पाकिस्तान!
एक शब्दीय एक नाम
जिसमें 'पाक’ अर्थात
पवित्र भी निहित
है। किंतु हरकतें
नापाक और सिर्फ
नापाक !! ठीक
बेशर्म की तरह
जिसमें 'शर्म’ तो मौजूद
है लेकिन शर्म
की नमी से
महरूम पाकिस्तानी आंखें
सूख कर काली
चेतनाहीन हो चुकी
हैं। बेशर्म भी
अत्यंत ही छोटी
उपमा है पाकिस्तान
और पाकिस्तानियों के
लिए। सहसा विश्वास
नहीं होता कि पाक
शब्द को हर
पल, हल क्षण
लांछित करनेवाला स्वयं को
इंसान कैसे कह
सकता है। पाकिस्तान
और पाकिस्तानी ऐसा
कर रहे हैं।
पाकिस्तानी
टीवी चैनलों पर
हसीन एंकरों के
हाव-भाव और
काली जुबान से
अंगारयुक्त शब्दों को देख-सुन अवाक
रह जाएंगे आप।
खूबसूरत चेहरों के पीछे
पोषित पाक की
कालिमा ये हसीन
बालाएं छिपा नहीं
पा रहीं। गुलाबी
कपोलों के पीछे
कालिमा ही कालिमा।
बदसूरत, विद्रूप। हद भी
तब शरमा कर
सिमट गई जब
इन बालाओं ने
बेहिचक कह डाला
कि भारत की
मोदी सरकार ने
अपनी विफलताओं को
छिपाने के लिए
पठानकोट की तरह
स्वयं हमला कर
अपने ही जवानों
को मरवा डाला।
तरह-तरह के
कुतर्क दे पाकिस्तानी
चैनलों पर ये
साबित करने की
कोशिश की जा
रही थी कि
भारत में आतंकी
हमले कोई बाहरी
नहीं स्वयं भारत
करवाता रहा है।
तरह-तरह के
अनर्गल आरोप। सचाई के
बिल्कुल उलट गंदी
जुबान से निकले
गंदे आरोप। क्या
इन्हें हम स्वीकार
कर मौन रह
जाएंगे? सवाल ही
पैदा नहीं होता।
बर्दाश्त की भी
एक सीमा होती
है। अब और
नहीं। बेकसूर जवानों-
नागरिकों के बलिदान
अब हम जाया
नहीं होने दे
सकते। सत्तारूढ़ भारतीय
जनता पार्टी के
महामंत्री राम माधव
ने बिल्कुल ठीक
कहा है कि
एक दांत के
बदले पूरा जबड़ा
तोड़ दिया जाना
चाहिए।
हाल के दिनों
में सीमा पर
बढ़ती पाकिस्तानी घुसपैठ
और खूनी आतंकी
हमलों ने पाकिस्तानी
मंसूबे को बेनकाब
कर दिया है।
मेरी तो दृढ़
मान्यता है कि
वस्तुत: पाकिस्तानी शासक अपनी
विफलताओं से अपनी
अवाम का ध्यान
हटाने के लिए
कश्मीर को मुद्दा
बना घुसपैठ और
भारत के अंदर
आतंकी हमलों को
अंजाम दे रहे
हैं। अपने जन्मकाल
से ही पाकिस्तान
ऐसा करता आया
है। 1947 में कबाईली
वेशभूषा में अपने
सैनिकों को भारत
में विलय हो
चुके कश्मीर में
घुसपैठ करा पाकिस्तान
अपने इस चरित्र
को चिन्हित कर
चुका है।
यह ठीक है
कि भारत अहिंसा
और शांति का
पुजारी रहा है।
संयम के रूप
में यह पूंजी
हमें ंिहंसा अथवा
युद्ध के पक्ष
में पहल करने
से हमेशा रोकती
रही है। 1947, 1965,
1971 और 1999 में हमारी
सेना तब सक्रिय
हुई जब संयम
की सारी सीमा
पार करने को
पाकिस्तान ने हमें
मजबूर कर दिया
था। आश्चर्य कि
निरंतर पराजय के बाद
भी पाकिस्तानी शासक
भारत विरोधी अपनी
हरकतों से बाज
नहीं आ रहे।
उनकी मंशा और
मजबूरी साफ है।
पाकिस्तान की आंतरिक
राजनीति और निर्वाचित
प्रतिनिधियों पर सेना
के प्रभाव के
कारण वहां की
सरकार वस्तुत: अपने
अस्तित्व के रक्षार्थ
भारत विरुद्ध कार्रवाई
के लिए विवश
है। पाकिस्तानी मीडिया
के जिस कुत्सित
आचरण का मैंने
ऊपर उल्लेख किया
है वह पाकिस्तानी
शासकों और सेना
के दबाव में
प्रस्तुत किए गए
हैं। पूरा विश्व
जानता है कि
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री
नवाज शरीफ अपनी
सेना के इशारे
पर नाचने को
विवश हैं। ध्यान
रहे, भारत - पाकिस्तान
के ताजा विवाद
के बीच पाकिस्तानी
सैन्य अधिकारी ज्यादा
सक्रिय हैं। पाकिस्तान
के रक्षा मंत्री
ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने
खुले शब्दों में
जिस प्रकार परमाणु
युद्ध की धमकी
दी है उससे
