जब प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से यह कहे कि गठबंधन धर्म की मजबूरी के कारण वे भ्रष्टाचार को सिंचित करते रहे, अनियमितताओं की अनदेखी करते रहे, हजारों करोड़ों की राष्ट्रीय संपत्ति की लूट को आंख मूंद देखते रहे तो क्या उन्हें पद पर बने रहने का हक है? कतई नहीं। देश ऐसे मजबूर, असहाय व्यक्ति के हाथों में शासन की बागडोर नहीं छोड़ सकता। उन्हें बर्दाश्त करने का अर्थ होगा, भ्रष्टाचार को स्वीकार करना। डॉ. मनमोहन सिंह पर आरंभ से ही कठपुतली और सबसे कमजोर प्रधानमंत्री होने के आरोप लगते रहे हैं। विपक्ष के ऐसे आरोपों को राजनीतिक निरूपित कर मनमोहन सिंह को संदेह का लाभ मिलता रहा। लेकिन अब तो हद हो गई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ऐसा ऐलान करने, स्वीकार करने में तनिक भी संकोच नहीं हुआ कि वे मजबूर है, असहाय हैं। राष्ट्रधर्म की कीमत पर गठबंधन धर्म का पालन करने वाले प्रधानमंत्री भला विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के प्रधानमंत्री कैसे बने रह सकते हैं। व्यक्तिगत रूप से ईमानदार होना, भला होना एक बात है, प्रधानमंत्री के रूप में देश पर शासन करना कुछ और। एक प्रधानमंत्री यह कैसे कह गया कि उसके अपने ही विभाग में लिए गये निर्णय की जानकारी उन्हें नहीं मिली। और जब मिली तब विलंब से। इस विंदु पर पूर्व में जाहिर वह शंका उभर कर सामने आती है कि अनेक महत्त्वपूर्ण संचिकाएं प्रधानमंत्री की जानकारी के बगैर अधिकारी और कतिपय मंत्री कहीं और पहुंचा देते हैं, आदेश या सुझाव वहीं से ले लिए जाते हैं। देवास मल्टीमीडिया को एस बैंड आवंटन की प्रक्रिया में कहीं अधिकारियों ने ऐसा ही कुछ तो नहीं किया। देवास के मुख्य कार्यकारी अधिकारी खुलासा कर चुके हैं कि आवंटन की सारी प्रक्रिया में वरिष्ठ अधिकारी और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री शामिल थे। आश्चर्य है कि इन लोगों ने प्रधानमंत्री को जानकारी क्यों नहीं दी? कहीं वे किसी अदृश्य हाथों के इशारे पर तो नहीं चल रहे थे? भ्रष्टाचार, महंगाई, 2जी स्पेक्ट्रम और एस बैंड आवंटन के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री तक की नियुक्ति में गठबंधन धर्म की आड़ ले स्वयं को मजबूर असहाय बताकर मनमोहन सिंह ने भारत जैसे विशाल देश की शासन व्यवस्था का मजाक उड़ाया है। प्रधानमंत्री पद की गरिमा, मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी की अवधारणा और राष्ट्रहित के साथ खिलवाड़ किया है। हमारा सिर शर्म से झुक गया जब हमने प्रधानमंत्री को गिड़गिड़ाते देखा कि, '...मैंने गलतियां की हैं लेकिन वैसी नहीं, जैसा दिखाया जा रहा है।' शर्म, शर्म! क्षमा करें प्रधानमंत्रीजी!, मीडिया भारत को घोटालों का देश बताकर देश का आत्मविश्वास कम नहीं कर रहा है, बल्कि आत्मनिरीक्षण कर रहा है।
एक तरफ तो आप प्रधानमंत्री को सीजऱ की पत्नी की तरह बेदाग देखे जाने की वकालत करते हैं और दूसरी ओर गलती का इजहार करने के बावजूद पद पर बने रहने की घोषणा भी! आप कैसे प्रधानमंत्री हैं जो नैतिक जिम्मेदारी का एहसास होने की बात तो करते हैं किन्तु अनैतिक कर्मों की पुष्टि के बावजूद नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने से साफ इनकार कर जाते हैं। प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लालच का त्याग करने में असमर्थ डॉ. मनमोहन सिंह अपने अतीत के मजबूत पाश्र्व को ही झुठला रहे हैं। अब बहुत हो चुका डॉ. मनमोहन सिंहजी। स्वयं को मजबूर, असहाय प्रधानमंत्री स्वीकार करने के बाद आप को पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं। राष्ट्रधर्म और राजधर्म के पक्ष में या तो मनमोहन सिंह तत्काल इस्तीफा दे दें, या फिर कथित गठबंधन धर्म की मजबूरियों के मुद्दे के साथ जनता की अदालत में जाएं। क्या मनमोहन सिंह इतनी हिम्मत दिखा पाएंगे? शायद नहीं। जो व्यक्ति बगैर जनादेश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर चिपका रह सकता है, उससे ऐसे आदर्श की अपेक्षा ही बेमानी है।
3 comments:
यहां सब यूं ही चलेगा..
उन्हें अभी देश को और लुटवाना है.. इसलिए उन्होंने घोषणा की है की वे अभी पद से इस्तीफा नहीं देंगे... अभी और घोटाले होने दो...
Being the Prime minister , Singh should concentrate more on the welfare of the public than "managing" his coalition government. He is supposed to more objective than being subjective.
Lets hope he gets the country off this "scam-driven" image.
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