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Wednesday, April 21, 2010

गैरखिलाडिय़ों से मुक्त हो क्रिकेट!

यह भी खूब रही! केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला की दार्शनिक सोच को समझें। आईपीएल विवाद पर केंद्रीय मंत्रिपरिषद के अपने सहयोगी शशि थरूर का उन्होंने विरोध किया था, उनसे इस्तीफा मांगा था। आलोचना और दबाव के बीच प्रधानमंत्री ने थरूर से इस्तीफा ले लिया। अब डॉ. फारुख आईपीएल महाघोटाला के 'किंग पिन' ललित मोदी के बचाव में कूद पड़े हैं। कह रहे हैं कि बगैर ठोस प्रमाण के मोदी पर आरोप लगाना गलत है। और एक दार्शनिक की तरह देश को बताया कि 'शीर्ष पर पहुंचे व्यक्ति का विरोध होता ही है।' महाघोटाला के जनक मोदी, बकौल आयकर विभाग क्रिकेट में सट्टेबाजी, धोखाधड़ी, मैच फिक्सिंग, टीमों में बेनामी हिस्सेदारी, महिलाओं से अवैध संबंध आदि के आरोपी हैं। चार वर्ष पूर्व सन् 2006 में शून्य आमदनी के कारण कोई आयकर नहीं भरने वाले मोदी 2010 में 19 करोड़ रुपए आयकर भरते हैं। काले धन की उगाही और 'मनी लॉन्ड्रिग का आरोप इन पर है। आश्चर्य है कि इन गंभीर आरोपों की मौजूदगी के बावजूद डा. फारुख अब्दुल्ला मोदी के बचाव में सामने कैसे आ गए? देर-सबेर उन्हें इसका जवाब देना ही होगा। शशि थरूर ने लोकसभा में बयान देकर यह जताने की कोशिश की है कि उन्होंने कोई अनैतिक और अवैध काम नहीं किया है। उन्होंने इस्तीफा लोकतांत्रिक मूल्यों की खातिर दिया है। उनकी सफाई को कोई भी समझदार व्यक्ति स्वीकार नहीं करेगा। अपने प्रभाव का उपयोग कर महिला मित्र सुनंदा पुष्कर के नाम पर करोड़ों रुपए के शेयर का आवंटन कराने वाले थरूर को नैतिकता की बात करने का अधिकार नहीं है। उनका अपराध प्रमाणित हो चुका है। उनके इस्तीफे की पेशकश पर भावुक होने वाले प्रधानमंत्री राजधर्म का निर्वाह करें। निजी पसंद की चादर से थरूर के अपराध को ढकने की कोशिश न करें। मंत्रिपरिषद से हटा दिए जाने से उनका अपराध खत्म नहीं हो जाता। थरूर अब जिस लोकतांत्रिक मूल्यों की दुहाई दे रहे हैं, उसे दागदार ऐसी हस्तियों ने ही तो बना डाला है। ललित मोदी का अपराध तो अक्षम्य है। डा. फारुख अब्दुल्ला के करीबी मित्र केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ललित मोदी का बचाव कर चुके हैं। ठीक अब्दुल्ला की तर्ज पर मोदी को उन्होंने पहले पाक-साफ बताया था। ध्यान रहे बीसीसीआई इस पूरे प्रकरण में स्वयं कठघरे में खड़ा है। शरद पवार इसके अध्यक्ष रह चुके हैं और अब उनके द्वारा नामित शशांक मनोहर अध्यक्ष हैं। जगमोहन डालमिया को बीसीसीआई से निकाल बाहर करने के बाद पवार ने बोर्ड का मुख्यालय कोलकाता से मुंबई स्थानांतरित करा दिया था। तब चले आरोप-प्रत्यारोप के दौर में बीसीसीआई की अनेक अनियमितताएं उजागर हुई थीं। मामला पुलिस और अदालत तक भी पहुुंच गया था। लेकिन धीरे-धीरे पवार का वर्चस्व कायम हो गया। अपना कार्यकाल समाप्त होने पर पवार ने अपने विश्वासपात्र शशांक मनोहर को अध्यक्ष पद पर आसीन करवा डाला। शशांक वकील हैं, कानून को अच्छी तरह समझते हैं। ललित मोदी और बीसीसीआई की उलझन को वे अच्छी तरह समझ रहे हैं। उन्होंने मोदी समर्थक पवार को यह समझा दिया है कि अब मोदी का बचाव स्वयं बीसीसीआई के लिए महंगा पड़ सकता है। इसके पहले कि कानून मोदी को गिरफ्त में ले, उनसे मुक्ति पा लेनी चाहिए। सो यह तय है कि आईपीएल के चेयरमैन पद से मोदी से इस्तीफा ले लिया जाए। लेकिन नहीं, यह नाकाफी होगा। थरूर और मोदी दोनों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। साथ ही चूंकि यह साबित हो चुका है कि क्रिकेट का शरीफ खेल भ्रष्टाचार और अवैध धंधे का खेल बन गया है, इसकी सफाई जरूरी है। और यह तभी संभव है जब इस पर नियंत्रण योग्य खिलाडिय़ों का हो। राजनीतिकों को इससे दूर रखा जाए। बीसीसीआई सहित अनेक प्रदेश क्रिकेट संस्थाओं पर राजनीतिकों का कब्जा क्या संदेह पैदा नहीं करता? अवश्य ही किसी खास उद्देश्य से उन लोगों ने क्रिकेट पर कब्जा कर रखा है। बगैर किसी लाग-लपेट के यह कहा जा सकता है कि इन नेताओं की दिलचस्पी का कारण क्रिकेट-प्रेम तो नहीं ही है। ग्लैमर के साथ-साथ काले धन और सट्टेबाजी का कोण जुड़ जाने के कारण 'उद्देश्य' चिह्नित होने लगा है।

2 comments:

कविता रावत said...

किसी खास उद्देश्य से उन लोगों ने क्रिकेट पर कब्जा कर रखा है। बगैर किसी लाग-लपेट के यह कहा जा सकता है कि इन नेताओं की दिलचस्पी का कारण क्रिकेट-प्रेम तो नहीं ही है। ग्लैमर के साथ-साथ काले धन और सट्टेबाजी का कोण जुड़ जाने के कारण 'उद्देश्य' चिह्नित होने लगा है।
.......bahut saarthak post.....
aajkal bina liye-diye kuch kaam nahi..... yahi to raajniti gali chauraha aur ghar tak aa pahunchi hai ....
Saarthak samyik post ke liye aabhar

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सभी खेलों का यही हाल है...