मृत्यु !
प्रकृति की एक सामान्य प्रक्रिया!
धर्मावलंबी इसे ईश्वर इच्छा निरुपित करते है।
जबरिया मृत्यु हत्या होती है, प्रकृति की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली। धर्मावलंबी इसे भी ईश्वर ईच्छा की श्रेणी में डाल देते हैं।
किंतु ऐसी जबरिया मृत्यु अर्थात हत्या को हम समाज के लोग स्वीकार या बर्दाश्त करने को तैयार नहीं। प्रकृति व ईश्वर ईच्छा से आगे यह एक ऐसा कुकृत्य है जो सीधे-सीधे हमारी सत्ता, हमारी व्यवस्था व हमारी सोच पर वार करता है। और जब षडय़ंत्र के तहत ऐसी घटना को अंजाम दिया जाए तब देश समाज की कानून व्यवस्था की चूलें हिल जाती हैं। अक्षम्य अपराध की ऐसी घटना पर बहस छिडऩा भी स्वाभाविक है।
बिहार व पड़ोसी झारखंड में 24 घंटों के अंदर दो पत्रकारों की निर्मम हत्या ने अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं। राजनीतिक विरोधियों ने पहले से विभूषित 'जंगल राज” बिहार को इस घटना के बाद 'महाजंगलराज’ से महाविभूषित कर डाला। बिहार से सटे झारखंड में पत्रकार की हत्या पर भी शोर तो मच रहा है किंतु वेग में बिहार आगे है। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से इतर हमारी चिंता ईमानदारी से कर्तव्य निष्पादन करने वाले पत्रकारों की निर्मम हत्या और मीडिया बिरादरी की प्रतिक्रियाओं को लेकर है। पत्रकारों पर हमले और हत्याओं की घटनाओं में हाल के दिनों में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है। पत्रकार प्रताडऩा के मामले भी सामने आए हैं। प्रताडऩा ऐसी कि पिछले दिनों दिल्ली में कार्यरत युवा पत्रकार पूजा तिवारी को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा। मरते-मरते वह संदेश दे गई थी कि ''कोई पत्रकार ना बने!” क्या सचमुच पत्रकार और पत्रकारिता ऐसी 'खतरनाक’ अवस्था में पहुंच चुकी है?
बिहार के सिवान में दैनिक 'हिन्दुस्तान’ से जुड़े एक वरिष्ठ पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या कर दी गई। 42 वर्षीय राजदेव की पहचान एक निर्भीक पत्रकार की थी। निडरतापूर्वक अपने क्षेत्र से वे राजनीति से लेकर सामाजिक विषयों पर बेबाक लिखा करते थे। खबर मिली है कि राजदेव की हत्या के पिछे उन बाहुबलियों का हाथ है जिनकी पहुंच सत्ता में उपर तक है। जिस प्रकार बाइक सवार बदमाशों ने उन्हें गोली मारी उससे साफ है कि हत्या एक पूर्वनियोजित साजिश के तहत की गई है।
दूसरी घटना झारखंड के चतरा जिलांतर्गत देवरिया में एक न्यूज चैनल के 35 वर्षीय पत्रकार अखिलेश प्रताप सिंह उर्फइंद्रदेव यादव की हत्या की है। हांलाकि इनकी हत्या के कारण की जानकारी अभी नहीं मिल पायी है, संभावना पत्रकारिता से इतर की है। बिहार के राजदेव की हत्या की तरह इनकी हत्या में किसी राजनीति की संभावना फिलहाल व्यक्त नहीं की जा रही हैं। मूलत: बिहार के गया जिलांतर्गत बाराचट्टी के धनगाय गांव के रहनेवाले इंद्रदेव 10 वर्षपूर्व चतरा पहुंचे थे। कहते हैं कि पहले ये एक शिक्षक के रुप में अपने गांव में कार्यरत थे और इनका संबंध उग्रवादी संगठन एमसीसी से रहा था। पिछले पांच वर्ष से ये कलकत्ता के एक न्यूज चैनल के प्रतिनिधि के रुप में चतरा में कार्यरत थे। बहरहाल मामल हत्या का है तो जांच परिणाम के बाद ही कारण की जानकारी मिल पाएगी। फिलहाल क्षेत्र के पत्रकार भी एकमत हे कि इंद्रदेव की हत्या का कारण निजी हो सकता है।
