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Monday, April 6, 2009

समाज के अपराधी बन गए माया-मेनका ...!


गलत दोनों हैं. मायावती भी, मेनका भी. पीड़ादायक तो यह कि दोनों महिला हैं. दोनों जिम्मेदार महिला हैं. एक मुख्यमंत्री हैं, तो दूसरी केन्द्रीय मंत्री रह चुकी हैं. फिर इतने गैर-जिम्मेदाराना बयान! निश्चय ही यह दु:खद है कि मायावती को मेनका भ्रष्ट महिला और मौत का सौदागर घोषित कर रही हैं. दु:खद यह भी कि मेनका को मायावती एक गैर-जिम्मेदार मां बता रही हैं. मेनका को नसीहत दे रही हैं कि उन्हें अपने बेटे वरुण को अच्छे संस्कार देना था, मेनका ने ऐसा नहीं किया इसीलिए बेटा वरुण जेल की कोठरी में बंद है.
भारतीय राजनीति का इससे भी अधिक पतन हो सकता है? संसदीय लोकतंत्र का यह एक अत्यंत ही वीभत्स चेहरा है. राजनीति में चुनावों के समय ही नहीं, हमेशा आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहता है, कभी-कभी निम्रस्तर पर उतर कर. लेकिन माया-मेनका का द्वंद्व हर दृष्टि से अशोभनीय है, निंदनीय है. इस वाक्युद्ध के केन्द्रबिन्दु वरुण को लेकर तथ्य आधारित आरोप लगाए जाते, तब योग्यता के आधार पर उन पर राष्ट्रीय बहस होती. शायद तब उपलब्ध तथ्य वरुण के पक्ष में सहानुभूति का कारण बनते. देशवासी वैसे भी वरुण गांधी पर रासुका लगाए जाने से संतप्त हैं. दलीय प्रतिबद्धता से पृथक लोग नाराज हैं. और अब, जब जेल के अंदर वरुण के साथ हो रहे दुव्र्यवहार की खबरें बाहर आ रही हैं, देशवासियों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है. जेल में वरुण से मिलने की अनुमति मां मेनका गांधी को नहीं दी जाती. जबकि जेलों में बंद आतंकवादियों से भी उनके परिजानों को मिलने दिया जाता है. क्या वरुण गांधी आतंकवादियों से भी खतरनाक हैं? जेल के अंदर उनके साथ एक सजायाफ्ता कैदी की तरह व्यवहार किया जा रहा है. उन्हें जेल का खाना दिया जा रहा है और खूंखार सजायाफ्ता कैदियों के समीप रखा गया है. चूंकि जेल प्रशासन राज्य सरकार के अधीन है, मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ एक मां मेनका का गुस्सा स्वाभाविक है. वरुण इकलौती संतान है. युवावस्था में विधवा बनीं मेनका गांधी को तब घर से निकाल दिया गया था, जब वरुण दो वर्ष का था. मेनका की पीड़ा कोई भी समझ सकता है. हां, यह जरूर है कि उन्हें अपने गुस्से के इजहार पर नियंत्रण रखना चाहिए था. मायावती को कातिल और मौत का सौदागर तो नहीं ही निरूपित करना चाहिए था. ऐसा करने के बाद उन्हें मायावती की ओर से हुए पलटवार का सामना करने को तैयार रहना चाहिए था.
हां, मायावती ने 'संस्कारÓ की बात कर मेनका को भड़काने की कोशिश अवश्य की. उन्हें भी संयम बरतना चाहिए था. देश की वर्तमान अस्थिर राजनीति सच पूछिए तो एक ऐसे संकट के दौर से गुजर रही है, जो भविष्य के लिए खतरनाक संकेत दे रही है. यह कालखंड सभी राजदलों व सभी नेताओं से संयम की अपेक्षा रखता है. देश किसी की बपौती नहीं. जनता का है यह देश ! जनप्रतिनिधि बन राजनेता शासन चलाने के अधिकारी बनते तो हैं, किन्तु जिम्मेदार वे जनता के प्रति ही हैं. अपने किसी आचरण से इस मूल भावना को चोट पहुंचाने के अपराधी वे न बनें. मायावती और मेनका दोनों इस बिन्दु पर देश के अपराधी बन गए हैं. लोकतंत्र के अपराधी बन गए हैं. जनता के अपराधी बन गए हैं. अब भी बहुत ज्यादा नहीं बिगड़ा. दोनों अपनी-अपनी गलतियों का एहसास कर समाज से माफी मांग लें. अन्यथा आहत समाज समय आने पर उन्हें दंडित करने में पीछे नहीं हटेगा. क्या मायावती और मेनका ऐसा चाहेंगी?
6 अप्रैल 2009

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