२० में नहीं तो ७२ में कैसे ??
न्यूज़ एक्सप्रेस में विनोद कापड़ी के आगमन के साथ मेरे नाम को लेकर भी कुछ टिप्पणियां की जा रही है. सैकड़ो मेल, एस एम एस , व सोशल मीडिया के माध्यम से सवाल खड़े किये जा रहे है कि मैंने अपने से अत्यंत ही कनिष्ठ विनोद कापड़ी की अधीनता कैसे स्वीकार कर ली ? अपेक्षा व्यक्त की जा रही है कि मैं इस्तीफा दे दूँ. टिप्पणियां की जा रही हैं, मेरी कथित मजबूरी को ले कर, टिप्पणियां की जा रही हैं मेरे पत्रकारीय पार्श्व , अतीत, वर्तमान और वरिष्ठता को ले कर , टिप्पणियां की जा रही हैं मेरी कथित "बेचारगी'' को ले कर! पहले तो मैंने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन सैकड़ों पत्रकार मित्रों और शुभचिंतकों, विशेषकर युवा पत्रकार मित्रों , की जिज्ञासा के आलोक मैं इस छोटे से स्पष्टीकरण को शब्दांकित करने को बाध्य हुआ- बगैर किसी पूर्वाग्रह के निश्छल भाव से !१. सर्व प्रथम विनोद कापड़ी के विषय में :
चूँकि न्यूज़ एक्सप्रेस प्रबंधन ने विश्वाश और अनेक उम्मीदों के साथ उन्हें न्यूज़ एक्सप्रेस की कमान सौंपी है, उन्हें हर तरह का सहयोग और समर्थन मिलना चाहिए। वे एक अनुभवी पत्रकार है और ऐसी आशा की जा सकती है कि अपनी टीम के साथ वे स्वयं को प्रमाणित भी कर सकेंगे इसके लिए जरुरी है कि उन्हें प्रबंधन की और से पूरी स्वतंत्रता मिले। इसके बगैर कोई भी परिणाम नहीं दे सकता है. उन्हें समय दिया जाना चाहिए,
२. अब अपने विषय में :
संस्थान में मेरे पास तीन जिम्मेदारियां हैं.
क- एडिटर, न्यूज़ एक्सप्रेस ( महाराष्ट्र )
ख- चेनल हेड, न्यूज़ एक्सप्रेस (मराठी) और प्रधान संपादक, साप्ताहिक "हमवतन''. प्रबंधन के साथ मौखिक समझौते के अनुसार मेरे कार्य क्षेत्र महाराष्ट्र राज्य में कोई भी, सम्पादकीय व प्रशासकीय दोनों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा- नॉएडा भी नहीं। प्रबंधन ने इसे स्वीकारा और अभी तक ऐसा ही होता रहा है। प्रबंधन की और से किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं हुआ है. उपर्युत तीनो जिम्मेदारियों को निभाने के क्रम में मेरे शब्द अंतिम रहे हैं.
अब नई व्यवस्था मैं प्रबंधन कोई परिवर्तन करना चाहता है, तो यह उस का अधिकार है. इस पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता, मुझे प्रबंधन की और से अभी तक इस सम्बन्ध मैं कोई निर्देश नहीं मिला है. हाँ, नई व्यवस्था सम्बन्धी मुझे कोई निर्देश मिलता है तब मैं अपने विषय मैं निर्णय लेने को स्वतंत्र रहूँगा। मैं अपने मित्रों को आस्वस्त कर दूँ कि मजबूरी, समर्पण, समझौता, अधीनता जैसे शब्द मेरी डिक्शनरी में नहीं हैं- जब बीस वर्ष कि आयु मैं नहीं किया, तब बहत्तर में कैसे ??
3 comments:
चीरफाड़
लोग तो बोलते ही रहते है, हम उनको दुर्लक्षीत करे यही बेहतर है...
आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा. अंतरजाल पर हिंदी समृधि के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सराहनीय है. कृपया अपने ब्लॉग को “ब्लॉगप्रहरी:एग्रीगेटर व हिंदी सोशल नेटवर्क” से जोड़ कर अधिक से अधिक पाठकों तक पहुचाएं. ब्लॉगप्रहरी भारत का सबसे आधुनिक और सम्पूर्ण ब्लॉग मंच है. ब्लॉगप्रहरी ब्लॉग डायरेक्टरी, माइक्रो ब्लॉग, सोशल नेटवर्क, ब्लॉग रैंकिंग, एग्रीगेटर और ब्लॉग से आमदनी की सुविधाओं के साथ एक
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