पत्रकारों की हत्या इस क्षेत्र के लिए नई बात नहीं है। 70 के दशक के आरंभ में एक साप्ताहिक 'नया रास्ता’ पत्र के माध्यम से जमशेदपुर में 'यूरेनियम’ की तस्करी व इसमें लिप्त माफिया गिरोह पर निडरतापूर्वक लिखनेवाले एक पत्रकार शंकरलाल खीरवाल की निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी गई थी। इसी प्रकार 80 के दशक में जमशेदपुर में 'अमृत बाजार पत्रिका’ के संवाददाता इलियास की हत्या राजनीतिक कारणों से कर दी गई थी। 80 के दशक में 'नयी राह’ के पत्रकार पवन शर्मा और 1995 में पीटीआई के संवाददाता डी. पी. शर्मा की हत्या चाईबासा में कर दी गई थी।
कारण जो भी हो, बिहार और झारखंड के पत्रकारों की हत्याओं ने एक बार फिर सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए है। जो पत्रकार अपने कर्तव्य निष्पादन के लिए जान जोखिम में डालने को तत्पर रहते हैं उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कोन लेगा? सिवान के राजदेव रंजन नि:संदेह पत्रकारीय कर्तव्य निष्पादन के दौरान मारे गये। इनकी हत्या के पीछे चॅूकि बाहुबली राजनेताओं के नाम आ रहे हैं, बिहार सरकार को चुनौती हे कि बगैर किसी भय अथवा दबाव के वह असली अपराधी को पकड़ दंड सुनिश्चित करे। यह सुखद है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सहित राजद प्रमुख लालूप्रसाद यादव ने भी अपराधियों को पकड़ दंडित किये जाने की बात कही है। मुख्यमंत्री नीतीश सीबीआई जॉच की अनुशंसा भी कर चुके है। उन्हें यह सुनिश्चित करना ही होगा। तभी जंगल अथवा महाजंगलराज के आरोप से वे बिहार को बचा पाएंगे। और इसी बहाने ईमानदार पत्रकारों की सुरक्षा संबंधी पुख्ता यंत्रणा की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाये। घोर अस्थिर राजनीतिक वातावरण में मीडिया की निर्णायक भूमिका के मद्देनजर कर्तव्यनिष्ठ पत्रकारों को सुरक्षा कवच मुहैया करने की जिम्मेदारी शासन की ही है।
प्रकृति की एक सामान्य प्रक्रिया!
धर्मावलंबी इसे ईश्वर इच्छा निरुपित करते है।
जबरिया मृत्यु हत्या होती है, प्रकृति की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली। धर्मावलंबी इसे भी ईश्वर ईच्छा की श्रेणी में डाल देते हैं।
किंतु ऐसी जबरिया मृत्यु अर्थात हत्या को हम समाज के लोग स्वीकार या बर्दाश्त करने को तैयार नहीं। प्रकृति व ईश्वर ईच्छा से आगे यह एक ऐसा कुकृत्य है जो सीधे-सीधे हमारी सत्ता, हमारी व्यवस्था व हमारी सोच पर वार करता है। और जब षडय़ंत्र के तहत ऐसी घटना को अंजाम दिया जाए तब देश समाज की कानून व्यवस्था की चूलें हिल जाती हैं। अक्षम्य अपराध की ऐसी घटना पर बहस छिडऩा भी स्वाभाविक है।
बिहार व पड़ोसी झारखंड में 24 घंटों के अंदर दो पत्रकारों की निर्मम हत्या ने अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं। राजनीतिक विरोधियों ने पहले से विभूषित 'जंगल राज” बिहार को इस घटना के बाद 'महाजंगलराज’ से महाविभूषित कर डाला। बिहार से सटे झारखंड में पत्रकार की हत्या पर भी शोर तो मच रहा है किंतु वेग में बिहार आगे है। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से इतर हमारी चिंता ईमानदारी से कर्तव्य निष्पादन करने वाले पत्रकारों की निर्मम हत्या और मीडिया बिरादरी की प्रतिक्रियाओं को लेकर है। पत्रकारों पर हमले और हत्याओं की घटनाओं में हाल के दिनों में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है। पत्रकार प्रताडऩा के मामले भी सामने आए हैं। प्रताडऩा ऐसी कि पिछले दिनों दिल्ली में कार्यरत युवा पत्रकार पूजा तिवारी को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा। मरते-मरते वह संदेश दे गई थी कि ''कोई पत्रकार ना बने!” क्या सचमुच पत्रकार और पत्रकारिता ऐसी 'खतरनाक’ अवस्था में पहुंच चुकी है?
