कोई लाग-लपेट नहीं!
'मीडिया मंडी’ छत्तीसगढ़ के उन पत्रकारों की मांग के साथ है, कि जुल्मी पुलिसिया कार्रवाई लिए कुख्यात बस्तर के पुलिस आईजी एसआरपी कल्लूरी के खिलाफ कार्रवाई की जाए, बस्तर से तबादला कर दिया जाए। सुदूर ग्रामीण इलाकों, नक्सल प्रभावित संवेदनशील क्षेत्रों में प्राणों की बाजी लगा दायित्व निर्वाह कर रहे पत्रकारों को धमका कर प्रताडि़त कर शासन के अनुकूल एकपक्षीय खबर लिखने को मजबूर करने संबंधी किसी भी कदम का समर्थन नहीं किया जा सकता। अनेक कारणों से पहले से ही दबे-सहमे इन पत्रकारों के खिलाफ जब ऐसी शासकीय कार्रवाई होती है, तो यह राज्य सरकार का दायित्व हो जाता है कि पत्रकारों को संरक्षण प्रदान करे। खेद है, इस मोर्चे पर छत्तीसगढ़ सरकार अब तक विफल रही है। मजबूरन वहां के पत्रकार राजधानी दिल्ली में दस्तक देने पहुंच गये।
ये सचमुच छत्तीसगढ़ सरकार के लिए शर्म की बात है कि ऐसे पत्रकारों को संरक्षण की जगह उसकी यंत्रणा पत्रकारों को नक्सली बता गिरफ्तार करने लगी है। पत्रकारों से मधुर संबंध रखने वाले मुख्यमंत्री डा रमनसिंह से ऐसी अपेक्षा नहीं थी। यह वहीं छत्तीसगढ़ है जहां पूर्व में नक्सलियों ने सार्इं रेड्डी और नेमीचंद जैन जैसे पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया था। मुख्यमंत्री ने तब कड़ी कार्रवाई का आश्वासन भी दिया था। लेकिन सुधार की जगह स्थिति और बदतर होती चली गई है। पत्रकारों के लिए उन संवेदनशील इलाकों में काम करना मुश्किल हो गया है। अगर आफत नक्सलियों अथवा अन्य अपराधी गिरोह की ओर से आती है तब क्या यह सरकार का दायित्व नहीं होता कि वह पत्रकारों को संरक्षण प्रदान करे? परंतु विडंबना यह कि छत्तीसगढ़ में स्वयं प्रशासन ही पत्रकारों को प्रताडि़त करने लगा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि स्वयं पुलिस प्रशासन और नक्सली तथा आपराधिक तत्वों की मिलीभगत है। जिस प्रकार नक्सलियों तथा उन क्षेत्रों में बड़े 'कार्पोरेट घरानों’ को लाभान्वित करने के लिए जबरिया जमीन का अधिग्रहण कर उन्हें आबंटित करने के मामले पत्रकार उजागर कर रहे हैं, इसमें निहित जोखिम को देखते हुए स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि वे पत्रकारों को उचित सुरक्षा प्रदान करे। लेकिन जब स्वयं पुलिस पत्रकारों को ही आरोपी बना गिरफ्तार करने लगे, उन्हें धमकाने लगे तब पूरी की पूरी राज्य सरकार की नीयत पर संदेह तो उठेंगे ही। समय रहते मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ऐसे आरोपों और पुलिसिया कार्रवाई का निराकरण करें अन्यथा विकास के मार्ग पर तेजी से अग्रसर छत्तीसगढ़ राज्य नक्सलियों और अपराधियों के समक्ष नपुंसक की मुद्रा में खड़ी दिखेगी।
'मीडिया मंडी’ पूरी तरह से राज्य के पत्रकारों के साथ है। 'मीडिया मंडी’ हर दिन राजधानी दिल्ली सहित देश के विभिन्न बड़े शहरों की सड़कों पर कुछ पत्रकारों को सुरक्षा के घेरे में विचरण करते देखता है। हर तरह से सुविधा संपन्न इन पत्रकारों के लिए सुरक्षा कवच वस्तुत: राजनेताओं की तरह 'प्रतिष्ठा सूचक’ ही होते हैं। वास्तविक सुरक्षा की जरुरत तो बस्तर व इस जैसे असुरक्षित क्षेत्रों के उन पत्रकारों को हैं, जिनके प्राण हमेशा जोखिम में होते हैं। वे कर्तव्य निर्वाह के लिए घर से बाहर निकलते हैं, वापस लौटने तक परिवार भयभीत रहते हैं। ऐसे में नक्सल प्रभावित बस्तर में पत्रकारों के खिलाफ गिरफ्तारी जैसी पुलिसिया कार्रवाई की न सिर्फ भत्र्सना, ऐसी कार्रवाई करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई हो। पिछले वर्ष मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने आश्वासन दिया था कि निप्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता के पक्ष में सरकार सभी आवश्यक कदम उठाएगी। पत्रकारों की गिरफ्तारी संबंधी मामलों की पुर्नसमीक्षा का आश्वासन भी मुख्यमंत्री ने दिया था। बावजूद इसके महीनों बीत गये आजतक कोई सकारात्मक कार्रवाई नहीं हुई।
