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Friday, September 23, 2016

...अपनी मौत को आमंत्रित करता पाकिस्तान !


पाकिस्तान!
एक शब्दीय एक नाम जिसमें 'पाकअर्थात पवित्र भी निहित है। किंतु हरकतें नापाक और सिर्फ नापाक !!  ठीक बेशर्म की तरह जिसमें 'शर्मतो मौजूद है लेकिन शर्म की नमी से महरूम पाकिस्तानी आंखें सूख कर काली चेतनाहीन हो चुकी हैं। बेशर्म भी अत्यंत ही छोटी उपमा है पाकिस्तान और पाकिस्तानियों के लिए। सहसा विश्वास नहीं होता कि     पाक शब्द को हर पल, हल क्षण लांछित करनेवाला स्वयं को इंसान कैसे कह सकता है। पाकिस्तान और पाकिस्तानी ऐसा कर रहे हैं।
पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर हसीन एंकरों के हाव-भाव और काली जुबान से अंगारयुक्त शब्दों को देख-सुन अवाक रह जाएंगे आप। खूबसूरत चेहरों के पीछे पोषित पाक की कालिमा ये हसीन बालाएं छिपा नहीं पा रहीं। गुलाबी कपोलों के पीछे कालिमा ही कालिमा। बदसूरत, विद्रूप। हद भी तब शरमा कर सिमट गई जब इन बालाओं ने बेहिचक कह डाला कि भारत की मोदी सरकार ने अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए पठानकोट की तरह स्वयं हमला कर अपने ही जवानों को मरवा डाला। तरह-तरह के कुतर्क दे पाकिस्तानी चैनलों पर ये साबित करने की कोशिश की जा रही थी कि भारत में आतंकी हमले कोई बाहरी नहीं स्वयं भारत करवाता रहा है। तरह-तरह के अनर्गल आरोप। सचाई के बिल्कुल उलट गंदी जुबान से निकले गंदे आरोप। क्या इन्हें हम स्वीकार कर मौन रह जाएंगे? सवाल ही पैदा नहीं होता। बर्दाश्त की भी एक सीमा होती है। अब और नहीं। बेकसूर जवानों- नागरिकों के बलिदान अब हम जाया नहीं होने दे सकते। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के महामंत्री राम माधव ने बिल्कुल ठीक कहा है कि एक दांत के बदले पूरा जबड़ा तोड़ दिया जाना चाहिए।
हाल के दिनों में सीमा पर बढ़ती पाकिस्तानी घुसपैठ और खूनी आतंकी हमलों ने पाकिस्तानी मंसूबे को बेनकाब कर दिया है। मेरी तो दृढ़ मान्यता है कि वस्तुत: पाकिस्तानी शासक अपनी विफलताओं से अपनी अवाम का ध्यान हटाने के लिए कश्मीर को मुद्दा बना घुसपैठ और भारत के अंदर आतंकी हमलों को अंजाम दे रहे हैं। अपने जन्मकाल से ही पाकिस्तान ऐसा करता आया है। 1947 में कबाईली वेशभूषा में अपने सैनिकों को भारत में विलय हो चुके कश्मीर में घुसपैठ करा पाकिस्तान अपने इस चरित्र को चिन्हित कर चुका है।
यह ठीक है कि भारत अहिंसा और शांति का पुजारी रहा है। संयम के रूप में यह पूंजी हमें ंिहंसा अथवा युद्ध के पक्ष में पहल करने से हमेशा रोकती रही है।  1947, 1965, 1971 और 1999 में हमारी सेना तब सक्रिय हुई जब संयम की सारी सीमा पार करने को पाकिस्तान ने हमें मजबूर कर दिया था। आश्चर्य कि निरंतर पराजय के बाद भी पाकिस्तानी शासक भारत विरोधी अपनी हरकतों से बाज नहीं रहे। उनकी मंशा और मजबूरी साफ है। पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति और निर्वाचित प्रतिनिधियों पर सेना के प्रभाव के कारण वहां की सरकार वस्तुत: अपने अस्तित्व के रक्षार्थ भारत विरुद्ध कार्रवाई के लिए विवश है। पाकिस्तानी मीडिया के जिस कुत्सित आचरण का मैंने ऊपर उल्लेख किया है वह पाकिस्तानी शासकों और सेना के दबाव में प्रस्तुत किए गए हैं। पूरा विश्व जानता है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अपनी सेना के इशारे पर नाचने को विवश हैं। ध्यान रहे, भारत - पाकिस्तान के ताजा विवाद के बीच पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी ज्यादा सक्रिय हैं। