91 वर्ष पूर्व 27 सितंबर 1925 को नागपुर में स्थापित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इतिहास में यह पहला अवसर है, जब किसी राज्य इकाई मने विद्रोह का बिगुल बजाया है। इस अकल्पनीय घटना विकासक्रम से संघऔर भाजपा का चिंतित होना स्वभाविक है।
लगभग 54 वर्षों तक संघ से जुड़े रहने वाले गोवा राज्य इकाई के प्रमुख सुभाष वेलिंगकर को अज्ञात कारणों से पदमुक्त किये जाने के विरोध में राज्य के स्वयंसेवकों द्वारा विद्रोह कर 'आरएसएस’ गोवा के नाम से अलगसंगठन बनाने की घोषणा ऐतिहासिक है। घोर अनुशासन के लिए सुख्यात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कभी ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की होगी। सुभाष वेलिंगकर के नेतृत्व में न केवल अलग 'गोवा संघ’ इकाई कागठन किया गया है, बल्कि गोवा में होने वाले विधान सभा चुनाव में भाजपा की पराजय का बीड़ा उठाने की भी घोषणा नये संगठन की ओर से की गई है।
पहले से ही गोवा में असहज भाजपा के लिए यह नई घटना बेचैन कर देने वाली है। वेलिंगकर की घोषणा कि, उन्होंने 2012 में कांग्रेस को धूल चटाई थी। अब 2017 में भाजपा उसी गति को प्राप्त होगी, भाजपा नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती है। समय रहते अगर वेलिंगकर को मना कर संतुष्ट नहीं किया गया तो चुनाव में भाजपा जीत की उम्मीद नहीं कर सकती है। इस तथ्य से परिचित नागपुर स्थित संघ मुख्यालय ने वेलिंगकर को समझाने-बुझाने की कोशिश शुरू कर दी है। हालांकि वेलिंगकर ने घोषणा की है कि उन्होंने नागपुर मुख्यालय से संबंध तोड़ लिया है, वेलिंगकर यह बताने से भी नहीं चूके है कि चुनाव पश्चात उनकी नई गोवा इकाई नागपुर मुख्यालय से संबंध्दता के लिए गुजारिश करेगी। वेलिंगकर की इस घोषणा से आशा की जा सकती है कि संघ नेतृत्व विवाद का कोई न कोई हल ढूंढ निकालेगा।
भाजपा भी चाहती है कि जल्द से जल्द वेलिंगकर से समझौता कर लिया जाये। इसके लिए जरुरी है कि भाजपा भाषा संबंधी वेलिंगकर की मांग को स्वीकार कर ले। दृढ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए गोवा की भाजपा सरकार ऐसा कर सकती है। संघ 'गोवा विद्रोह’ के संभावित दुष्परिणाम से अनजान नहीं हो सकता। अनुशासन उसका प्रिय 'घोष शब्द’ है। इसके भंग होने की स्थिति में इसमें निहित संक्रामकता को संघ कभी विस्तारित नहीं होने देना चाहेगा। विभिन्न काल-खंड में विभिन्न कारणों से संघ के अंदर विरोध तो हुये हैं, अनुशासनात्मक कार्रवाइयां भी हुई हैं, विद्रोह कभी नहीं हुआ है। सन 1931 में बैंक लूट की एक घटना में संलिप्तता के आरोप में बाल हुब्बार को संघ से निकाला गया था। सन 1961 में मा. गो. वैद्य को जनसंघ से संबंध रख सक्रिय होने के आरोप में पदमुक्त किया गया था। पुणे के दादासाहब बेंद्रे और सांगली के संभाजी भीड़े के खिलाफ भी संघ ने अनुशासनात्मक कार्रवाइयां कर पदमुक्त किया था। बलराज मधोक संघ के नानाजी देशमुख और बालासाहेब देवरस के कट्टर विरोधी थे। उन्हें संघ से निलंबित कर दिया गया था, किंतु उन्होंने ‘विद्रोह’ कर किसी समानांतर संस्था का गठन नहीं किया। संजय जोशी के खिलाफ भी संघ ने राजनीतिक कारणों से कार्रवाई की थी। उन्होंने संघ नहीं छोड़ा। आज भी वे एक समर्पित कार्यकर्ता की तरह संघ में सक्रिय हैं। दिलीप देवधर के खिलाफ कोई घोषित कार्रवाई तो नहीं हुई, किंतु उनके साथ जिस प्रकार 'बहिष्कार’ सरीखा व्यवहार किया जा रहा है, संदेश साफ है। किंतु, इनमें में से किसी ने भी संघ के खिलाफ विद्रोह नहीं किया गया। सुभाष वेलिंगकर का विद्रोह इसीलिए ऐतिहासिक निरुपित किया जा रहा है।
सुभाष वेलिंगकर द्वारा गठित संस्था भारतीय भाषा सुरक्षा मंच अंग्रेजी माध्यम की प्राथमिक स्कूलों को अनुदान देने को लेकर गोवा सरकार की आलोचना करता रहा है। वेलिंगकर का अंग्रेजी विरोध सर्वविदित है। भारतीय भाषाओं के पक्ष में आंदोलन चलाने वाले वेलिंगकर चाहते हैं कि प्राथमिक स्तर पर मातृ भाषा में शिक्षा दी जाये। वेलिंगकर की मांग वस्तुत: हर राष्ट्र प्रेमियों की मांग है। विश्व के सभी विकसित देशों में प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही है। सच तो यह है कि न केवल गोवा बल्कि पूरे देश में शिक्षा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन करते हुए प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा का शिक्षा का माध्यम बनाया जाना चाहिए। इससे राष्ट्र गौरव में भी वृद्धि होगी। क्या संघ और भाजपा इस सर्वथा उचित मांग को अमली जामा पहनाएगी?
