कहीं कोई बड़ी गड़बड़ी है अवश्य! पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के पश्चात के. कामराज, एस. निजलिंगप्पा, अतुल्य घोष और एस. के. पाटिल के कुख्यात 'सिंडीकेट' के बाद यह पहला अवसर है जब कांग्रेस संस्कृति के प्रतिकूल पार्टी के कुछ नेता सत्ता और संगठन को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। फिलहाल इसे बगावत तो निरूपित नहीं किया जा सकता, हां चुनौती की शुरुआत अवश्य कह सकते हैं। जरा गौर करें, प्रधानमंत्री कार्यालय से निर्देश जारी होता है कि नक्सल मुद्दे पर सिर्फ गृह मंत्रालय ही टिप्पणी कर सकता है। सत्ता पक्ष की ओर से कोई अन्य नहीं। निर्देश जारी होने से चौबीस घंटे के अंदर ही कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा मेें नक्सली कहर पर सीधे-सीधे केंद्रीय गृहमंत्री पर हमला बोल दिया। नक्सली समस्या के संदर्भ में भारत सरकार की नीति पर भी उन्होंने सवालिया निशान चसपा दिए। क्या दिग्विजय सिंह को प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश की जानकारी नहीं थी? इसे नहीं माना जा सकता। चूंकि इसके पूर्व अनेक मंत्री अपने सहयोग मंत्रियों की सार्वजनिक आलोचना करते रहे हैं, प्रधानमंत्री कार्यालय का निर्देश और दिग्विजय का उल्लंघन निश्चय ही केंद्र सरकार और कांग्रेस पार्टी में व्याप्त अराजकता के सूचक हैं।
इस घटना विकासक्रम को किसी दल विशेष का आंतरिक मामला कह खारिज नहीं किया जा सकता। मामला देश के हित-अहित से जुड़ा है। अभी पिछले दिनों अंग्रेजी दैनिक 'इंडियन एक्सपे्रस' ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच पत्राचार के कतिपय अंश प्रकाशित किए थे। उनसे यह जानकारी मिली कि अनेक राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर प्रधानमंत्री ने सोनिया गांधी के सुझावों को अमल में नहीं लाया। अमान्य सुझावों के तह में जाएं तब पता चलेगा कि उन विषयों का सीधा संबंध अमेरिकी हित-अहित से जुड़ा था। जबकि राहुल गांधी के उन सुझावों को प्रधानमंत्री ने धन्यवाद सहित तत्काल स्वीकार कर लिया जो राज्यविशेष के विकास से संबंधित थे या ऐसे राष्ट्रीय महत्व के जिनका अंतरराष्ट्रीय जगत से कोई लेना-देना नहीं था। बात यहीं खत्म नहीं होती, केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल, कमलनाथ, जयराम रमेश, शशि थरूर, शरद पवार, सी.पी. जोशी, मणिशंकर अय्यर जैसे दिग्गज सरकार की नीतियों को लेकर परस्पर आरोप-प्रत्यारोप वाले बयान देते रहे हैं। मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी की भावना से बिल्कुल इतर! अगर ये उद्धरण केंद्र में व्याप्त अराजकता की पुष्टि के लिए पर्याप्त नहीं है। तब निश्चय ही दिग्विजय सिंह का ताजा मामला इसे मजबूती प्रदान करनेवाला है। दिग्विजय सिंह ने अपनी ही पार्टी के केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम को न केवल घमंडी और अडिय़ल करार दिया है, बल्कि उन्हें 'बौद्धिक अहंकारी' बताकर यह दर्शाने की कोशिश की है कि चिदंबरम गृहमंत्री पद के योग्य कदापि नहीं हैं। भारतीय राजनीति में दिविजय का स्थान एक सूझबूझ वाले परिपक्व नेता के रूप में है। जब वे अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब लोगों ने उनमें देश का भविष्य देखा था। वैसे यह विडंबना ही है कि इस 'भविष्य' पर आज राहुल गांधी को काबिज होने में दिग्विजय भी मदद कर रहे हैं। ऐसे आत्मसमर्पण के पाश्र्व में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विश्वस्त चिदंबरम पर दिग्विजय का शाब्दिक हमला अकारण नहीं हो सकता। दंतेवाड़ा नरसंहार के लिए दिग्विजय ने गृहमंत्री चिदंबरम को जिम्मेदार ठहराकर स्वयं प्रधानमंत्री को भी निशाने पर लिया है। क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस संगठन के अंदर एक नया शीतयुद्ध छिड़ चुका है। यह एक संभावना है। दूसरी संभावना यह कि किसी षडय़ंत्र के तहत सत्ता में विद्रोह को हवा दी जा रही है।
दूसरे शब्दों में सत्तापलट के लिए जमीन की तैयारी शुरू हो गई है। कांग्रेस का एक महत्वपूर्ण धड़ा अब मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के योग्य नहीं मानता। तेजी से बदलते नए वैश्विक परिदृश्य में यह धड़ा परिवर्तन चाहता है। अगर इस धड़े को सोनिया गांधी का आशीर्वाद प्राप्त है। तब आनेवाले दिनों में देश एक नए नेतृत्व की प्रतीक्षा करे। दिल्ली स्थित सत्ता के गलियारे में ऐसी सुगबुगाहट व्याप्त है कि सन् 2004 में जिस एजेंडे को पूरा करने के लिए मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया था, वह अब पूरा हो चुका है। अर्थात्ï मनमोहन सिंह की उपयोगिता अब खत्म हो चुकी है। नई जरूरतों की पूर्ति के लिए अब कांग्रेस को नया नेतृत्व चाहिए। क्या यह दोहराने की जरूरत है कि राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर ही ऐसे लक्ष प्राप्त किए जाते हैं।
3 comments:
" aapki baatoan se hum sahemat hai ...aaaj yahi to ho raha hai ..sit yuddhe ke saaye me hai aur barbaad ho raha hai desh ."
"plz is link ko padhiyega jaroor
" http://eksacchai.blogspot.com/2010/04/blog-post_14.html "
----- eksacchai { AAWAZ }
बस ये समझिये कि कुछ ने कुछ ज्यादा ही दबोच लिया है, अपनी आने वाली सात पुस्तों के लिए, इसलिए थोड़ा बहुत मर्दानगी दिखाने पर उतर आये है, वरना तो इन बिना रीढ़ की हड्डी वाले गुलामों की क्या औकात मुह खोलने की !
कहा जा सकता है कि इतिहास फिर से अपने आप को दुहराने की तैयारी कर रहा है....
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