कोई ठकुरसुहाती नहीं, अर्थात व्यक्तिवंदना नहीं।
एक सच, यथार्थ का रेखांकन मात्र।
वह भी इसलिए कि आधुनिक तकनीकी से तेज रफ्तार दौड़ती जिंदगी और सत्ता सिंहासन के मोह से कोसों दूर देश और समाज के प्रति जनहित में पूर्णत: समर्पित व्यक्तित्व को सामान्य लोगों के बीच उसकी संपूर्णता में पहुंचाने का अहम दायित्व भी हमारी बिरादरी को निभाना है। विघ्नसंतोषी इसे संभवत: स्वार्थ अथवा अवसरवादिता के चश्मे से देख सकते हैं, किंतु जानकार पुष्टि करेंगे कि जब बात बेबाकपन और विकास की हो तब -तब मैंने कलम उठाई है और नि:संकोच सच को चिन्हित किया है। शपथपूर्वक कह दूं कि यहां शब्दांकित सभी तथ्य जनहित में एक ऐसे व्यावहारिक विकास पुरुष को समर्पित हैं जिससे देश और समाज को काफी अपेक्षाएं हैं। दोहरा यह भी दूं कि आलोच्य व्यक्तित्व को ऐसे किसी 'मंच' की जरूरत नहीं किंतु कर्तव्य निष्पादन के स्मरणार्थ और कुछ-कुछ प्रोत्साहनार्थ भी यह प्रयास अंतत: जनहित में सहयोगी साबित होगा।
हां, मैं चर्चा कर रहा हूं केंद्रीय राजमार्ग, परिवहन एवं जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी की जिन्होंने विगत 27 मई को जीवन के 59वें वर्ष में प्रवेश किया। एक ओर जब सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी 'विकास पर्व' के रूप में सत्ता के दो वर्ष का जश्न मना रही है तब देश के इस 'विकास पुरुष' की चर्चा न्यायोचित है। क्योंकि यह तथ्य देश के सामने मौजूद है कि मोदी सरकार अब तक की अपनी उपलब्धियों पर अगर गर्व कर रही है तो इसका अधिकांश श्रेय नितिन गडकरी द्वारा अपने मंत्रालयों के माध्यम से निष्पादित विकास कार्य ही हैं। पूरे देश का दौरा कर लें, हर जगह नितिन गडकरी के कार्यों की छाप आपको मिलेगी। चाहे राजमार्गों के विस्तार का काम हो, नई सड़कों के निर्माण का काम हो, पुलों के निर्माण का कार्य हो अथवा बंदरगाह और नौवहन के मोर्चे पर भारत की विशाल क्षमता के दोहन का दायित्व हो, इस विकास पुरुष गडकरी की सूझ-बूझ, कर्मठता और संपूर्ण समर्पण की चमक हर जगह प्रस्फुटित है। भारत देश पहली बार एक ऐसी 'नीली क्रांति' के लिए तत्पर हुआ जिससे कम से कम दो करोड़ नये रोजगार के अवसर बेरोजगारों को मिलेंगे। यह दूरदृष्टा गडकरी के सोच की परिणति है कि सागरमाला के जरिए एक करोड़ रोजगार के अवसरों के सृजन के अलावा जहाजरानी, राजमार्ग और अन्य क्षेत्रों में सफलतापूर्वक एक करोड़ से अधिक और रोजगार के अवसरों का सृजन संभव हो पाएगा। बंदरगाह, सड़क और जहाजरानी जैसे क्षेत्रों में रोजगार सृजन की व्यापक संभावनाओं की पड़ताल कर उन्हें साकार करने के प्रति दृढ़ संकल्प गडकरी देश के बेरोजगार युवाओं के लिए एक प्रकाश पुंज के रूप में अवतरित हुए हैं।
क्या इस बात से कोई इनकार करेगा कि यह नितिन गडकरी हैं जिन्होंने विश्व की सभी महान सभ्यताओं के नदियों और समुद्रों के आस-पास समृद्ध होने के तथ्य को रेखांकित करते हुए देश के विकासमार्ग पर कदमताल किया है? देश में 8 नये बंदरगाहों की स्थापना का उनका निर्णय भी रोजगार की संभावनाओं से परिपूर्ण है। क्या यह दोहराने की जरूरत है कि यह रोजगार ही है जिसकी उपलब्धता देश की समृद्धि को चिन्हित करती है? व्यावहारिक नितिन गडकरी ने आरम्भ से ही इस आवश्यकता को पहचान योजनाएं बनाईं और दृढ़तापूर्वक इनके क्रियान्वयन के लिए सक्रिय हुए। इनकी कार्यशैली के कायल अधिकारी वर्ग का भरपूर सहयोग गडकरी को इसीलिए मिलता है क्योंकि इनके प्रयास स्वार्थ से दूर जनहित आधारित होते हैं। इस बिंदु पर मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साधुवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने नितिन गडकरी में निहित क्षमता को पहचान उनके अनुकूल मंत्रालय सौंपे।
एक पुरानी कहावत है कि 'आलोचना व ईष्र्या के शिकार वही होते हैं जो काम करते हैं।' निकम्मों पर भला कौन ध्यान देता है? पहले से उपेक्षित यह वर्ग सर्वदा उपेक्षित की अवस्था में रहता है। हां, काम करनेवालों को समाज का एक खास वर्ग जिसमें न केवल बाहरी ईष्र्यालु बल्कि कुछ अपने भी शामिल होते हैं, हमेशा निशाने पर लेते हैं। गडकरी भी ऐसी 'नियति' के शिकार हो चुके हैं। 53 वर्ष की अवस्था में जब गडकरी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे तब दिल्ली दरबार की एक चौकड़ी इन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं थी। कुछ वार सामने से किए गए, कुछ पीठ पीछे। लेकिन अविचल गडकरी ने पार्टी हित में जब परिणाम देने शुरू किए तब आलोचक शिथिल पड़ गए। पार्टी अध्यक्ष के रूप में इनकी पहली परीक्षा बिहार विधानसभा चुनाव थी। नीतीश कुमार के साथ गठबंधन की सरकार में शामिल भाजपा के लिए नकारात्मक भविष्यवाणियां राजनीतिक पंडित कर रहे थे। लेकिन गडकरी की रणनीति से जब 102 सीटों पर चुनाव लडऩेवाली भाारतीय जनता पार्टी के 93 उम्मीदवार विजयी हुए तब सभी चौंक गए। चूंकि सफलता का प्रतिशत नीतीश कुमार की जदयू से अधिक था, आलोचकों के मुंह पर ताला जड़ गया। इसके बाद 2013 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव में भी गडकरी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। गडकरी ने अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ और कार्यशैली से पार्टी के सामान्य कार्यकर्ताओं का दिल जीत लिया था। लेकिन महाराष्ट्र के नागपुर जैसे छोटे शहर से राजनीति के राष्ट्रीय क्षितिज पर नितिन गडकरी के चमकदार अवतरण को कतिपय स्वघोषित राजनेता पचा नहीं पा रहे थे। जबकि पार्टी का बहुमत नितिन गडकरी का प्रशंसक बन चुका था। यही कारण था कि इन्हें दोबारा अध्यक्ष बनाने पर सहमति बनी थी, लेकिन गडकरी की मौजूदगी के कारण भविष्य की राजनीति में अपनी संभावनाओं को लेकर चिंतित विघ्नसंतोषी सक्रिय हुए, साजिशें रची गईं और ऐसी स्थिति पैदा की गई कि स्वयं नितिन गडकरी ने अंतिम क्षण में भारतीय जनता पार्टी का दोबारा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से इंकार कर दिया। हालांकि गडकरी के निर्णय को मैं एक राजनीतिक भूल मानता हूं, क्योंकि गडकरी का फैसला आवेश आधारित था। हाल ही में गडकरी सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं कि तब उनके खिलाफ साजिश रची गई थी। गडकरी ने दो टूक शब्दों में कहा था कि जिस दिन 'मुझे साजिशकर्ताओं की जानकारी मिल जाएगी, मैं उन्हें छोड़ूंगा नहीं।' चूंकि भाजपा की वर्तमान केंद्र सरकार से देश की आम जनता को भारी आशाएं हैं, मैं चाहूंगा कि अब नितन गडकरी आवेश और भावना से इतर वृहत् दल, देश व जनहित में जररूरत पड़े तो व्यावहारिक विकास पुरुष के साथ-साथ 'पाषाण पुरुष की भूमिका में भी आ जाएं। देश उन्हें सिर आंखों पर बिठा लेगा।