असंवेदनशीलता और संस्कृति की अवमानना की पराकाष्ठा की इस नई जानकारी पर पूरा भारत देश शर्मिंदा है। दुख के क्षणों में संवेदना और सहानुभूति की एक विशिष्ट परंपरा भारतीय संस्कृति में समाहित है। कठोर हृदय भी ऐसे अवसरों पर मोम बन द्रवित हो जाता है। शैतान मनमस्तिष्क धारक भी तब मौन रहता है। फिर स्वयं को देश का अभिभावक दल बताने वाली कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी इतनी निर्मम-कठोर-असवंदेनशील कैसे? ताजा जानकारी हृदयभेदी है।
आंध्रप्रदेश के विद्रोही कांग्रेसी सांसद जगनमोहन रेड्डी ने जिन परिस्थितियों में कांग्रेस का त्याग किया उससे सोनिया गांधी का एक नया चेहरा सामने आया है। मानव का मानव के प्रति कठोरता व संवेदनशून्यता का यह मामला एक राष्ट्रीय बहस का आग्रही है। जगन के पिताजी वाई.एस. राजशेखर रेड्डी आंध्रप्रदेश के सर्वमान्य, सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्री थे। एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में मृत्यु के पश्चात उनके गांव में अनेक लोग इतने शोकाकुल हुए कि उन्होंने अपने प्राण दे दिए, आत्महत्या कर ली थी उन लोगों ने! जगन ने तब उस गांव की यात्रा कर मृतकों के आत्मजनों से मिलने का निर्णय लिया था। बहुप्रचारित ''ओदरपू'' यात्रा की योजना तभी बनी थी। पता नहीं क्या कारण थे जो सोनिया गांधी ने जगन को यात्रा से मना कर दिया। कांग्रेस की ओर से साफ-साफ कह दिया गया कि जगन यात्रा पर नहीं जा सकता। चंूकि जगन ने मृतकों के परिवारों से वादा किया था, वे अड़े रहे। अपनी मां को लेकर जगन सोनिया गांधी से मिले। उनकी मां विजयालक्ष्मी ने गिड़गिड़ति हुए सोनिया गांधी से विनती की कि 'पिता की आत्मा की शांति' के लिए जगन को यात्रा की अनुमति प्रदान करें। सोनिया की त्वरित प्रतिक्रिया विस्मयकारी थी। जगन की मां की गिड़गिड़ाहट पर भी वे ने केवल अडिग रहीं बल्कि उपेक्षा व अपमान की मुद्रा में टिप्पणी कर बैठीं कि ''सो वॉट?'' (तो क्या?) क्या कोई संवेदनशील भारतीय नारी किसी मृतात्मा के संदर्भ में ऐसी अपमानजनक टिप्पणी कर सकती है? और मृतात्मा कौन? उन्हीं की कांग्रेस पार्टी का मुख्यमंत्री! कहते हैं तब जगन की मां रो पड़ी थीं। सोनिया का दिल फिर भी नहीं पिघला। मां की गिड़गिड़ाहट तथा रूदन को देख जगन ने तभी पार्टी छोडऩे का मन बना लिया था! क्या सोनिया गांधी का आचरण महान भारतीय संस्कृति-सभ्यता के विपरीत नहीं? सोनिया गांधी निश्चय ही इस बिंदु पर भारत और भारतीयता की अपराधी बन जाती हैं। मैं यहां जगनमोहन रेड्डी की पैरवी नहीं कर रहा। सोनिया गांधी की असंवेदनशीलता से आहत मेरा मन पाठकों के साथ पीड़ा बांटने को मजबूर है। राज और राजनीति से दूर मन इस टिप्पणी के लिए भी बाध्य है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अब 'भारतीय' नहीं रह गई है! अन्यथा हिंदुस्तानी कांग्रेस की हिन्दुस्तानी संस्कृति सोनिया गांधी को एक 'दुखी विधवा', उसके पुत्र की भावना और मृतात्मा का उपहास उड़ाने की इजाजत नहीं देती।
ऐसी घटनाएं अंतत: आत्मघाती सिद्ध होती हैं। इस संदर्भ में एक उदाहरण... 60 के दशक में बिहार में कृष्णवल्लभ सहाय नाम के एक दबंग मुख्यमंत्री हुआ करते थे? वे हमेशा कहा करते थे कि एक शासक में तीन चीजों का होना जरूरी है - 'हार्ट' (दिल), 'हेड' (मस्तिष्क) व 'टंग' (जुबान)। विडंबना यह कि इनमें से एक 'जुबान' ने ही सहाय की ही नहीं बल्कि कांग्रेस की भी गद्दी छीन ली थी। बिहार सरकार के अराजपात्रित कर्मचारी हड़ताल पर थे। हड़ताली कर्मचारियों ने सचिवालय जा रहे मुख्यमंत्री सहाय का घेराव कर पूछा कि, ''आप हमारी मांगों की पूर्ति क्यों नहीं करते? हमारे बच्चे तब क्या करेंगे?'' क्रोधित सहाय ने तब चिल्लाकर जवाब दिया था कि, ''उनसे (बच्चों से) मूंगफलियां बिकवाओ!'' आग की तरह फैली सहाय की उस टिप्पणी से बिहारवासी स्तब्ध रह गए थे। उसके बाद हुए आम चुनाव (1967) में पराजित होकर कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। कृष्णवल्लभ सहाय स्वयं भी चुनाव हार गए थे। उन्होंने बाद में स्वीकार किया कि उनके पास
'हार्ट' और 'हेड' तो है किंतु 'टंग' नहीं! नतीजतन जनता ने उन्हें रास्ता दिखा दिया। बदजुबानी की ऐसी परिणति हर काल में चिन्हित होती रही है- कांग्रेस और सोनिया गांधी इसे याद रखें!
1 comment:
बाकी बातेम ठीक हैं, लेकिन आत्म हत्या वाली बात गले नहीं उतरती. अच्छा है पूरे देश से कांग्रेस और उसकी संस्कृति दोनों का ही उद्धार हो..
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