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Sunday, June 6, 2010

एक कुंठा है मोदी का बाल दिवस विरोध!

नहीं, मोदी की यह कोई जिज्ञासा नहीं, राजनीतिक या फिर व्यक्तिगत कुंठा है। विरोध के लिए विरोध है।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी में तेज है, जुझारुपन है, सुशासन के पक्ष में समर्पण है, और है संघर्ष का माद्दा। किन्तु जब शब्द व्यक्तिगत कुंठा या सिर्फ राजनीतिक कोहरे से आच्छादित हो जाएं तब ये सारे गुण संदिग्ध हो जाते हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाए जाने पर आपत्ति दर्ज करते हुए मोदी ने पूछ डाला है कि बाल दिवस से बच्चों का क्या भला हुआ है? निहायत बचकाना सवाल है ये! साफ है कि मोदी नहीं चाहते कि नेहरू के जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाए। अब मोदी से पूछा जाना चाहिए कि उनके इस विरोध का औचित्य क्या है? यह तथ्य सर्वविदित है कि नेहरू को बच्चों से अत्यधिक प्यार था। बच्चे भी उन्हें बहुत प्यार करते थे। इसीलिए कृतज्ञ राष्ट्र ने नेहरू के जन्मदिवस को बाल दिवस का नाम दे दिया। इसमें गलत क्या था? हम अपने महापुरुषों को उनकी पुण्यतिथि पर या फिर बलिदान दिवस पर विभिन्न रूपों में स्मरण किया करते हैं। कृतज्ञ राष्ट्र ने इसे एक परंपरा के रूप में अपनाया है। इसी परंपरा के अंतर्गत डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। महात्मा गांधी के जन्म दिन 2 अक्टूबर को अहिंसा दिवस और राजीव गांधी की जयंती 21 मई को बलिदान दिवस के रूप में मनाते हैं। राजनीतिक व विचारधारा के आधार पर विरोध स्वाभाविक है। लोकतंत्र में मतभेद भी होते हैं, मनभेद भी होते हैं। बावजूद इसके दलगत राजनीति महापुरुषों की स्मृति को, सम्मान को प्रभावित नहीं करती। यह हमारे देश की संस्कृति नहीं। नरेंद्र मोदी बाल दिवस पर बच्चों की भलाई पर सवालिया निशान लगाकर उपहास के पात्र बन गए हैं। ऐसे दिवस विशेष पर संबंधित महापुरुष की याद कर उनके आदर्श पर चलने का संकल्प लिया जाता है, प्रतिपादित सुविचारों के अनुसरण का संकल्प दोहराया जाता है। किसी लाभ की अपेक्षा नहीं की जाती। बाल दिवस पर बच्चे अपने चाचा नेहरू की याद कर प्रफुल्लित होते हैं, ज्ञान ग्रहण करते हैं। क्या यह लाभ नहीं? मोदी दलीय आधार पर नेहरू का विरोध करें, यह स्वाभाविक है। उनकी नीतियों का विरोध करें, स्वाभाविक है। किन्तु उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाए जाने का विरोध करें, यह अनुचित है। राजनीति में विवाद पैदा कर प्रचार पाने का नुस्खा प्रचलन में है। किन्तु उसके स्तर पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मोदी ऐसे मामलों में पहले भी विवादित रहे हैं। डाक्टर आंबेडकर की आलोचना करते हुए एक बार वे कह गए थे कि ''आंबेडकर कोई क्रांतिकारी नहीं थे।ÓÓ इसी प्रकार पिछड़े दलित को मंदबुद्धि बच्चे जैसा निरूपित कर मोदी अपनी कुंठा का परिचय दे चुके हैं। मोदी अपने राज्य गुजरात में सुशासन व विकास के लिए लोकप्रिय हो रहे हैं। बेहतर हो, वे अपनी ऊर्जा इन्हीं पर केंद्रित रखें। बाल दिवस की आलोचना कर खुद को बौना साबित न करें।

7 comments:

Ramashankar said...

आदरणीय प्रणाम
इच्छा तो बहुत थी आपसे मिलने की जब आप हमारे ग्रुप संपादक रहे. मैं रमाशंकर शर्मा सतना नवभारत में बतौर सब एडीटर कार्यरत हूं. आज पहली बार आप का ब्लाग देखने को मिला पढ़ते ही आपकी चिरपरिचित शैली एक बार काफी समय बाद देखने को मिली. आपके लेख पर कमेंट करूं यह हिमाकत नहीं कर सकता,
बतौर प्रणाम यह कमेंट लिख रहा हूं.

संजय पाराशर said...

Modiji befikr rhe aane wala samay Atalji,Advaniji ka janm diwas KHANDHAR diwas ke rup me manayega.
Nehrooji ka janm diwas baldiwas ke roop me manate hai aap Bujurgo ke bhale ke lie kuchh kr jao to aapka janm diwas.........shandar post.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मोदी को इस पच्चर में नहीं पड़ना चाहिये था... बात ठीक कही लेकिन सुनने वाले ???

संजय बेंगाणी said...

बच्चों से किसे प्यार नहीं है? आपको नहीं है?
कॉंग्रेस को भी आम आदमी से बहुत प्यार है.
बात है प्यार व्यार का दिखावा छोड़ वास्तव में काम करने की. इस दृष्टी से मोदी ने सही कहा है.

Arun sathi said...

कांग्रेस हमेशा से ही अपने नेताओं को अति महिमामंडन करती रही है. नेहरुजी का बाल प्रेम इसी का परिनाम है.

Navrang said...

आपकी लेखन प्रतिभा / क्षमता को बीच मे ना लाते हुए......

इस "भारत" नामक देश मे गाँधी - नेहरू परिवार के अलावा कोई महापुरुष हूआ है क्या? निस्प्क्ष हो कर सोचिए, जिस के लिए आप जाने जाते हैं.

Regards
Navrang
http://navrangblog.blogspot.com

ab inconvenienti said...

नेहरु के जन्मदिन को बालदिवस इसीलिए बनाया गया क्यों की उन्हें बच्चों से बहुत प्यार था. माना उस ठरकी को प्यार था, तो बाकियों को क्या नफरत है बच्चों से?