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Sunday, June 20, 2010

नीतीश का बिहार, राहत का सच!

कुछ दिनों पूर्व ''नीतीश का बिहार.....'' शीर्षक के अंतर्गत की गईं मेरी टिप्पणियों पर कुछ मित्र नाराज हो गए थे। हालांकि वह आलेख बिहार के पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को अतिरिक्त लाभ पहुंचाने, नीतीश की आलोचना करनेवाले मीडिया कर्मियों को प्रताडि़त किये जाने और सरकारी कोष का प्रचार के लिए अत्यधिक इस्तेमाल करने पर केंद्रित था। व्यक्तिगत रूप से नीतीश या नई उपलब्धियों के बीच बिहार की नई छवि पर कोई टिप्पणी नहीं की गई थी। हां, वैसी कुछ सूचनाओं को अवश्य समाहित किया था जिनमें नीतीश के दावों को चुनौती दी गई थी। तब कुछ मित्रों ने मुझ पर आक्षेप लगाया था कि नागपुर में रहने के कारण मैं बिहार से अंजान हूं। संभवत: उन मित्रों को यह जानकारी नहीं थी कि मेरा जन्म ही पटना में प्रिंटिंग मशीन की खडख़ड़ाहटों के बीच हुआ है। बहरहाल, बातें नीतीश की।
स्टार न्यूज चैनल ने रविवार की सुबह नीतीशकुमार के बिहार का एक कड़वा सच प्रसारित कर उनके दावों की पोल खोल दी। मानवीय संवेदना से दूर बिहार के बाढ़ पीडि़तों की दुर्दशा से पूरे देश को परिचित करवा दिया। संदर्भ था दो वर्ष पूर्व बिहार बाढ़ पीडि़तों के लिए गुजरात सरकार द्वारा भेजे गये पांच करोड़ रुपये की सहायता राशि को नीतीश द्वारा अब वापस कर देने का। इसके पाश्र्व की जानकारी सभी को है। नीतीश अब भारतीय जनता पार्टी को सांप्रदायिक व अछूत करार दे छद्मधर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहन मतदाता के बीच जाना चाहते हैं। अपनी सरकार की उपलब्धियों का अंशमात्र श्रेय भी वे सरकार की सहयोगी भाजपा को देने को तैयार नहीं। वर्तमान और अवसरवादी सुविधा की राजनीति में ऐसे करतब आश्चर्य पैदा नहीं करते। लेकिन गुजरात के पांच करोड़ वापस कर नीतीश ने स्वयं को और बिहार सरकार को कटघरे में खड़ा कर लिया है। स्टार न्यूज ने बाढ़ पीडि़तों की कथित राहत को नंगा कर देश के सामने प्रस्तुत कर दिया है। न्यूज चैनल ने सीधे प्रसारण के द्वारा दो वर्ष बाद भी बिहार बाढ़ पीडि़तों की बदहाली, राहत का अभाव और घुट-घुट कर जीते पीडि़तों के सच को चिन्हित कर दिया। दु:खी, क्रोधित बाढ़ पीडि़त शिकायत करते देखे गए कि राहत अभी भी उनसे कोसों दूर है। उनके सिर पर न तो छत है, न तन ढंकने के लिए कपड़े और न ही पेट की क्षुधा शांत करने के लिए पर्याप्त भोजन! प्रसारण में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राजकोष खाली होने का रोना रोते भी दिखाया गया। अब सवाल यह कि गुजरात सरकार द्वारा दो वर्ष पूर्व भेजी गई सहायता राशि अभी तक बिना खर्च सुरक्षित कैसे रही? ऐसी और भी सहायता राशियां बिना खर्च सरकारी कोष में पड़ी रही होंगी? इसे क्या कहेंगे? बाढ़ पीडि़तों के प्रति नीतीश सरकार की उदासीनता, निष्क्रियता या फिर नीतीश व उनकी सरकार की असंवेदनशीलता! एक ओर तो नीतीश राहत के लिए खाली खजाने की दुहाई देते रहे, दूसरी ओर प्राप्त सहायता राशि का उपयोग नहीं कर पाये। ऐसी राशि का उपयोग पीडि़तों की सहायतार्थ अब तब क्यों नहीं किया गया? नीतीश को इसका जवाब देना ही होगा। गुजरात की सहायता राशि दो वर्ष बाद वापिस कर नीतीश ने अपने कद्दावर व्यक्तित्व को एक झटके में बौना बना डाला है। राजनीतिक स्वार्थ और व्यक्तिगत कुंठा का ऐसा भौंडा प्रदर्शन नीतीश जैसे व्यक्ति की ओर से हो यह आश्चर्यजनक है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ को हाथ में लिए अपने चित्र के प्रकाशित होने पर नीतीश का अब नाराज होना और प्रतिक्रिया स्वरूप गुजरात की सहायता राशि को वापस लौटाना हर दृष्टि से अनुचित है। अगर नीतीश को गुजरात से इतनी ही घृणा हो गई है तब उनसे एक और सवाल! बिहार में ठंड के दिनों में 'पछुआ हवा' की बड़ी चर्चा होती है। यह हवा गुजरात के समुद्री तट से होकर ही आती है। क्या नीतीश कुमार गुजरात की ओर से आ रही इस हवा को भी रोक देंगे?

3 comments:

आचार्य उदय said...

प्रभावशाली पोस्ट।

SANSKRITJAGAT said...

प्रयत्‍नपूर्वकदत्‍तानि तथ्‍यानि ।।

साधुवादार्ह: ।

http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

नीतीश जी को एक बार आत्मावलोकन करना चाहिये, यदि बाकी राजनीतिज्ञों की तरह उनकी भी आत्मा कहीं दूर न विराजती हो तो.