाएगा। मई 2014 में लोकसभा चुनाव के पूर्व ही नरेंद्र मोदी ने सुझाव
दिया था कि भारत और पाकिस्तान को गरीबी और बेरोजगारी के खिलाफ लडऩा चाहिए। इसी प्रकार
ठीक दो वर्ष पश्चात मई 2016 में पठानकोट हमले के बाद मोदी ने ऐसी ही बात कही थी। आज
पुन: दो वर्ष पश्चात केरल में मोदी ने वस्तुत: अपनी उसी सोच को दोहराया जब उन्होंने
पाकिस्तान को गरीबी और बेरोजगारी के मोर्चे पर युद्ध के लिए ललकारा। कतिपय राजनीतिक
समीक्षक मोदी की इस सोच को मजबूरी भी निरुपित कर सकते हैं। किंतु कोई भी समझदार< परिवर्तित विश्व परिदृश्य में
सीधे युद्ध के पक्ष में हाथ नहीं उठा सकता। विशेषकर वह भारत जो विकास के आर्थिक पथ
पर दौडऩे वालों में सबसे आगे है। विश्व की एक बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में अनेक
योजनाओं पर भारत एक साथ कदम ताल कर रहा है।
आर्थिक रुप से सक्षम विश्व केबड़े देश आज अगर भारत के प्रति उदार दृष्टि और सोच रखने लगे हैं तो निहित मजबूत आर्थिक
संभावना को भांप कर ही। पिछले दिनों अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए
भारत ने अनेक ऐतिहासिक कदम उठाए। अपनी आर्थिक नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए
अनेक क्षेत्रों में शत-प्रतिशत सीधे पूंजी निवेश को अनुमति प्रदान की। ऐतिहासिक इसलिए
कि विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने ऐेसे कदमों का कभी घोर विरोध किया था। लेकिन वर्तमान
की वैश्विक मांग के आगे राजनीतिक हठधर्मिता का त्याग कर यथार्थ को स्वीकार करना ही
पड़ता है। नरेंद्र मोदी की भारत सरकार ने ऐसा ही किया। आने वाले दिनों में इतिहासकार
राष्ट्रहित में इसे एक सर्वथा उचित कदम निरुपित करेंगे।
जहां तक 'उरी दंश’ का सवाल है, प्रधानमंत्री
ने साफ कर दिया है कि देश इसे नहीं भूलेगा< दोषी दंडित होंगे। पाकिस्तान को विश्व
समुदाय से अलग-थलग करने की नीति को सफल कर बदला लिया जा सकता है। युद्धोन्माद पर काबू
पाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान को जो चुनौती दी है उसमें अनेक संदेश निहित
हैं। आर्थिक रुप से अत्यंत विपन्न पाकिस्तान सक्षम भारत का मुकाबला नहीं कर सकता। कश्मीर
के बहाने भारत के खिलाफ छद्म युद्ध जारी रखने वाला पाकिस्तान इस सचाई से अच्छी तरह
परिचित है। अपनी कमजोर स्थिति से भी वाकिफ है पाकिस्तान । भारत को उकसाते रहना उसकी
रणनीति का एक अंग है। प्रधानमंत्री मोदी ने बिलकुल सही कदम उठाते हुए पाकिस्तान को
एक कोने में 'अकेला’
खड़ा करने की नीति बनाई है। कोई आश्चार्य नहीं है कि अंतत: बलतिस्तान की तरह एक दिन
पूरी की पूरी पाकिस्तानी अवाम अपने शासकों के खिलाफ सड़क पर उतर आये। चूंकि, पाकिस्तानी
भी अब पिछले 70 वर्षों की पीड़ा से छुटकारा चाहते है, उन्हें भी अब 'विकास’, आर्थिक विकास चाहिए।
भारत विरोधी अपने शासकों की नीति का रहस्य पाकिस्तानी अवाम अब अच्छी तरह समझ चुकी है।