कश्मीर, आतंकवाद, पाक अधिकृत
कश्मीर और बलुचिस्तान
को लेकर भारत
सरकार, विशेष कर प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने
जो कड़ा रुप
अख्तियार किया है
उससे बेचैन-हताश
पाकिस्तान अब नये-नये हथकंडे
अपना रहा है।
ताजा घटना विकासक्रम
गंभीर है। भारत
सरकार को इसका
माकूल प्रत्युत्तर देना
होगा। पाकी प्रधानमंत्री
नवाज शरीफ ने
22 सांसदों के एक
दल का गठन
कर विश्व के
महत्वपूर्ण देशों में भेजने
की योजना बनाई
है। नवाज शरीफ
का कहना है
कि यह दल
कश्मीर में कथित
रूप से जारी
संघर्ष के सबंध
में विश्व को
जानकारी देगा। अर्थात विश्व
का जनमत अपने
पक्ष में कर
कश्मीर में जारी
आतंकवादी घटनाओं को 'आजादी
का संघर्ष’ बताने
की कोशिश की
जाएगी। इस दल
को पाकिस्तानी संसद,
जनता और सरकार
के पूरे समर्थन
का आश्वासन शरीफ
ने दिया है।
शरीफ यहीं नहीं
रुक रहे, उन्होंने
दशकों पूर्व संयुक्त
राष्ट्र द्वारा कश्मीरियों के
पक्ष में आत्मनिर्णय
के अधिकार संबंधी
पारित प्रस्ताव की
भी चर्चा की।
शरीफ का आरोप
है कि संयुक्त
राष्ट्र अपने पारित
प्रस्ताव को क्रियान्वित
करवाने में विफल
रहा है। प्राप्त
जानकारी के अनुसार
आगामी नवंबर माह
में होने वाली
संयुक्त राष्ट्र की साधारण
सभा में नवाज
शरीफ कश्मीर के
मुद्दे को जोरदार
ढंग से उठाने
की कोशिश करेंगे।
चूंकि उक्त बैठक
में भारत के
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के
जाने की संभावना
क्षीण है, विदेशमंत्री
सुषमा स्वराज भारत
का प्रतिनिधित्व करेंगी।
नवाज शरीफ इस
अवसर का लाभ
उठाने की कोशिश
करेंगे।
चंूकि पाकिस्तान के नापाक
इरादे सतह पर
आ गये हैं,
भारत को भी
कड़े फैसले लेने
होंगे। विश्व के अन्य
देशों में पाकिस्तानी
संसदीय दल भेजने
की 'शरीफ योजना’
को हल्के से
नहीं निया जा
सकता। ध्यान रहे
1970 में पाकिस्तान में संपन्न
पहले आम चुनाव
में जब तत्कालीन
पूर्वी पाकिस्तान के नेता
शेख मुजीबुर रहमान
की अवामी लीग
को बहुमत मिल
गया, तब पश्चिमी
पाकिस्तान में
पाकिस्तान पिपुल्स पार्टी के
नेता जुल्फिकार अली
भुट्टो ने मुजीबुर
रहमान के सरकार
बनाने का विरोध
किया। तब पाकिस्तानी
सेना भी रहमान
के खिलाफ भुट्टो
के साथ थी।
बातें इतिहास की
हैं किंतु चिन्हित
प्रासंगिकता उन्हें उल्लेख करने
को विवश कर
रही है। मुजीबुर
रहमान के नेतृत्व
में पूर्वी पाकिस्तान
में जनता ने
विद्रोह कर दिया।
पाकिस्तानी शासकों ने सेना
भेज दमनात्मक कार्रवाई
शुरू कर दी।
आम जनता पर
सेना के अत्याचार
इतने बढ़े कि
बड़ी संख्या में
शरणार्थी सीमा पार
कर भारत में
आने लगे। मानवाधिकार
उल्लंघन जब चरमसीमा
को पार कर
गई तब भारत
की तत्कालीन प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी ने विश्व
समुदाय का ध्यान
उस ओर आकृष्ट
किया। पूर्वी पाकिस्तान
में जारी अत्याचार
का भारत ने
सार्वजनिक विरोध किया। भारतीय
सीमा पार के
उन अत्याचारों से
पूरा भारत आक्रोशित
हो उठा था।
लोकतांत्रिक पद्धति से निर्वाचित
मुजीबुर रहमान भारत से
सहायता की अपेक्षा
कर रहे थे। तब
इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश
नारायण सहित भारत
के कुछ अन्य
महत्वपूर्ण नेताओं को विदेश
भेज पाकिस्तानी अत्याचार
से उन्हें अवगत
कराया। पाकिस्तान के विरुद्ध
व्यापक वातावरण निर्माण करने
के बाद भारत
को पूर्वी पाकिस्तान
में सैन्य कार्रवाई
के लिए मजबूर
होना पड़ा। पाकिस्तान
की हार हुई।
पाकिस्तानी सेना ने
भारतीय सेना के
समक्ष आत्मसमर्पण किया।
लोकतंत्र की जीत
के साथ पूर्वी
पाकिस्तान, पाकिस्तान से अलग
हो स्वतंत्र बांगलादेश
बना। विश्व समुदाय
के समक्ष पाकिस्तानी
चिल्ल-पों का
कोई असर नहीं
हुआ। भारत को
सभी का समर्थन
मिला।
आज जब पाकिस्तान
अपने नापाक इरादे
के साथ विश्व
समुदाय को अपने
पक्ष में करने
की कोशिश कर
रहा है, भारत
को तत्काल कड़े
कदम उठाते हुए
उसके इरादों को
जमींदोज कर देना
चाहिए। कश्मीर में जारी
आतंकवादी हिंसक घटनाओं से
पूरा भारत देश
आक्रोशित है।
देश चाहता है कि
केंद्र सरकार और विलंब
न करते हुए
इस पुराने रोग
का स्थायी निदान
कर दे। प्रधानमंत्री
आश्वस्त रहें, देश उनका
साथ देगा।
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