बिहार के सिवान में दैनिक 'हिन्दुस्तान’ से जुड़े एक वरिष्ठ पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या कर दी गई। 42 वर्षीय राजदेव की पहचान एक निर्भीक पत्रकार की थी। निडरतापूर्वक अपने क्षेत्र से वे राजनीति से लेकर सामाजिक विषयों पर बेबाक लिखा करते थे। खबर मिली है कि राजदेव की हत्या के पिछे उन बाहुबलियों का हाथ है जिनकी पहुंच सत्ता में उपर तक है। जिस प्रकार बाइक सवार बदमाशों ने उन्हें गोली मारी उससे साफ है कि हत्या एक पूर्वनियोजित साजिश के तहत की गई है।
दूसरी घटना झारखंड के चतरा जिलांतर्गत देवरिया में एक न्यूज चैनल के 35 वर्षीय पत्रकार अखिलेश प्रताप सिंह उर्फइंद्रदेव यादव की हत्या की है। हांलाकि इनकी हत्या के कारण की जानकारी अभी नहीं मिल पायी है, संभावना पत्रकारिता से इतर की है। बिहार के राजदेव की हत्या की तरह इनकी हत्या में किसी राजनीति की संभावना फिलहाल व्यक्त नहीं की जा रही हैं। मूलत: बिहार के गया जिलांतर्गत बाराचट्टी के धनगाय गांव के रहनेवाले इंद्रदेव 10 वर्षपूर्व चतरा पहुंचे थे। कहते हैं कि पहले ये एक शिक्षक के रुप में अपने गांव में कार्यरत थे और इनका संबंध उग्रवादी संगठन एमसीसी से रहा था। पिछले पांच वर्ष से ये कलकत्ता के एक न्यूज चैनल के प्रतिनिधि के रुप में चतरा में कार्यरत थे। बहरहाल मामल हत्या का है तो जांच परिणाम के बाद ही कारण की जानकारी मिल पाएगी। फिलहाल क्षेत्र के पत्रकार भी एकमत हे कि इंद्रदेव की हत्या का कारण निजी हो सकता है।
पत्रकारों की हत्या इस क्षेत्र के लिए नई बात नहीं है। 70 के दशक के आरंभ में एक साप्ताहिक 'नया रास्ता’ पत्र के माध्यम से जमशेदपुर में 'यूरेनियम’ की तस्करी व इसमें लिप्त माफिया गिरोह पर निडरतापूर्वक लिखनेवाले एक पत्रकार शंकरलाल खीरवाल की निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी गई थी। इसी प्रकार 80 के दशक में जमशेदपुर में 'अमृत बाजार पत्रिका’ के संवाददाता इलियास की हत्या राजनीतिक कारणों से कर दी गई थी। 80 के दशक में 'नयी राह’ के पत्रकार पवन शर्मा और 1995 में पीटीआई के संवाददाता डी. पी. शर्मा की हत्या चाईबासा में कर दी गई थी।
कारण जो भी हो, बिहार और झारखंड के पत्रकारों की हत्याओं ने एक बार फिर सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए है। जो पत्रकार अपने कर्तव्य निष्पादन के लिए जान जोखिम में डालने को तत्पर रहते हैं उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कोन लेगा? सिवान के राजदेव रंजन नि:संदेह पत्रकारीय कर्तव्य निष्पादन के दौरान मारे गये। इनकी हत्या के पीछे चॅूकि बाहुबली राजनेताओं के नाम आ रहे हैं, बिहार सरकार को चुनौती हे कि बगैर किसी भय अथवा दबाव के वह असली अपराधी को पकड़ दंड सुनिश्चित करे। यह सुखद है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सहित राजद प्रमुख लालूप्रसाद यादव ने भी अपराधियों को पकड़ दंडित किये जाने की बात कही है। मुख्यमंत्री नीतीश सीबीआई जॉच की अनुशंसा भी कर चुके है। उन्हें यह सुनिश्चित करना ही होगा। तभी जंगल अथवा महाजंगलराज के आरोप से वे बिहार को बचा पाएंगे। और इसी बहाने ईमानदार पत्रकारों की सुरक्षा संबंधी पुख्ता यंत्रणा की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाये। घोर अस्थिर राजनीतिक वातावरण में मीडिया की निर्णायक भूमिका के मद्देनजर कर्तव्यनिष्ठ पत्रकारों को सुरक्षा कवच मुहैया करने की जिम्मेदारी शासन की ही है।
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