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Tuesday, February 3, 2009

लोकतंत्र के गालों पर भारद्वाज का तमाचा


मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालास्वामी को 'पालिटिकल बॉस' बनने से परहेज करने की नसीहत देने वाले केंद्रीय कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज अपनी कमजोर याददाश्त को दुरुस्त कर लें. साथ ही पार्टी हित के अनुकूल कानून की व्याख्या करने से भी कानून मंत्री परहेज करें. देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी का निर्वहन करने वाले चुनाव आयोग को क्या स्वयं कानून मंत्री 'पालिटिकल अखाड़ा' बनाने को तत्पर नहीं दिख रहे? किस नवीन चावला को वे मुख्य चुनाव आयुक्त बनाना चाहते हैं. भारद्वाज और उनकी सरकार न भूलें कि यह वही नवीन चावला हैं जिन्हें शाह आयोग (1977) ने किसी भी सार्वजनिक पद के लिए अयोग्य करार दिया था.
आपातकाल के दौरान दिल्ली के उपराज्यपाल के सचिव के रूप में तब कार्यरत चावला पर शाह आयोग ने यह भी टिप्पणी की थी कि उन्होंने (चावला) एक तानाशाह के रूप में आचरण किया और जनहित के खिलाफ अधिकारों का दुरुपयोग किया. भारद्वाज को अगर इन सब बातों की याद न हो तब उन्हें चावला की ताजा कारगुजारियों की याद दिला ही दें. कानून मंत्री को यह तो याद होगा ही कि चुनाव आयुक्त के पद पर आसीन नवीन चावला ने सन् 2006 में कुछ कांग्रेसी सांसदों की निधि से अपने एक पारिवारिक शैक्षणिक ट्रस्ट के लिए मोटी रकम प्राप्त की थी. यही नहीं, तब कांग्रेस शासित राजस्थान सरकार ने छह एकड़ जमीन आवंटित कर उन्हें अनुगृहीत किया था और ये वही नवीन चावला हैं जो आयोग की बैठक की कार्यवाहियों का ब्योरा बाथरूम में जाकर (बैठक जारी रहते हुए) मोबाइल फोन द्वारा कांग्रेसी नेताओं को दिया करते थे. इतने गंभीर व आपत्तिजनक आचरण के धारक नवीन चावला को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए जाने के पक्ष में मंतव्य देकर कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने निश्चय ही न केवल चुनाव आयोग की गरिमा, निष्पक्षता व प्रतिष्ठा पर पक्षपात व कपट की कालिख उड़ेलने की कोशिश की है बल्कि लोकतंत्र के गालों पर झन्नाटेदार तमाचा भी मारा है. कानून मंत्री के ऐसे प्रयास की न केवल राष्टï्रीय निंदा होनी चाहिए बल्कि भारद्वाज को कानून मंत्री पद से तत्काल मुक्त कर देना चाहिए. नवीन चावला को हटाए जाने संबंधी मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालास्वामी की अनुशंसा को चुनौती देने वाले कानून मंत्री ने निश्चय ही अपनी कानूनी अज्ञानता का परिचय दिया है. भारतीय संविधान ने ऐसी अनुशंसा का अधिकार मुख्य चुनाव आयुक्त को दे रखा है. हां, अनुशंसा को मानना या न मानना सरकार की इच्छा पर निर्भर अवश्य करता है. ऐसी स्थिति में उचित तो यह होता कि सरकार मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा अनुशंसित प्रत्येक बिंदू की निष्पक्षता से पड़ताल कर उचित निर्णय लेती. कानून मंत्री ने ऐसा नहीं किया बल्कि वे और उनकी पार्टी कांग्रेस 'चोर की दाढ़ी में तिनका' की अवस्था में पहुंच तिलमिला उठी. इन लोगों ने मुख्य चुनाव आयुक्त को संविधान प्रदत्त अधिकार को ही चुनौती दे डाली. राजनेता के रूप में राजनीति प्रेरित बयान देकर इन लोगों ने अपने 'पक्षपात' व 'पूर्वाग्रह' को सार्वजनिक कर डाला.
साफ है चुनाव आयोग के राजनीतिकरण के अपराधी ये लोग ही हैं. चुनाव आयोग की ख्याति अंतरराष्टï्रीय स्तर पर है. संसार के कई देश अपने यहां निष्पक्षतापूर्वक चुनाव संपन्न कराने के लिए हमारे चुनाव आयोग को आमंत्रित करते हैं. चुनाव आयोग की इस सुख्याति को तार-तार कर केंद्रीय कानून मंत्री और उनकी कांग्रेस पार्टी ने भारत की प्रतिष्ठा को धूल-धूसरित किया है. वस्तुत: संवैधानिक संस्थओं की अवमानना का सिलसिला इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में ही शुरू हो गया था. तब इंदिरा ने 25 अप्रैल 1973 को सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों के.एन. हेगड़े, ए.एन. ग्रोवर और जे.एन. शेलट की वरीयता को नजरअंदाज कर न्यायाधीश ए.एन. रे को भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया था. पढऩे-सुनने में यह कड़वा तो लगेगा लेकिन सच यही है कि केंद्र की वर्तमान संप्रग सरकार संवैधानिक संस्थाओं के मामले में इंदिरा गांधी की राह पर चल पड़ी है. अपराधी बन बैठे हैं ये भारतीय लोकतंत्र के- भारतीय संविधान के. फिर इन्हें दंडित क्यों न किया जाए. भारत की राष्टï्रपति और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के लिए भी यह चावला प्रकरण 'तेजाबी परीक्षण'
के रूप में सामने आएगा. भारतीय लोकतंत्र को सुपरिणाम की प्रतीक्षा है. साथ ही आसन्न आम चुनाव में जीत के लिए साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाने वाली कांग्रेस के नेता देश की जनता की समझ को कम कर आंकने की भूल न करें.

5 comments:

narendra pant said...

thanks for updating on shah commission .

परमजीत सिहँ बाली said...

जानकारी के लिए आभार।

Unknown said...

Bara Sahi bola hai aapne. Bhardwaj ji kaanoon mantree na hoke Chwala ke ristedaar jyada lag rahe hain.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

wah! aapne apne baare me itna kuchh likhva liya ki kisi or ke baare me janane ki chah khatam ho gai. kyonki or to koi kuchh hoga hee nahi. agar aap sachmuch wah ho jo likha ya likhwaya gya hai to likha gya sab hata do. aap or unche ho jaoge. khud ke blog par apni badai,hamare to samajh nahi aai.
saf saf kahane ke liye sorry, magar likhane se apne aap ko rok na paya.govind goyal sriganganagar, rajasthan

चलते चलते said...

तो क्‍या भारद्धाज पालिटिक्‍स बॉस बनना चाहते है क्‍या सोनिया के।