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Friday, September 23, 2016

'बुद्ध’ और 'युद्ध’ के बीच!




निर्विवाद है कि उरी में सेना मुख्यालय पर हमला पाकिस्तानी हमला था। संदेह प्रकट करनेवाले, सबूत इकट्ठा करने की बातें करने वाले वस्तुत: समय का अपव्यय करेंगे। पाकिस्तानी शासकों ने  सुनियोजित रूप में हमारे इस सेना मुख्यालय पर हमला बोला। ठीक उसी प्रकार जैसे सन 2001 में भारतीय संसद भवन पर हमला बोला गया था। जैसे सन 2008 में मुंबई में हमला बोला गया था।  प्रमाण मिल चुके हैं कि ये सभी हमले पाकिस्तान ने करवाए थे। उरी के पूर्व इसी वर्ष के आरम्भ में पठानकोट स्थित भारतीय वायुसेना स्टेशन  पर पाकिस्तान ने हमला कराया था।  सबूत मौजूद हैं कि सभी हमले  पाकिस्तान ने किए थे। फिर हमलावर को लेकर नये सबूत जुटाने का व्यायाम और जवाबी कार्रवाई के प्रति शिथिलता क्यों?
उरी पर हमले के बाद उत्पन्न राष्ट्रीय उन्माद पाकिस्तान को सबक सिखाने का पक्षधर है। पूरे देश में पाकिस्तान के विरुद्ध गुस्से की लहर है। 'अब बहुत हो चुकाके उछ्वास के साथ प्रत्येक भारतीय पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक कदम उठाए जाने की इच्छा रखता है। भारत सक्षम है। भारतीय वायुसेना के अध्यक्ष सार्वजनिक घोषणा कर चुके हैं कि भारत 30 मिनट में पाकिस्तान का सफाया करने में सक्षम है। भारत सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि एक दांत के बदले पूरा जबड़ा उखाड़ लिया जाना चाहिए। सत्तारूढ़ भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह पाकिस्तान को सजा देने की बात कह चुके हैं। पूर्व सेनाध्यक्ष राज्यमंत्री वी.के.सिंह आश्वस्त हैं कि पाक को कड़ा जवाब दिया जाएगा। थोड़ा पीछे चलें तो 2014 के आम चुनाव अभियान के दौरान स्वयं नरेंद्र मोदी ने जनता के बीच पाकिस्तान विरोधी भावनाओं को जमकर भुनाया था। आतंकी हमलों के प्रति तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व की केंद्र सरकार की कथित शिथिलता पर मोदी ने जमकर तब निशाने साधे थे। और तब ही अमित शाह ने कहा था कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद  कोई भी आतंकी भारतीय सीमा में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं कर पाएगा।
इन पाश्र्व में जब पूरा देश पाकिस्तान को सबक सिखाने को व्यग्र है, भारतीय सेना की ओर से यह कहा जाना कि कार्रवाई होगी लेकिन, वक्त और जगह हम तय करेंगे, हमें आश्वस्त तो करता है किंतु असमंजस भी पैदा कर रहा है। आम जनता के लिए कार्रवाई का अर्थ युद्ध है। वह पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध चाहती है।  युद्धोन्माद पैदा हो भी चुका है। किंतु, व्यावहारिक तथ्य यह कि आनन-फानन में युद्ध के मैदान में कूदा नहीं जा सकता। वैश्विक परिदृष्य भारत-पाक के बीच युद्ध के खिलाफ है। महाशक्ति अमेरिका और उसके सहयोगियों तथा चीन के सामरिक और आर्थिक हित दोनों देशों के साथ जुड़े हुए हैं। इनके अलावा यह खतरनाक सचाई भी मौजूद है कि दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं। ऐसे में युद्ध की परिणति की कल्पना कठिन नहीं। पाकिस्तान को छोड़ हम अपने देश की बात करें तो विकासशील भारत किसी युद्ध में जाने की स्थिति में नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से हम आर्थिक मजबूती के लिए विकास के नये-नये आयाम ढूंढ रहे हैं, उन पर कदमताल भी कर रहे हैं। सभी जानते हैं कि युद्ध हमें वर्षों पीछे ढकेल देगा। उरी सेना मुख्यालय पर हमले के बाद प्रधानमंत्री ने इस संभावित दुखद परिणति पर अपने सहयोगी सेना अधिकारियों के साथ चर्चा अवश्य की होगी। संभवत: इन्हीं बातों और देश की जनता में व्याप्त उन्माद को देखते हुए सरकार की ओर से पाक के विरुद्ध कड़े कदम उठाए जाने की बात तो कही गई किंतु समय तय नहीं हुआ। लेकिन पेंच कुछ और भी हैं।
2001 में हमारी संसद पर हमला कर पाकिस्तान ने बड़ी चुनौती दी थी। संसद पर हमले को देशवासियों ने  भारत पर हमला निरुपित किया था। देशवासी सही थे। राजधानी दिल्ली के सर्वाधिक सुरक्षित स्थल में प्रवेश कर संसद पर हमला? अकल्पनीय और हमारे लिए शर्मनाक भी। बावजूद इसके तब हमने पाकिस्तान के खिलाफ  जवाबी कार्रवाई क्यों नहीं की थी? उरी पर हमले से कहीं बड़ा हमला था वह तब भारतीय संसद को निशाने पर लिया गया था। कहते हैं तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने त्वरित प्रतिक्रिया में पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई को मंजूरी दे दी थी। लगभग 5 लाख भारतीय सैनिक तब पश्चिमी सीमा पर तैनात भी कर दिए गए थे। खतरे को भांप पाकिस्तान ने भी अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य कार्रवाई को मदद कर रही अपनी सेना की टुकडिय़ों को वापस बुला भारतीय सीमा पर तैनात कर दिया था। तब दोनों देश नये-नये परमाणु शक्ति संपन्न देश बने थे। परमाणु युद्ध की संभावना से चिंतित अमेरिका ने तब हस्तक्षेप किया, वाजपेयी पीछे हट गये।
अब यक्षप्रश्न यह कि क्या उरी के अपमान को भी सहन कर लिया जाएगा? पाकिस्तान को सबक सिखाए जाने संबंधी भारतीय भावना और सरकारी आश्वासन खटाई में डाल दिये जाएंगे? माना कि प्रत्यक्ष युद्ध में अनेक पेच हैं, किंतु 'अप्रत्यक्षके भी तो अनेक दरवाजे हैं। देश की भावना का आदर करते हुए प्रधानमंत्री मोदी को 'बुद्धऔर 'युद्धके बीच कोई दरवाजा ढूंढऩा ही होगा। 

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