साफ है कि
पाकिस्तानी सेना पाकिस्तान
को युद्ध में
झोंक वहां सत्ता
पर कब्जा करना
चाहती है। कोई
आश्चर्य नहीं कि,
नवाज शरीफ सेना
के हाथों कठपुतली
बन गए हैं।
1971 में मजबूर हो भारत
ने पूर्वी पाकिस्तान
को मौत दी
थी। अगर 2016 में
भारत मजबूर हुआ
तो अंजाम की
कल्पना सहज है। इस
बार निशाने पर
होगा संपूर्ण पाकिस्तान
का अस्तित्व।
खैर यह तो
पाकिस्तान का आंतरिक
मामला हुआ। हमारी
चिंता अपनी सीमा
और राष्ट्र की
अखंडता को लेकर
है। भूतकाल में
पाकिस्तान की नापाक
हरकतों के प्रति
अति संयम बरतने
की गलती हम
कर चुके हैं।
सन 2001 में संसद
पर हमले के
बाद ही हमें
पाकिस्तान के खिलाफ
सैन्य कार्रवाई करते
हुए उसे सबक
सिखा देना चाहिए
था। साक्ष्य मौजूद
हैं कि तत्कालीन
प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने
तब पाकिस्तान पर
आक्रमण करने का
निर्णय भी ले
लिया था। सेना
को तद्संबंधी आवश्यक
निर्देश जारी किए
जा चुके थे।
सेना गतिमान भी
हो चुकी थी।
लगभग 5 लाख भारतीय
सैनिक पश्चिमी सीमा
पर तैनात किए
जा चुके थे।
लेकिन दुखद रूप
से अंतरराष्ट्रीय, विशेषकर
अमेरिकी दबाव के
बाद प्रधानमंत्री वाजपेयी
पीछे हट गए।
वैसे अमेरिका के
साथ-साथ रूस
और ब्रिटेन ने
भी वाजपेयी के
उपर पाकिस्तान
के खिलाफ सैन्य
कार्रवाई न करने
का दबाव बनाया
था। तत्कालीन केंद्रीय
गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की राय
की उपेक्षा कर
तब वाजपेयी ने
पाकिस्तान के खिलाफ
सैन्य कार्रवाई के
आदेश को वापस
ले लिया था।
वाजपेयी का वह
फैसला एक बड़ी
भूल थी। प्रधानमंत्री
वाजपेयी के तत्कालीन
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार ब्रजेश
मिश्र ने तब
एक अमेरिकी समीक्षक
को बताया था
कि वाजपेयी अपने
लंबे राजनीतिक जीवन
के अंत में
नहीं चाहते थे
कि 'शांतिदूत’ के
रूप में उनकी
पहचान छीन ली
जाए। हालांकि, वाजपेयी
के उक्त निर्णय
को पाकिस्तान ने
'परमाणु भय’ से
प्रभावित निरुपित किया था।
बहरहाल ताजा घटनाक्रम
हमें संयम त्यागने
को मजबूर कर
रहे हैं। पटानकोट
और अब उरी
की घटना के
बाद अगर भारत
ने पाकिस्तान को
उसी की भाषा
में सबक नहीं
सिखाया तब 2001 की भांति
पाकिस्तान पुन: हमें
'परमाणु भयभीत’ निरुपित कर
उपहास करने से
नहीं चूकेगा। भारत को
चाहिए कि वह
पाकिस्तान को स्पष्ट
शब्दों में संदेश
दे दे कि
परमाणु युद्ध से वह
भयभीत होनेवाला नहीं।
भारत देश भारतीय
जनता का समूह
है और यह
समूह अब पाकिस्तान
को सबक सिखाने
को व्यग्र है।
इस भारतीय मन
की भावना का
सम्मान होना ही
चाहिए। पाकिस्तान ने चिकोटी
काटने से शुरुआत
कर अपने हाथ
अब हमारी गर्दन
पर रख दिए
हैं। अब इस
हाथ को काट
ही दिया जाना
चाहिए। राम माधव
उवाचित जबड़ा उखाडऩे से
आगे बढ़ते हुए
हमें पाकिस्तान को
यह बता देना
चाहिए कि जरूरत
पडऩे पर हम
जबड़े ही नहीं
उसके पेट की
आंत भी बाहर
निकाल लेने सक्षम
हैं। भारत माता
के सिर पर
विराजमान गौरव मुकुट
पर कोई धब्बा
हम नहीं लगने
दे सकते, वह
अक्षुण्ण है। शुरुआत
पाकिस्तान ने की
है तो फिर
कोई हिचक क्यों?
हां, सबक सिखाने
के स्वरूप, समय
और चरित्र निर्धारित
करने के पूर्व
व्यापक मंथन अवश्य
हो। क्योंकि बगैर
किसी जोखिम के
यह सबक स्थायी
और निर्णायक होना
चाहिए। ताकि , पाकिस्तान 'पाक’
और 'नापाक’ के
बीच के फर्क
को भी समझ
ले।
1 comment:
यूएन में ईनाम गंभीर ने दिया नवाज शरीफ को मुंहतोड़ जवाब
Read More TodayNews18.com https://goo.gl/ftmgbq
Post a Comment