यह किसी भी सरकार के लिए शर्मनाक है कि उनके राज्य के पत्रकारों को दमनात्मक कार्रवाई के खिलाफ राष्ट्रपति का दरवाजा खटखटाना पड़े। यह स्वयं मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के लिए शर्म की बात है कि बस्तर में चार पत्रकारों सोमारु नाग, संतोष यादव, प्रभात सिंह व दीपक जैस्वाल को फर्जी मामलों में फंसा जेल में डाल दिया गया है। सर्वाधिक शर्मनाक यह कि बस्तर में पदस्थ आईजी कल्लूरी पत्रकारों को फोन कर धमकाने लगे हैं।
चुनौती है मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह को कि वे इस आईजी कल्लूरी के खिलाफ प्रशासकीय कार्रवाई करते हुए गिरफ्तार पत्रकारों के मामलों की पुर्नसमीक्षा का तत्काल आदेश जारी करें। मुख्यमंत्री ध्यान रखें, फिलहाल यह मामला एक बस्तर का है। अगर पत्रकारों के खिलाफ ऐसी दमनात्मक कार्रवाई पर अंकुश नहीं लगाए जाते तो बस्तर की चिंगारी दावानल का रूप ले पूरे छत्तीसगढ़ राज्य को अपनी चपेट में ले लेगी। लालफीताशाही के पक्षधर ऐसे अधिकारी हमेशा निर्वाचित सरकार की मजबूत पांव के नीचे की जमीन खोदने का काम करते हैं। इनकी प्रवृति ही लोकतंत्र विरोधी होती है। इनका चरित्र ही चरित्रवानों की सफेदी पर दाम लगाने का होता है। अपराध और अपराधियों के मध्य विचरने को प्राथमिकता देने वाला यह वर्ग कभी भी इनकी समाप्ति नहीं चाहेगा। आजादी के बाद का लगभग सात दशक इनकी अभी भी मौजूदगी से कलंकित है। लालफीताशाह के ये 'लाल’ जब तक निर्बाध फलते-फूलते रहेंगे, अपराध और अपराधियों का भी विस्तार होता रहेगा। इन दोनों पर निगरानी और अंकुश रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पत्रकारों को फिर सुरक्षा क्यों नहीं? अभी समय बीता नहीं है। मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह कृपया तत्काल हरकत में आएं। गिरफ्तार पत्रकारों की रिहाई सुनिशित करे और कल्लूरी जैसे अधिकारी को दंडित करें।
'मीडिया मंडी’ छत्तीसगढ़ के उन पत्रकारों की मांग के साथ है, कि जुल्मी पुलिसिया कार्रवाई लिए कुख्यात बस्तर के पुलिस आईजी एसआरपी कल्लूरी के खिलाफ कार्रवाई की जाए, बस्तर से तबादला कर दिया जाए। सुदूर ग्रामीण इलाकों, नक्सल प्रभावित संवेदनशील क्षेत्रों में प्राणों की बाजी लगा दायित्व निर्वाह कर रहे पत्रकारों को धमका कर प्रताडि़त कर शासन के अनुकूल एकपक्षीय खबर लिखने को मजबूर करने संबंधी किसी भी कदम का समर्थन नहीं किया जा सकता। अनेक कारणों से पहले से ही दबे-सहमे इन पत्रकारों के खिलाफ जब ऐसी शासकीय कार्रवाई होती है, तो यह राज्य सरकार का दायित्व हो जाता है कि पत्रकारों को संरक्षण प्रदान करे। खेद है, इस मोर्चे पर छत्तीसगढ़ सरकार अब तक विफल रही है। मजबूरन वहां के पत्रकार राजधानी दिल्ली में दस्तक देने पहुंच गये।
ये सचमुच छत्तीसगढ़ सरकार के लिए शर्म की बात है कि ऐसे पत्रकारों को संरक्षण की जगह उसकी यंत्रणा पत्रकारों को नक्सली बता गिरफ्तार करने लगी है। पत्रकारों से मधुर संबंध रखने वाले मुख्यमंत्री डा रमनसिंह से ऐसी अपेक्षा नहीं थी। यह वहीं छत्तीसगढ़ है जहां पूर्व में नक्सलियों ने सार्इं रेड्डी और नेमीचंद जैन जैसे पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया था। मुख्यमंत्री ने तब कड़ी कार्रवाई का आश्वासन भी दिया था। लेकिन सुधार की जगह स्थिति और बदतर होती चली गई है। पत्रकारों के लिए उन संवेदनशील इलाकों में काम करना मुश्किल हो गया है। अगर आफत नक्सलियों अथवा अन्य अपराधी गिरोह की ओर से आती है तब क्या यह सरकार का दायित्व नहीं होता कि वह पत्रकारों को संरक्षण प्रदान करे? परंतु विडंबना यह कि छत्तीसगढ़ में स्वयं प्रशासन ही पत्रकारों को प्रताडि़त करने लगा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि स्वयं पुलिस प्रशासन और नक्सली तथा आपराधिक तत्वों की मिलीभगत है। जिस प्रकार नक्सलियों तथा उन क्षेत्रों में बड़े 'कार्पोरेट घरानों’ को लाभान्वित करने