Sunday, April 11, 2010
शर्मसार वर्धा, अपमानित वर्धावासी
कलम और वाणी की आजादी के सबसे बड़े पैरोकार महात्मा गांधी की कर्मभूमि वर्धा में गुरुओं के गुरु ने यह क्या कह डाला! 'वर्धा के स्थानीय लोग चोर हैं!' '..... पत्रकार चोर हैं!' सत्य अहिंसा और त्याग की प्रतिमूर्ति के रूप में एकल विश्व स्वीकृति प्राप्त करने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विभूति नारायण राय के इस मंतव्य को हम एक सिरे से खारिज करते हैं। डा. राय की घोर आपत्तिजनक हरकत से आज पवित्र वर्धा शर्मसार है। कलंकित कर डाला इन्होंने वर्धा को। अपवित्र कर डाला विश्वविद्यालय परिसर को। और शर्मिंदा कर डाला संपूर्ण शिक्षक अर्थात्ï गुरु समाज को। साथ ही दागदार बना डाला भारतीय पुलिस सेवा को भी। एक कुलपति, एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का कुलपति जब सड़कछाप असामाजिक तत्व की तरह आचरण का दोषी पाया जाए तब निश्चय ही शिक्षा, शिक्षक, शिष्य सभी रूदन के लिए बाध्य होंगे। आज वर्धा ऐसी ही दु:स्थिति से रूबरू है। वर्धावासी क्रोधित हैं कि उन्हें इस कुलपति ने चोर घोषित कर डाला। पिछले दिनों एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल सीएनईबी पर 'चोरगुरु' के नाम से कई किश्तों में एक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया था। कार्यक्रम इसी महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितताओं पर केंद्रित था। हमारे संवाददाताओं ने भी इससे सूत्र प्राप्त कर जांच-पड़ताल की और विश्वविद्यालय में व्याप्त गंदगी को उजागर कर सफाई अभियान छेड़ा। छात्र संघर्ष समिति और गैरसरकारी संस्था द मार्जिनलाइज्ड ने सहयोग दिया और विश्वविद्यालय की अनियमितताओं को प्रकाश में लाया। इस अखबार ने पत्रकारीय दायित्व और मूल्य का निर्वाह करते हुए कतिपय खबरों पर प्राप्त खंडन भी प्रमुखता से प्रकाशित किए। इसलिए कि हम न तो पूर्वाग्रह ग्रसित हैं और न ही किसी व्यक्ति विशेष के विरोधी। मैं डा. विभूति नारायण राय को नहीं जानता। न कभी मिला, न कभी देखा। कुलपति पद पर उनकी नियुक्ति के समय जानकारी मिली थी कि ये भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी रहे हैं। तब ऐसी आशा जगी थी कि अपने स्थापना काल से ही विवादों में घिरे इस विश्वविद्यालय का भला होगा। एक अच्छे प्रशासक के रूप में डा. राय विश्वविद्यालय परिसर में अनुशासन स्थापित कर स्वच्छ, पवित्र शैक्षणिक वातावरण कायम करेंगे। महात्मा गांधी की कर्मस्थली इस विश्वविद्यालय के माध्यम से और भी गौरवान्वित होगी। वर्धा की अंतरराष्ट्रीय प्रसिध्दी में इजाफा होगा। लेकिन आज इन सारी आशाओं पर डा. राय ने तुषारापात कर डाला। अंतरराष्ट्रीय पर्यटन नक्शे पर मौजूद वर्धा को चोर बताकर डा. राय ने एक ऐसा पाप किया है जिसका प्रायश्चित संभव नहीं दिखता। पत्रकारों को चोर बताकर उन पर डंडा लहराने वाले डा. राय शिक्षा मंदिर के महंत नहीं हो सकते। मंदिर में मदिरा-मांस को वर्धा वासी ही क्या यह देश बर्दाश्त नहीं कर सकता। डा. राय पर ऐसे आरोप लगे हैं। आरोप पर डा. राय का मौन निश्चय ही स्वीकृति का सूचक है। शिक्षक तो अपने आचरण से छात्रों व समाज के लिए अनुकरणीय आदर्श पेश करता है। शिक्षकों के मुखिया डा. राय को तो अपने व्यवहार-आचरण से छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों के लिए भी अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए था। खेद है, वे विफल रहे। शायद आदत की मजबूरी से। अत्यंत ही पीड़ा के साथ, दुखी मन से मैं इस टिप्पणी के लिए विवश हूं कि डा. राय का आचरण कुलपति पद की गरिमा, अपेक्षा के अनुरूप कतई नहीं है। वे तत्काल अपने पद से इस्तीफा दे दें। वर्धावासियों से क्षमा मांगें। और महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष नमन कर प्रायश्चित करें।
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1 comment:
बुरा न मानिये पूरे देश में सिर्फ नगण्य लोग ही ईमानदार बचे हैं...
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