Monday, April 12, 2010
76 जवान की जगह, 76 राजनेता होते तो.......?
एक असहज, ह्रदय को वेध देने वाला सवाल। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के 76 जवान की जगह अगर देश के 76 राजनेताओं को नक्सली मौत की घाट उतार देते, तब क्या होता? जाहिर है तब पूरे देश में राष्ट्र ध्वज झुका दिए जाते, राष्ट्रीय शोक घोषित कर दिया जाता और संभवत: सरकार ही गिर जाती। भारतीय लोकतंत्र का यह वह दु:खद पहलू है, जिसमें सत्ता-सुख भोगने वालों को राष्ट्रीय सम्मान दिया जाता है, जबकि देश के लिए मर मिटने वालों को उपेक्षा। पिछले दिनों मैंने इसी स्तम्भ में जब शहीद जवानों के पक्ष में मानवाधिकार का मुद्दा उठाया था, तब एक पाठक ने विरोध जताया था। नौकरीपेशा जवानों को वे मानवाधिकार दिए जाने के पक्ष में नहीं थे। उनका तर्क था कि इन शहीद जवानों को तो अनेक प्रकार की सरकारी-गैर सरकारी सुविधाएं मिल जाया करतीं हैं। तब मन दु:खी हो उठा था शहीद जवानों के प्रति ऐसी सोच पर। आज जब शहीद जवानों की जगह राजनेताओं को रखकर सवाल खड़े हुए हैं, तब कठघरे में निश्चय ही सत्तापक्ष को ही खड़ा किया जाएगा। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने राष्ट्रहित का हवाला देते हुए आतंकवादियों और नक्सलियों से संघर्ष का आह्वान किया है। नक्सलियों तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई में सरकार को समर्थन की बात कही है। सरकार के पास अब अवसर है कि वह बगैर किसी राजनीतिक भय के नक्सलियों के खिलाफ युद्ध का ऐलान करे। क्या केंद्र सरकार पहल करेगी? इस मुद्दे पर विभाजित सत्तारूढ़ दल शायद ऐसा न कर पाएं। इस मुद्दे पर स्वयं प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के बीच मतभेद उजागर होते रहे हैं। आज से लगभग 6 वर्ष पूर्व सन 2004 में हमारे इसी प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने घोषणा की थी कि नक्सली देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। क्या प्रधानमंत्री यह बताएंगे कि जब राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे नक्सलियों की जानकारी उन्हें थी, तब आज तक सरकार ने कोई निर्णायक कदम क्यों नहीं उठाया? क्यों हजारों पुलिस व अर्धसैनिक बल के जवानों को मौत के मुँह में ढकेला जाता रहा? देश यह जानना चाहेगा कि जब प्रधानमंत्री को आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर सबसे बड़े दुश्मन की पहचान थी, तब सफाए की जगह उन्हें फलने-फूलने क्यों दिया गया? सरकार निकृष्ट क्यों बनी रही? तुष्टिकरण की यह कैसी नीति, जिसके तहत निर्दोष जवानों की बलि दी जाती रही। वह कौन सी मजबूरी थी कि देश के अंदर मौजूद ऐसे दुश्मनों से निपटने के जिम्मेदार गृहमंत्रालय की बागडोर एक निहायत निकृष्ट मंत्री के हवाले कर दी गई थी। मुंबई में 26/11 की घटना नहीं होती, तब शायद वे मंत्री भी अपने पद पर कायम रहते। दंतेवाड़ा की घटना के बाद भी ऐसा कोई संकेत नहीं मिल रहा, जिससे यह पता चले कि सरकार ईमानदारी से नक्सली आतंक को समाप्त करना चाहती है। हां, राजनीतिक बयानबाजियां अवश्य हो रही हैं, किंतु प्रधानमंत्री और गृहमंत्री यह जान लें कि देश को अब उनके बयानों पर विश्वास नहीं होता। पिछले 5 दशकों से जारी नक्सली आतंक प्रमाण है, सरकार की निष्क्रियता का। और प्रमाण है सरकार की उन लचर नीतियों का, जो तुष्टिकरण प्रभावित हैं। सरकार कम से कम इस मुद्दे पर सख्त रूख अपनाए, राजनीति न करे। देश की सुरक्षा के सबसे बड़े दुश्मन नक्सलियों का या तो ह्रदय परिवर्तन कर आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया जाए या फिर राजधर्म का निर्वाह करते हुए सरकार कठोर बन इनके खिलाफ निर्णायक युद्ध की घोषणा करे।
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6 comments:
इस दुखद घटना की जितनी भर्त्सना की जाये कम है। आपने हृदय परिवर्तन की बात की जिसकी उम्मीद न के बराबर है। नक्सली बरबर हैं और तालिबानियों से बदतर हैं। आप से मेरी अपेक्षा है कि उन बुद्धीजीवियों पर भी लिखें जो नक्सलियों की बी-टीम है और इस आतंकवाद के समर्थन का माहौल बनाने में जुटी है।
ये हर्दय विदारक घटना देश की सुरक्षा व्यवस्था और ख़ुफ़िया तंत्र को पूर्ण रूप से कठघरे में ला खड़ा करती है. आज देश के आम आदमी तक को भी पता है की तंत्र में कहाँ कहाँ कमियां है लेकिन शीर्ष पर बैठे सब अपना उल्लू सीधा करने में लगे है. चूँकि किसी की भी कोई जवाबदेही नहीं है इसलिए इस तंत्र के रहते इस तरह की अफसोसनाक घटनाएं रोकना नामुमकिन है.
阿彌陀佛 無相佈施
不要吃五辛(葷菜,在古代宗教指的是一些食用後會影響性情、慾望的植
物,主要有五種葷菜,合稱五葷,佛家與道家所指有異。
近代則訛稱含有動物性成分的餐飲食物為「葷菜」,事實上這在古代是稱
之為腥。所謂「葷腥」即這兩類的合稱。 葷菜
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(重定向自五辛) 佛家五葷
在佛家另稱為五辛,五種辛味之菜。根據《楞嚴經》記載,佛家五葷為大
蒜、小蒜、興渠、慈蔥、茖蔥;五葷生啖增恚,使人易怒;熟食發淫,令
人多慾。[1]
《本草備要》註解云:「慈蔥,冬蔥也;茖蔥,山蔥也;興渠,西域菜,云
即中國之荽。」
興渠另說為洋蔥。) 肉 蛋 奶?!
念楞嚴經 *∞窮盡相關 消去無關 證據 時效 念阿彌陀佛往生西方極樂世界
我想製造自己的行為反作用力
不婚 不生子女 生生世世不當老師
log 二0.3010 三0.47710.48 五0.6990 七0.8451 .85
root 二1.414 1.41 三1.732 1.73五 2.236 2.24七 2.646
=>十3.16 π∈Q' 一點八1.34
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76 जवान की जगह, 76 राजनेता होते तो.......?
Napunshako ko ainsi maut khaan naseeb ?
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