क्या हिंदू राष्ट्र की
मूल अवधारणा को
भारतीय जनता पार्टी
और राष्ट्रीय स्वयं
सेवक संघ ने
फिलहाल हाशिये पर रख
दिया है? ‘ फिलहाल’
इसलिए कि इन
दोनों के जीवन
का उद्देश्य ही
हिंदू राष्ट्र की
स्थापना है। अब
इसे लोकतांत्रित भारत
की संवैधानिक मजबूरी
कहें या सत्ता
वासना की पूर्ति
हेतु अस्थायी
समझौता, दोनों ने लगता
है इस योजना
को लंबित रखने
का निर्णय लिया
है। इस निष्कर्ष
के कारण मौजूद
हैं।
‘मन की
बात ’ करने वाले
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस
सचाई से अच्छी
तरह परिचित है
कि अंतर्मन की
अभिव्यक्ति के पूर्व
मस्तिष्क को एक
ऐसे द्वंद्व से
गुजरना पड़ता है जहां
हर शंका, सवाल
और जवाब अनेक
प्रतिप्रश्न और प्रति
उत्तर से टकारते
हैं। यह मानव
प्रकृति का एक
शाश्वत सत्य है।
मस्तिष्क को नियंत्रित
करने वाले तत्व
निर्धारित वैचारिक परिधि के
अंदर किंतु-परंतु
के अनेक असहज
सवाल से टकराते
हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी के ताजा
वक्तव्य ने कि
मुसलमानों को ‘वोट
की मंडी’ न
समझा जाए, उनसे
घृणा न करते
हुए अपना समझा
जाए, ऐसे ही
एक द्वंद्व को
जन्म दे दिया
है। स्वाभाविक त्वरित
शंका कि क्या
प्रधानमंत्री अपने शब्दों
के प्रति गंभीर
हैं? शंका यह
कि कहीं प्रधानमंत्री
स्वयं चुनावी राजनीति
की किसी रणनीति
के तहत ‘वोट
मंडी’ का आलिंगन
तो नहीं कर
रहे? सवाल दर
सवाल यह भी
कि कहीं प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी अपने
वैश्विक आभा मंडल
को एक नया
रुप प्रदान करने
की लालसा के
अंतर्गत नेहरु-अटल का
अनुसरण तो नहीं
करना चाहते? आगे
सवाल यह भी
कि क्या राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ
ने भी मोदी
की ताजा रणनीति
को अपना पूर्ण
समर्थन दे दिया
है? हिंदू-मुसलमान
की जनसंख्या पर
सवाल उठाने वाले
संघ प्रमुख मोहन
भागवत क्या हिंदू
राष्ट्र की अपनी
सार्वजनिक अवधारणा
का त्याग कर
देगे। हिंदु राष्ट्र
से इतर वर्तमान
धर्म निरपेक्ष भारत
की हिमायत करते
रहेंगे? प्रश्न जटिल हैं,
उत्तर सरल नहीं।
शंका समाधान प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी, भारतीय जनता
पार्टी और राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ
के आचरण करेंगे।
फिलहाल मंथन यह
कि आखिर प्रधानमंत्री
मोदी ने मुसलमानों
के प्रति विश्वास
व्यक्त करने के
लिए यह समय
क्यों चुना ?
संभवत: कश्मीर और पाकिस्तान
की ताजा यही
वे दो घटनाएं
हैं, जिनके कारण
न केवल कश्मीर
बल्कि शेष भारत
तथा विश्व मुस्लिम
समुदाय की नजरों
में दिल्ली अविश्वसनीय
बन बैठा है।
कड़़वा, अत्यंत ही कड़वा
सच है यह।
निठ्ठले चिंतकों का आकलन
नहीं, तथ्याधारित इमानदार
निष्कर्ष है यह
कि हाल के
दिनों में मुस्लिम
समुदाय में न
केवल असुरक्षा की
भावना बढ़ी है,
बल्कि वह केंद्रीय
सत्ता की नीयत
को लेकर वे
संशकित हैं। कश्मीर
पहले भी अशांत
रहा है। अलगाववादी
ताकतें समय-समय
पर सिर उठाती
रही हैं। सीमा पार
से घुसपैठ और
मुठभेड़ की घटनाएं
होती रही है।
लेकिन दो वर्ष
पूर्व और आज
की स्थिति में
विशाल फर्क भी
साफ-साफ नजर
आता है। तब
अलगाववादी ताकतों, पाकिस्तानी घुसपैठियों
के खिलाफ दिल्ली की सत्ता
के साथ स्थानीय
कश्मीरी कदम ताल
कर रहे थे।
आज वे कदम
पीछे हट गये
हैं। कारण, वही
अविश्वास और असुरक्षा!
