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Tuesday, September 13, 2016

कश्मीर : 'साइड बिजनेस’ के 'साइड इफेक्ट’!



कश्मीर में विस्फोट हो रहे हैं !
कश्मीर में आग लगी है!!
कश्मीर जल रहा है !!!
और निर्विवाद रूप से इसके लिए बारूद और पलीते मुहैया करा रहा है पड़ोसी पाकिस्तान! वह पाकिस्तान जिसके शासकों का अस्तित्व ही कश्मीर को लेकर भारत विरुद्ध घृणा पर टिका है। यह सच सर्वव्यापी है। पूरा संसार कश्मीर, पाकिस्तान और भारत की इस अवस्था से परिचित है। दुखद यह कि पिछले दशकों से कायम इस 'अवस्थापर इतिश्री के कोई संकेत उपलब्ध नहीं हैं। पाकिस्तान तो कश्मीर के बहाने पूरे भारत में आतंकवाद फैलाने का अपराधी है। निर्दोष लोगों की मौत पर जश्न मनानेवाला पाकिस्तान अब कश्मीर में अपने घृणा अभियान को तेज करते हुए कथित 'आजादीऔर 'शहीदका शिगूफा छोडऩे लगा है।  कश्मीर के एक बड़े भाग पर अनधिकृत कब्जा कर वहां प्रताडऩा का घोर अमानवीय तांडव मचानेवाला पाकिस्तान अपने देश में हर क्षेत्र में विफलताओं को ढंकने के लिए कश्मीर का राग अलापता रहता है। हमने अपनी ओर से हरसंभव कोशिश की कि, बातचीत के माध्यम से  कथित विवाद का  शांतिपूर्ण हल ढूंढ लिया जाए। लेकिन हिंसा समर्थक पाकिस्तान हमेशा वादाखिलाफी और पीठ में छुरा घोंपने की नीति पर चलता रहा। अब हमारे सामने यक्ष प्रश्न यह कि, आखिर कब तक इसे बर्दाश्त किया जाए?
पिछले दिनों एक आतंकवादी सरगना बुरहान वानी  जब कानून विरोधी हिंसक कार्रवाई के दौरान  मारा गया तब बौखलाकर पाकिस्तान ने कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी तत्वों को हिंसा के लिए उकसाया। नतीजतन पिछले दो माह से अधिक समय से घाटी में कफ्र्यू लागू करने के लिए प्रशासन को मजबूर होना पड़ा। बावजूद इसके पाकिस्तान की शह पर अलगाववादी वहां ंिहंसक घटनाओं को अंजाम देने से बाज नहीं रहे हैं। लोकतंत्र और आम सहमति की समर्थक भारत सरकार ने एक सही पहल करते हुए सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल को कश्मीर भेजा ताकि वे सभी पक्षों से बातचीत कर घाटी में शांति स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर सकें। लेकिन, वहां जो कुछ हुआ उससे पूरा संसार अवगत है। पाकिस्तानी शह पर अलगाववादियों ने बातचीत से इंकार कर दिया। तो क्या भारत सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहे?
चूंकि, कश्मीर की कथित समस्या विशुद्ध रूप से राजनीतिक है, इसका राजनीतिक हल ही ढूंढना होगा। यह तो आम सिद्धांत की बात हुई। किंतु, पिछले : दशक से अधिक का अनुभव अब इस सिद्धांत को लांघ किसी अन्य निर्णायक कदम को उठाने की चुगली कर रहे हैं। हर चीज की एक सीमा होती है और कश्मीर जैसे संवेदनशील भारतीय गणराज्य के अंग में इस अवस्था को अनंतकाल तक जारी नहीं रहने दिया जा सकता। लोकतांत्रिक भावना के अनुरूप भारत सरकार ने, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, पहल करते हुए सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल को घाटी में भेजने का निर्णय लिया था। लेकिन, प्रतिनिधि मंडल के कतिपय सदस्यों ने आम सहमति से इतर अलग से अलगाववादी नेताओं से बातचीत करने की कोशिश की। प्रतिनिधि मंडल के इन सदस्यों का आचरण निश्चय ही आपत्तिजनक था। भाजपा के महासचिव राम माधव ने तंज कसते हुए टिप्पणी की कि 'साइड बिजनेस करनेवालों ने अपना हश्र देख लिया।