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Thursday, November 18, 2010

सत्ता के लिए आपराधिक समझौते!

सत्ता पाने के लिए या सत्ता में बने रहने के लिए किसी भी हद तक जाकर अनैतिक समझौते किए जाने का इतिहास पुराना है। सत्तारूढ़ संप्रग और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बार-बार इसे दोहराया है। इस प्रक्रिया में सोनिया अपने दिवंगत पति राजीव गांधी के सिद्धांत को उनके द्वारा प्रस्तुत आदर्श उदाहरण को भी भूल गईं। बल्कि, जानबूझकर भूलती रहीं। 1989 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पराजित हुई, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद उसने सरकार बनाने का दावा नहीं किया। राजीव गांधी ने तब विपक्ष में बैठना स्वीकार किया था। अगर राजीव गांधी चाहते तब जोड़-तोड़कर सरकार का गठन कर प्रधानमंत्री बन सकते थे। राष्ट्रपति द्वारा तद्हेतु आमंत्रण को राजीव गांधी ने ठुकरा दिया था। इसके ठीक विपरीत सन्ï 2004 में बहुमत नहीं मिलने के बावजूद सोनिया गांधी ने पहल कर कांग्रेस के नेतृत्व में अनेक छोटे-बड़े दलों की मिलीजुली सरकार का गठन किया। सन्ï 2009 में भी ऐसा ही किया गया। सन्ï 2004 में सरकार गठन हेतु किया गया समझौता तो नैतिकता के हर मानक को मुंह चिढ़ाने वाला था। बिहार के कुख्यात चारा घोटाला के मुख्य आरोपी लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल का सहयोग लेने से कांग्रेस पीछे नहीं हटी। बल्कि, लालू को मंत्रिमंडल में शामिल कर रेल मंत्रालय का महत्वपूर्ण विभाग सौंपा गया। क्या यह याद दिलाने की जरूरत है कि चारा घोटाला को लेकर सोनिया गांधी सहित कांग्रेस के सभी छोटे-बड़े नेता लालू यादव को भ्रष्टाचार का दानव निरूपित किया करते थे? लालू यादव की उस घोटाले में गिरफ्तारी भी हो चुकी थी। भ्रष्टाचार और हत्या जैसे अपराध के आरोपी झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबू सोरेन की भी सहायता तब सोनिया गांधी ने ली थी। सोरेन को मंत्री बना कोयला जैसा महत्वपूर्ण विभाग सौंपा गया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में तब अनेक दागी चेहरे शामिल किए गए थे। क्या यह दोहराने की जरूरत है कि ऐसे समझौते सिर्फ सत्तावासना की पूर्ति के लिए किए गए थे। ए. राजा को वर्षों भ्रष्टाचार व लूट की छूट प्रधानमंत्री ने दे रखी थी, तो सिर्फ सत्ता में बने रहने के लिए ही। अब तो यह प्रमाणित हो चुका है कि 2 जी स्पेक्ट्रम के मामले में स्वयं प्रधानमंत्री ने नियमों में छूट दी थी। एक अत्यंत ही सनसनीखेज खुलासे में यह तथ्य सामने आया है कि 2 जी स्पेक्ट्रम के लिए गठित मंत्रियों के समूह (जीओएम) के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करते हुए स्वयं प्रधानमंत्री ने ए. राजा के दबाव में समूह के कुछ अधिकार छीन लिए थे। इसके बाद ही ए. राजा ने मनमाने दर पर स्पेक्ट्रम के लाइसेंस जारी किए थे। प्रधानमंत्री निश्चय ही 2 जी स्पेक्ट्रम के घोटाले में शामिल माने जाएंगे। चाहे उन्होंने जानबूझकर ऐसा किया हो या फिर सत्ता की मजबूरी में, अपराध तो उन्होंने किया ही है। मंगलवार को भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) को उसकी 150वीं वर्षगांठ पर नसीहत देते हुए प्रधानमंत्री ने जब यह कहा कि आलोचना और गलती ढूंढऩे, तुक्केबाजी करने और तर्कसंगत अनुमान लगाने, क्षम्य त्रुटि और जानबूझकर की गई गलती में बहुत कम अंतर होता है, प्रधानमंत्री अपरोक्ष में अपने अपराध पर परदा डाल रहे थे। यह भूलकर कि 2 जी स्पेक्ट्रम के मामले में उनकी 'भूल' कोई क्षम्य त्रुटि नहीं बल्कि, जानबूझकर किया गया अपराध है। उन्होंने देश के राजस्व के 1,76,000 करोड़ रुपयों की लूट की छूट दी थी। देश के कुल राजस्व घाटा (3.81 लाख करोड़) की एक तिहाई इस राशि से देश का न केवल राजस्व घाटा कम होता बल्कि धन के अभाव में लंबित विकास की अनेक योजनाओं पर काम शुरू किया जा सकता था। लेकिन सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दोनों ने वरीयता 'सत्ता' को दी, समझौते कर भ्रष्टाचार को सिंचित किया, भ्रष्ट मंत्री और अधिकारियों को संरक्षण प्रदान किया। सत्ता और सिर्फ सत्ता के लिए किए गए ऐसे समझौते अपराध हैं, अक्षम्य अपराध हैं।

2 comments:

sulekh said...

The article has rightly pointed out the silence of honorable Prime Minister on 2G spectrum issue which is a clear indication of growing nexus among ministers, bureaucrats and private market players in corruption. such an organised corruption in administration can deviate the goals of government and is a serious threat to our social fabric. In a democratic country like ours , where on one hand government is promoting transparency in administrative process through RTI and other means,the silence of a 'top executive' should be highly condemned.It is for the first time in the history of India that any court has raised question on such a dignified post.The gravity of such an apex authority should be maintained which now rests solely in the hand of honorable Dr. Manmohan Singh, which he can do either by breaking his silence or by resigning from the office . Thanks to the era of "coalition politics" which has reduced the authority of such a powerful executive only to a "mute spectator".

Sulekh Varma, jharkhand

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बिल्कुल किये गये हैं.. देश की चिन्ता किसे है.. इन त्यागी नेताओं को.. कतई नहीं...