इस घटना विकासक्रम
से शेष भारत
भी प्रभावित हुआ।
गोरक्षा और गोमांस
की घटनाओं ने
आग में घी
का काम किया।
यह संयोग हो
सकता है किंतु
सच कि इन
सभी घटनाओं ने
मिलकर एक ऐसा
असहज वातावरण पैदा
कर दिया जिसमें
मुस्लिम समाज वर्तमान
केंद्रीय सत्ता विरोधी बनने
को मजबूर हो
गया। भारतीय संविधान
के अंतर्गत शासन
करने को मजबूर
केंद्रीय सत्ता की बेचैनी
स्वभाविक है। ऐसे
अविश्वास और विरोध
के बीच सर्वमान्य
कुशल शासक बनना
संभव नहीं है।
इस तथ्य की
मौजूदगी में कि
लोकतांत्रिक भारत किसी
एक संप्रदाय विशेष
का नहीं बल्कि
विभिन्न धर्म-संप्रदायों
के आधिपत्य का
भारत है, किसी
एक संप्रदाय की
उपेक्षा संभव नहीं
है। सभी धर्म-संप्रदाय, वर्ग, जाति
को साथ लेकर,
विश्वास में लेकर
ही लोकतांत्रिक भारत
की सत्ता की
बागडोर कोई संभाल
सकता है। प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी और
मोहन भागवत दोनों
इस सचाई को
अच्छी तरह समझ
चुके हैं। लोकतांत्रिक
भारत में सत्ता
पर काबिज होना
है, सत्ता पर
बने रहना है
तो विशाल मुस्लिम
समुदाय को साथ
लेकर ही चलना
होगा। चूंकि, लंबी
मशक्कत के बाद
लोकसभा में पूर्ण
बहुमत प्राप्त कर
भारतीय जनता पार्टी
सत्ता में आई
है वह इससे
वंचित होना कैसे
चाहेगी। ‘सबका साथ-सबका विकास’
की अपनी घोषित
नीति का विस्तार
करते हुए भाजपा
समाज पर राष्ट्रव्यापी
पकड़ मजबूत करना
चाहेगी? यह दोहराना
ही होगा कि
विभिन्न धर्म-संप्रदाय,
जातियों के समूह
से बना समाज सर्वांगीण
विकास का आग्रही
है। यह किसी
एक संप्रदाय का
समर्थन या विरोध
कर संभव नहीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व
संघ प्रमुख मोहन
भागवत अब इस
तथ्य को भलीभांति
समझ चुके हैं।
विशेषकर जब प्रधानमंत्री
मोदी ने संपूर्ण
भारत राष्ट्र के
पुनर्निर्माण की दिशा
में दीर्घकालिक योजनाएं
बना उन पर
क्रियान्वयन शुरू कर
दिया है तब
किसी भी अल्पकालिक
सत्ता की संभावना
को दूर रखना
ही होगा। ताजा
घोषित ‘मुस्लिम पंचायत’ मोदी
की इसी योजना
की एक कड़ी
है। वे चाहते
हैं कि राष्ट्रीय
स्तर पर कश्मीर
सहित पूरे देश
के मुसलमान भाजपा
की सत्ता के
प्रति कोई अविश्वास
न पालें। कल्याणकारी
योजनाओं के द्वारा
प्रधानमंत्री मोदी मुस्लिम
समाज को सुरक्षा
और विकास के
मोर्चे पर पूर्णत:
आश्वस्त करना चाहते
हैं। यह ठीक
है कि इस
प्रक्रिया में मोदी
को न केवल
विपक्ष बल्कि अपने घर
के भीतर से
विरोध और भीतरघात
का सामना करना
पड़ेगा। किंतु दृढ़ प्रतिज्ञ
मोदी जब ठान
लेते है, तब
ठान लेते हैं।
अविचलित अपने लक्ष्य
को प्राप्त करने
के मार्ग में
आने वाले हर
अवरोधक को समाप्त
करने की क्षमता
उनमें है। संघ
प्रमुख मोहन भागवत
भी मोदी के
इस नए संकल्प
में उनके साथ
हैं। सत्ता नियंत्रण
और नीति निर्धारक
की भूमिका में
भागीदार संघ भी
अपनी इस नई
उपलब्धि से महरुम
होना नहीं चाहेगा।
देश को किए
गए वादों को
निभाने के लिए
भी यह जरुरी
है।
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