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने खुले शब्दों में जिस प्रकार परमाणु युद्ध की धमकी दी है उससे साफ है कि पाकिस्तानी सेना पाकिस्तान को युद्ध में झोंक वहां सत्ता पर कब्जा करना चाहती है। कोई आश्चर्य नहीं कि, नवाज शरीफ सेना के हाथों कठपुतली बन गए हैं। 1971 में मजबूर हो भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को मौत दी थी। अगर 2016 में भारत मजबूर हुआ तो अंजाम की कल्पना सहज है।  इस बार निशाने पर होगा संपूर्ण पाकिस्तान का अस्तित्व।
खैर यह तो पाकिस्तान का आंतरिक मामला हुआ। हमारी चिंता अपनी सीमा और राष्ट्र की अखंडता को लेकर है। भूतकाल में पाकिस्तान की नापाक हरकतों के प्रति अति संयम बरतने की गलती हम कर चुके हैं। सन 2001 में संसद पर हमले के बाद ही हमें पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करते हुए उसे सबक सिखा देना चाहिए था। साक्ष्य मौजूद हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने तब पाकिस्तान पर आक्रमण करने का निर्णय भी ले लिया था। सेना को तद्संबंधी आवश्यक निर्देश जारी किए जा चुके थे। सेना गतिमान भी हो चुकी थी। लगभग 5 लाख भारतीय सैनिक पश्चिमी सीमा पर तैनात किए जा चुके थे। लेकिन दुखद रूप से अंतरराष्ट्रीय, विशेषकर अमेरिकी दबाव के बाद प्रधानमंत्री वाजपेयी पीछे हट गए। वैसे अमेरिका के साथ-साथ रूस और ब्रिटेन ने भी वाजपेयी के उपर  पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने का दबाव बनाया था। तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी  की राय की उपेक्षा कर तब वाजपेयी ने पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के आदेश को वापस ले लिया था। वाजपेयी का वह फैसला एक बड़ी भूल थी। प्रधानमंत्री वाजपेयी के तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार ब्रजेश मिश्र ने तब एक अमेरिकी समीक्षक को बताया था कि वाजपेयी अपने लंबे राजनीतिक जीवन के अंत में नहीं चाहते थे कि 'शांतिदूतके रूप में उनकी पहचान छीन ली जाए। हालांकि, वाजपेयी के उक्त निर्णय को पाकिस्तान ने 'परमाणु भयसे प्रभावित निरुपित किया था।
बहरहाल ताजा घटनाक्रम हमें संयम त्यागने को मजबूर कर रहे हैं। पटानकोट और अब उरी की घटना के बाद अगर भारत ने पाकिस्तान को उसी की भाषा में सबक नहीं सिखाया तब 2001 की भांति पाकिस्तान पुन: हमें 'परमाणु भयभीतनिरुपित कर उपहास करने से नहीं चूकेगा।  भारत को चाहिए कि वह पाकिस्तान को स्पष्ट शब्दों में संदेश दे दे कि परमाणु युद्ध से वह भयभीत होनेवाला नहीं। भारत देश भारतीय जनता का समूह है और यह समूह अब पाकिस्तान को सबक सिखाने को व्यग्र है। इस भारतीय मन की भावना का सम्मान होना ही चाहिए। पाकिस्तान ने चिकोटी काटने से शुरुआत कर अपने हाथ अब हमारी गर्दन पर रख दिए हैं। अब इस हाथ को काट ही दिया जाना चाहिए। राम माधव उवाचित जबड़ा उखाडऩे से आगे बढ़ते हुए हमें पाकिस्तान को यह बता देना चाहिए कि जरूरत पडऩे पर हम जबड़े ही नहीं उसके पेट की आंत भी बाहर निकाल लेने सक्षम हैं। भारत माता के सिर पर विराजमान गौरव मुकुट पर कोई धब्बा हम नहीं लगने दे सकते, वह अक्षुण्ण है। शुरुआत पाकिस्तान ने की है तो फिर कोई हिचक क्यों? हां, सबक सिखाने के स्वरूप, समय और चरित्र निर्धारित करने के पूर्व व्यापक मंथन अवश्य हो। क्योंकि बगैर किसी जोखिम के यह सबक स्थायी और निर्णायक होना चाहिए। ताकि , पाकिस्तान 'पाकऔर 'नापाकके बीच के फर्क को भी समझ ले।

1 comment:

todaynews said...

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