के लिए जबरिया जमीन का अधिग्रहण कर उन्हें आबंटित करने के मामले पत्रकार उजागर कर रहे हैं, इसमें निहित जोखिम को देखते हुए स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि वे पत्रकारों को उचित सुरक्षा प्रदान करे। लेकिन जब स्वयं पुलिस पत्रकारों को ही आरोपी बना गिरफ्तार करने लगे, उन्हें धमकाने लगे तब पूरी की पूरी राज्य सरकार की नीयत पर संदेह तो उठेंगे ही। समय रहते मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ऐसे आरोपों और पुलिसिया कार्रवाई का निराकरण करें अन्यथा विकास के मार्ग पर तेजी से अग्रसर छत्तीसगढ़ राज्य नक्सलियों और अपराधियों के समक्ष नपुंसक की मुद्रा में खड़ी दिखेगी।
'मीडिया मंडी’ पूरी तरह से राज्य के पत्रकारों के साथ है। 'मीडिया मंडी’ हर दिन राजधानी दिल्ली सहित देश के विभिन्न बड़े शहरों की सड़कों पर कुछ पत्रकारों को सुरक्षा के घेरे में विचरण करते देखता है। हर तरह से सुविधा संपन्न इन पत्रकारों के लिए सुरक्षा कवच वस्तुत: राजनेताओं की तरह 'प्रतिष्ठा सूचक’ ही होते हैं। वास्तविक सुरक्षा की जरुरत तो बस्तर व इस जैसे असुरक्षित क्षेत्रों के उन पत्रकारों को हैं, जिनके प्राण हमेशा जोखिम में होते हैं। वे कर्तव्य निर्वाह के लिए घर से बाहर निकलते हैं, वापस लौटने तक परिवार भयभीत रहते हैं। ऐसे में नक्सल प्रभावित बस्तर में पत्रकारों के खिलाफ गिरफ्तारी जैसी पुलिसिया कार्रवाई की न सिर्फ भत्र्सना, ऐसी कार्रवाई करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई हो। पिछले वर्ष मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने आश्वासन दिया था कि निप्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता के पक्ष में सरकार सभी आवश्यक कदम उठाएगी। पत्रकारों की गिरफ्तारी संबंधी मामलों की पुर्नसमीक्षा का आश्वासन भी मुख्यमंत्री ने दिया था। बावजूद इसके महीनों बीत गये आजतक कोई सकारात्मक कार्रवाई नहीं हुई।
यह किसी भी सरकार के लिए शर्मनाक है कि उनके राज्य के पत्रकारों को दमनात्मक कार्रवाई के खिलाफ राष्ट्रपति का दरवाजा खटखटाना पड़े। यह स्वयं मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के लिए शर्म की बात है कि बस्तर में चार पत्रकारों सोमारु नाग, संतोष यादव, प्रभात सिंह व दीपक जैस्वाल को फर्जी मामलों में फंसा जेल में डाल दिया गया है। सर्वाधिक शर्मनाक यह कि बस्तर में पदस्थ आईजी कल्लूरी पत्रकारों को फोन कर धमकाने लगे हैं।
चुनौती है मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह को कि वे इस आईजी कल्लूरी के खिलाफ प्रशासकीय कार्रवाई करते हुए गिरफ्तार पत्रकारों के मामलों की पुर्नसमीक्षा का तत्काल आदेश जारी करें। मुख्यमंत्री ध्यान रखें, फिलहाल यह मामला एक बस्तर का है। अगर पत्रकारों के खिलाफ ऐसी दमनात्मक कार्रवाई पर अंकुश नहीं लगाए जाते तो बस्तर की चिंगारी दावानल का रूप ले पूरे छत्तीसगढ़ राज्य को अपनी चपेट में ले लेगी। लालफीताशाही के पक्षधर ऐसे अधिकारी हमेशा निर्वाचित सरकार की मजबूत पांव के नीचे की जमीन खोदने का काम करते हैं। इनकी प्रवृति ही लोकतंत्र विरोधी होती है। इनका चरित्र ही चरित्रवानों की सफेदी पर दाम लगाने का होता है। अपराध और अपराधियों के मध्य विचरने को प्राथमिकता देने वाला यह वर्ग कभी भी इनकी समाप्ति नहीं चाहेगा। आजादी के बाद का लगभग सात दशक इनकी अभी भी मौजूदगी से कलंकित है। लालफीताशाह के ये 'लाल’ जब तक निर्बाध फलते-फूलते रहेंगे, अपराध और अपराधियों का भी विस्तार होता रहेगा। इन दोनों पर निगरानी और अंकुश रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पत्रकारों को फिर सुरक्षा क्यों नहीं? अभी समय बीता नहीं है। मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह कृपया तत्काल हरकत में आएं। गिरफ्तार पत्रकारों की रिहाई सुनिशित करे और कल्लूरी जैसे अधिकारी को दंडित करें।
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