लगभग 54 वर्षों तक संघ से जुड़े रहने वाले गोवा राज्य इकाई के प्रमुख सुभाष वेलिंगकर को अज्ञात कारणों से पदमुक्त किये जाने के विरोध में राज्य के स्वयंसेवकों द्वारा विद्रोह कर 'आरएसएस’ गोवा के नाम से अलगसंगठन बनाने की घोषणा ऐतिहासिक है। घोर अनुशासन के लिए सुख्यात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कभी ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की होगी। सुभाष वेलिंगकर के नेतृत्व में न केवल अलग 'गोवा संघ’ इकाई कागठन किया गया है, बल्कि गोवा में होने वाले विधान सभा चुनाव में भाजपा की पराजय का बीड़ा उठाने की भी घोषणा नये संगठन की ओर से की गई है।
पहले से ही गोवा में असहज भाजपा के लिए यह नई घटना बेचैन कर देने वाली है। वेलिंगकर की घोषणा कि, उन्होंने 2012 में कांग्रेस को धूल चटाई थी। अब 2017 में भाजपा उसी गति को प्राप्त होगी, भाजपा नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती है। समय रहते अगर वेलिंगकर को मना कर संतुष्ट नहीं किया गया तो चुनाव में भाजपा जीत की उम्मीद नहीं कर सकती है। इस तथ्य से परिचित नागपुर स्थित संघ मुख्यालय ने वेलिंगकर को समझाने-बुझाने की कोशिश शुरू कर दी है। हालांकि वेलिंगकर ने घोषणा की है कि उन्होंने नागपुर मुख्यालय से संबंध तोड़ लिया है, वेलिंगकर यह बताने से भी नहीं चूके है कि चुनाव पश्चात उनकी नई गोवा इकाई नागपुर मुख्यालय से संबंध्दता के लिए गुजारिश करेगी। वेलिंगकर की इस घोषणा से आशा की जा सकती है कि संघ नेतृत्व विवाद का कोई न कोई हल ढूंढ निकालेगा।
भाजपा भी चाहती है कि जल्द से जल्द वेलिंगकर से समझौता कर लिया जाये। इसके लिए जरुरी है कि भाजपा भाषा संबंधी वेलिंगकर की मांग को स्वीकार कर ले। दृढ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए गोवा की भाजपा सरकार ऐसा कर सकती है। संघ 'गोवा विद्रोह’ के संभावित दुष्परिणाम से अनजान नहीं हो सकता। अनुशासन उसका प्रिय 'घोष शब्द’ है। इसके भंग होने की स्थिति में इसमें निहित संक्रामकता को संघ कभी विस्तारित नहीं होने देना चाहेगा। विभिन्न काल-खंड में विभिन्न कारणों से संघ के अंदर विरोध तो हुये हैं, अनुशासनात्मक कार्रवाइयां भी हुई हैं, विद्रोह कभी नहीं हुआ है। सन 1931 में बैंक लूट की एक घटना में संलिप्तता के आरोप में बाल हुब्बार को संघ से निकाला गया था। सन 1961 में मा. गो. वैद्य को जनसंघ से संबंध रख सक्रिय होने के आरोप में पदमुक्त किया गया था। पुणे के दादासाहब बेंद्रे और सांगली के संभाजी भीड़े के खिलाफ भी संघ ने अनुशासनात्मक कार्रवाइयां कर पदमुक्त किया था। बलराज मधोक संघ के नानाजी देशमुख और बालासाहेब देवरस के कट्टर विरोधी थे। उन्हें संघ से निलंबित कर दिया गया था, किंतु उन्होंने ‘विद्रोह’ कर किसी समानांतर संस्था का गठन नहीं किया। संजय जोशी के खिलाफ भी संघ ने राजनीतिक कारणों से कार्रवाई की थी। उन्होंने संघ नहीं छोड़ा। आज भी वे एक समर्पित कार्यकर्ता की तरह संघ में सक्रिय हैं। दिलीप देवधर के खिलाफ कोई घोषित कार्रवाई तो नहीं हुई, किंतु उनके साथ जिस प्रकार 'बहिष्कार’ सरीखा व्यवहार किया जा रहा है, संदेश साफ है। किंतु, इनमें में से किसी ने भी संघ के खिलाफ विद्रोह नहीं किया गया। सुभाष वेलिंगकर का विद्रोह इसीलिए ऐतिहासिक निरुपित किया जा रहा है।
सुभाष वेलिंगकर द्वारा गठित संस्था भारतीय भाषा सुरक्षा मंच अंग्रेजी माध्यम की प्राथमिक स्कूलों को अनुदान देने को लेकर गोवा सरकार की आलोचना करता रहा है। वेलिंगकर का अंग्रेजी विरोध सर्वविदित है। भारतीय भाषाओं के पक्ष में आंदोलन चलाने वाले वेलिंगकर चाहते हैं कि प्राथमिक स्तर पर मातृ भाषा में शिक्षा दी जाये। वेलिंगकर की मांग वस्तुत: हर राष्ट्र प्रेमियों की मांग है। विश्व के सभी विकसित देशों में प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही है। सच तो यह है कि न केवल गोवा बल्कि पूरे देश में शिक्षा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन करते हुए प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा का शिक्षा का माध्यम बनाया जाना चाहिए। इससे राष्ट्र गौरव में भी वृद्धि होगी। क्या संघ और भाजपा इस सर्वथा उचित मांग को अमली जामा पहनाएगी?
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