centeral observer

centeral observer

To read

To read
click here

Friday, September 16, 2016

आरक्षण पर फैसला तो ठीक है, किंतु.....?


विगत वर्ष जब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पूरी की पूरी आरक्षण व्यवस्था की पुनर्समीक्षा किए जाने का सुझाव दिया था तभी से जातीय आधार पर आरक्षण की जगह आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने की मांग ने जोर पकड़ लिया था। आर्थिक आधार पर आरक्षण हर दृष्टि से तार्किक और न्यायसंगत है। किंतु, भारत जैसे लोकतंत्र में जहां पूरी की पूरी संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली 'राजनीतिक वोट बैंकÓ प्रभावित हो वहां जातीयता के दंश को सहने की लोकतांत्रिक मजबूरी भी कायम है।
 निजी बातचीत में आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात को स्वीकार करनेवाले विभिन्न दलों के राजनेता समय आने पर वर्तमान जातीय व्यवस्था को और मजबूत किए जाने के पक्षधर बन जाते हैं।  कोई आश्चर्य नहीं कि महाराष्ट्र जैसे संपन्न और अनेक मामलों में आदर्श प्रदेश भी इस राजनीतिक मजबूरी का शिकार दिख रहा है।  मराठा आरक्षण इसका ताजा उदाहरण है।
मराठा समुदाय आर्थिक सामाजिक तौर पर समाज और राजनीति में संपन्न, प्रभावशाली माना जाता रहा है। हालांकि, इस समुदाय में शामिल कुछ जातियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। इनमें से एक उपजाति कुणबी को पिछड़ा वर्ग में आरक्षण का लाभ पहले से मिला हुआ है। पिछले विधानसभा चुनावों के ठीक पूर्व कांग्रेस - एनसीपी सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को नौकरी और शिक्षा क्षेत्र में 16 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर दिया था।  मंशा सीधे-सीधे चुनाव में राजनीतिक लाभ उठाने की थी। लेकिन, तब राजनीति की चलती अलग बयार के कारण उनका तीर निशाने से चूक गया। बाद में कानूनी पेंच के कारण उच्च न्यायालय ने भी आरक्षण के फैसले को खारिज कर दिया।  नाराज मराठा समुदाय ने प्रदेश की नई फड़णवीस सरकार पर तद्हेतु दबाव बनाना शुरू कर दिया। वोट बैंक की राजनीति और प्रभावशाली मराठा समुदाय के समक्ष मजबूर फड़णवीस सरकार ने कानूनी पेंच से बचते हुए मराठा आरक्षण के पक्ष में फैसले के प्रति अपनी सहमति जाहिर कर दी। लेकिन, कानूनी अड़चन ऐसी कि, अभी भी आरक्षण के पक्ष में निर्णायक फैसला नहीं हो पाया। क्षुब्ध मराठा समुदाय अब आंदोलन पर उतारू है।  वैसे समीक्षक संभावना जता रहे हैं कि अंतत: देवेंद्र फड़णवीस सरकार विपक्ष को भरोसे में ले उनकी सहमति से मराठा आरक्षण के पक्ष में  नया कानून बनाने में सफल हो जाएंगे। चूंकि, मूल फैसला कांग्रेस-एनसीपी का ही था, वे विरोध नहीं कर पाएंगे।
आरक्षण की राजनीतिक मजबूरी के बीच समाज का एक बड़ा वर्ग संघ प्रमुख भागवत के पुनर्समीक्षा संबंधी सुझाव के साथ है। होना भी चाहिए। अगर बात समस्याओं और प्रदेश की हो तो, देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से सटे पालघर में कुपोषण से होनेवाली बच्चों की मौत की समस्या को हाशिए पर रख आरक्षण की चर्चा से पीड़ा उत्पन्न होती है। महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. विद्यासागर राव ने पालघर में कुपोषण और मौतों को लेकर शीघ्र आवश्यक कदम उठाए जाने की मांग की है। ध्यान रहे, किसी प्रदेश के राज्यपाल ऐसे मामलों में तभी हस्तक्षेप अथवा टिप्पणी करते हैं जब आरोप घटना के प्रति उपेक्षा के लगते हैं। और तब प्राथमिकताएं चिन्हित होती हैं। आलोच्य प्रसंग में भी तटस्थ विचारक एकमत हैं कि महाराष्ट्र प्रदेश की सरकार को पहले बल्कि, प्राथमिकता के आधार पर कुपोषण सहित ऐसी अन्य समस्याओं के निवारण के प्रति सक्रिय होना चाहिए, कि एक जाति अथवा समुदाय विशेष के आरक्षण के प्रति।

No comments: