दु:खद व पीड़ादायक यह नहीं कि केंद्रीय सत्ता का संचालन कर रही यूपीए की भारत सरकार देश की जनता को 'धैर्यवान मूर्ख' मानती है। खतरनाक यह है कि हम अर्थात् भारतवासी स्वयं को पेश ही इसी रूप में कर रहे हैं। फिर क्या आश्चर्य कि भारत सरकार सर्वोच्च न्यायालय में झूठा हलफनामा दायर करती है, संसद में और संसद के बाहर गलत बयानी करती है, महंगाई, भ्रष्टाचार, कालाधन जैसे अतिगंभीर मुद्दों पर देश को गुमराह करती रही है। धिक्कार इस बात पर भी कि केंद्र कि ऐसी चालबाजियों को मदद करनेवाले देश विरोधी लालची हाथ भी समय-समय पर प्रकट हो जाते हैं।
विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों के काले धन के मामले में भी केंद्र ऐसे ही राष्ट्रविरोधी खेल को अंजाम दे रही है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कड़ी पूछताछ और कड़ी टिप्पणियों के बाद एक विदेशी बैंक में जमा काले धन के कुछ खाताधारकों के नाम बड़ी धूर्तता के साथ एक पत्रिका के द्वारा 'लीक' करा दिये गये। सर्वाेच्च न्यायालय व देशवासियों की आखों में धूल झोंकते हुए जिस तरह छोटी मछलियों के नाम सार्वजनिक किये गये हैं, उससे यह साबित हो गया कि भारत सरकार बड़ी मछलियोंं को बचाना चाहती है। भारत सरकार का यह कृत्य निश्चयही राष्ट्रविरोधी है। सर्वोच्च न्यायालय यह टिप्पणी कर चुका है कि विदेशी बैंकों में काला धन जमा कराने की कार्रवाई वस्तुत: राष्ट्रीय संपदा की लूट है। अर्थात ऐसे सभी खाताधारक इस लूट के अपराधी हैं। सरकार के ताजा कदम से आम जनता के बीच मौजूद यह शंका और भी बलवती हुई है कि विदेशी बैंकों में बड़े -बड़े राजनेताओं ने काला धन जमा करा रखा है। यह भी कहा जा रहा है कि भारत का वर्तमान शीर्ष राजनीतिक परिवार भी इस अपराध में शामिल है। ऐसे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की क्या हिम्मत कि उनकी सरकार असली अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई कर सके। खेद है कि सरकार की इस कवायद में 'सहयोगी हाथ' (जो मीडिया बिरादरी के हैं) कटघरे में खड़े दिख रहे हैं। यह सचमुच आश्चर्यजनक है कि जिस पत्रिका में कथित खाताधारकों के नाम प्रकाशित किए हैं, पूर्व के उसके सभी स्टिंग ऑपरेशन कांग्रेस के हित साधनेवाले साबित होते रहे हैं। यह सवाल मौजू है कि वह पत्रिका और उसकी वेब साईट सत्ता में मौजूद व उससे जुड़ी बड़ी मछलियों का स्टिंग क्यों नहीं करती। जब पूरे देश में यह चर्चा जोरों पर है कि नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों ने भी विदेशी बैंकों में खाते खोल रखे हैं तब उनका स्टिंग क्यों नहीं कर रहे हैं वे। रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी के एक पूर्व अधिकारी जब यह सार्वजनिक कर चुके हैं कि स्वयं सोनिया गांधी का विदेशी बैंक में एक पुराना खाता (संभवत: तब अल्प वयस्क राहुल के नाम) मौजूद है , अब तक आरोप की जांच क्यों नहीं हुई। वह पत्रिका क्या इसका कोई स्टिंग करेगी? नीरा राडिया टेप प्रकरण में अनेक बड़े पत्रकारों के नाम दलाल के रूप में सामने आ चुके हैं। इस पाश्र्व में उक्त पत्रिका और वेबसाईट की भूमिका संदिग्ध है। ध्यान रहे देश की युवा पीढ़ी अब सतर्क हो, सभी राष्ट्रविरोधी हरकतों पर नजरें रख रही हैं। देश की वर्तमान विकृत छवि पर यह वर्ग चिंतित है। मिस्त्र की घटना पर उसकी निगाहें हैं। 70 के दशक के जन आंदोलन के पन्नों को वह उलट रही है। जिस दिन वर्तमान भ्रष्टाचार व कुशासन के खिलाफ लडऩे को तैयार कोई 'जननायक' उसे मिल जाएगा, युवापीढ़ी 'जनयुद्ध' का ऐलान कर देगी। और तब निश्चय मानें, राष्ट्रिय शुद्धिकरण की प्रक्रिया में कोई भी 'दागदार' साबुत नहीं बचेगा।
2 comments:
सर, बिलकुल सही कहा आपने. यह शुद्धिकरण जरुरी भी है. धन्यवाद सहित
जो कुछ भी सत्य सामने आना ही चाहिये..
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