राम माधव का आशय हुर्रियत नेताओं द्वारा प्रतिनिधि मंडल के इन सदस्यों से मिलने से इंकार कर देने को लेकर था। राम माधव की उक्त कड़ी टिप्पणी की कुछ वर्गों ने आलोचना भी की है। लेकिन, उनकी टिप्पणी आधारहीन नहीं थी। प्रतिनिधि मंडल के वे सदस्य भूल गए थे कि वे संपूर्ण संसद का अर्थात पूरे देश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, किसी दल विशेष का नहीं। ऐसे में मूल मंडल से इतर अलगाववादी नेताओं से मिलने की कोशिश पूर्णत: एक गलत कदम था। अलगाववादी नेताओं के हाथों उन्हें जो अपमान झेलना पड़ा उससे पूरा देश  स्वयं को अपमानित महसूस कर रहा है। शरद यादव, सीताराम येचुरी, डी राजा, असदुद्दीन ओवैसी के आचरण से वस्तुत: पूरे देश को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है।
लेकिन, बात यहीं खत्म नहीं होती। राम माधव की 'साइड बिजनेससंबंधी टिप्पणी भी अनायास एक कड़वी हकीकत को  रेखांकित कर गई।  मेरी इस प्रतिक्रिया पर सभवत: उंगलियां उठेंगी लेकिन, जब बात कड़वी सचाई उद्धृत करने की हो तो, ऐसी आलोचनाओं का सामना करने को तैयार रहना ही होगा। राम माधव ने अनजाने में ही सही यह जता दिया है कि, कश्मीर को लेकर आरंभ से ही विभिन्न दल, विभिन्न नेता 'साइड बिजनेसकी राजनीति करते रहे हैं। अगर आज तक  इसका समाधान नहीं हो पाया है तो एक बहुत बड़ा कारण यह 'साइड बिजनेसही है। तुष्टिकरण की जिस नीति की बराबर समय-समय पर आलोचना होती रही है वह इसी 'साइड बिजनेसका एक 'साइडहै। वोट बैंक की राजनीति करनेवालों ने संपूर्ण अल्पसंख्यक समुदाय के साथ-साथ कश्मीर को लेकर भी 'साइड बैंक खातेखोल रखे हैं। यह वर्ग जानता है कि उनके 'साइड बैंक खातोंमें इजाफा तभी तक होता रहेगा जब तक विवाद  मौजूद रहेगा।  फिर यह वर्ग विवाद का हल चाहेगा तो क्यों?  इस वर्ग में सभी पक्ष शामिल हैं। जम्मू-कश्मीर के अंतिम शासक राजा हरीसिंह के पुत्र डा. कर्णसिंह ने अपने एक संस्मरण में एक घटना का उल्लेख किया है। घाटी के एक भाग में राशन वितरण के दौरान पंक्ति में खड़े लोग अचानक  पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। राशन वितरित करनेवाला मुंशी बेचारा अवाक। वितरण पश्चात शाम के समय वह मुंशी पाकिस्तान जिंदाबाद नारे लगानेवाले कुछ व्यक्तियों के घर गया। उसने जब नारेबाजी का कारण पूछा तो जवाब मिला कि ''जब तक हम पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाते रहेंगे, तभी तक तो हमें सब्सिडी मिलती रहेगी।’’ अवाक मुंशी बेचारा वापस लौट गया। यह एक उदाहरण है घाटी में जारी निरंतर 'अशांतिका।
कश्मीर को 'साइड बिजनेसबना राजनीति करनेवाले कम-अज़-कम अब चेत जाएं। निर्णायक कदम को लेकर किसी असमंजस में वे रहें। सन 1971 में भारत ने ऐसा कर दिखाया है। भारत का वह कड़ा कदम ही था जिसने पाकिस्तान के एक बड़े भाग पूर्वी पाकिस्तान को उसके नक्शे से विलुप्त कर बांग्लादेश का उदय कराया था।  तब भी भारत  ने अत्यंत ही मजबूर हो जाने के बाद वैसा कदम उठाया था। आज की स्थितियां वस्तुत: उससे भी बदतर हैं। पूरी कश्मीर घाटी को पाकिस्तान ने आतंकवाद के साये में रणभूमि का रूप दे दिया है। फिर हम मौन कैसे रहें? चिकोटी काटते-काटते पाकिस्तान अपने हाथ जब हमारी गर्दन की ओर बढ़ाने लगा है तब उस हाथ को काट क्यों दिया जाए? शांति और अहिंसा का पुजारी भारत अपनी अखंडता  सार्वभौमिकता के पक्ष में स्थायी निदान हेतु अरुचिकर किंतु जरूरी निर्णायक 'कदमउठाता है तो दोषी पाकिस्तान ही होगा। बेहतर हो पाकिस्तानी शासक इसके लिए हमें मजबूर करें।  

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