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Monday, July 19, 2010

निकाल बाहर करें ममता बनर्जी को!

निश्चय ही रेल सेवा और दुर्घटनाओं को अब ममता बनर्जी की क्षमता और इच्छा से जोड़कर देखा जाना चाहिए। राजनीतिक बयानबाजी के पृथक पूरा देश एकमत है कि रेल मंत्रालय को बगैर और विलंब के ममता बनर्जी से मुक्त कर दिया जाना चाहिए। स्वयं तो वे इस्तीफा देंगी नहीं, प्रधानमंत्री पहल कर या तो उनसे इस्तीफा ले लें, या बर्खास्त कर दें। रेल यात्रियों को आये दिन 'मौत' देने का अधिकार किसी को नहीं है। राजनीतिक मजबूरी या वर्तमान राजनीतिक समीकरण के समक्ष अगर प्रधानमंत्री या संप्रग नेतृत्व घुटने टेक ममता को कायम रखता है, तब निश्चय ही ये सभी निर्दोष रेल यात्रियों की मौत के जिम्मेदार माने जाएंगे। रेल दुर्घटना का ताजा बीरभूम का मामला साफ-साफ लापरवाही का है। दुर्घटना के पीछे न तो तोडफ़ोड़ की कोई कार्रवाई है और ना ही नक्सली अथवा माओवादी हमले की। केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के इन शब्दों से कोई भी इत्तेफाक रखने को तैयार नहीं कि यह एक हादसा है और इसे हादसे के रूप में ही देखा जाना चाहिए।
प्रणब मुखर्जी का यह बयान शत प्रतिशत राजनीतिक है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए, दलीय नफा-नुकसान पर जोड़-घटाव के बाद दिया गया बयान है यह। पश्चिम बंगाल में पिछले दिनों संपन्न नगर निगमों और स्थानीय निकायों के चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की अप्रत्याशित सफलता से प्रभावित प्रणब मुखर्जी के बयान ने वस्तुत: पीडि़तों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है। हमारे लोकतंत्र का यह एक अत्यंत ही विकृत व असंवेदनशील स्वरूप है। पश्चिम बंगाल के चुनाव में ममता की तृणमूल कांग्रेस के सहयोग-समर्थन की अपेक्षा से कांग्रेसजन अच्छी तरह परिचित हैं। वे ममता को नाराज नहीं कर सकते। चुनाव संपन्न होने तक तो कतई नहीं। ऐसे में ममता के बचाव में कांग्रेस के प्रणब मुखर्जी का सामने आना कोई आश्चर्य पैदा नहीं करता। जहां तक जनपीड़ा और दुख की बात है, इसकी परवाह इन्होंने की ही कब है? पूर्व रेलमंत्रीद्वय रामविलास पासवान और लालू प्रसाद यादव के आरोप बिल्कुल सही हैं कि ममता बनर्जी रेल मंत्रालय को गंभीरता से नहीं ले रही हैं। या तो ममता मंत्रालय को संभालें या फिर पश्चिम बंगाल की राजनीति करें। ममता के रेलमंत्री बनने के बाद से अब तक पांच बड़े रेल हादसे हो चुके हैं। सैंकड़ों लोगों की जानें गई हैं, करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ है। निश्चय ही इसकी नैतिक जिम्मेदारी ममता बनर्जी पर आती है। रेल्वे जैसे बड़े महकमे की जिम्मेदारी ममता बनर्जी ने जिद के साथ संभाली थी। संप्रग सरकार को समर्थन की ममता की मुख्य शर्त ही रेल मंत्रालय की कमान थी। फिर वे रेलवे के सुचारु परिचालन और दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी से कैसे बच सकती हैं? जानकार पुष्टि करेंगे कि मंत्रालय के कामकाम के प्रति ममता की अगंभीरता बल्कि अनिच्छा के कारण न केवल मंत्रालय के दैनंदिन कार्य बल्कि पूरी की पूरी रेल सेवाएं अस्त-व्यस्त हो गई हैं। यात्रियों को वांछित सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। ट्रेनें समय पर नहीं चल पा रहीं, ट्रेनों में साफ-सफाई, यात्रियों को भोजन व अन्य सुविधाएं लगभग गुम हो गई हैं। किसी भी ट्रेन में सफर कीजिए, गंदगी से आपको दो-चार होना पड़ेगा। भोजन का स्तर निम्न से निम्नतम हो गया है। सुझाव पुस्तिका की परंपरा भी लगता है खत्म हो गई। किसी यात्री द्वारा मांगे जाने पर कंडक्टर बहाने बनाकर चल देता है। अचानक ऐसी अराजकता अगर आई है तो निश्चय ही मुखिया की बेरूखी तथा अकर्मण्यता के कारण ही। चूंकि इसका खामियाजा रेल यात्रियों को अपने प्राणों से चुकाना पड़ रहा है, सरकार को विशेषकर रेलमंत्री को जवाबदेही लेनी ही पड़ेगी। अगर ममता बनर्जी मंत्रालय के कामकाम के लिए समय देने में असमर्थ हैं तो उन्हें रेलमंत्री बने रहने का कोई हक नहीं है। अगर बीरभूम की घटना हादसा भी है तो इसकी जिम्मेदारी कप्तान के ही सिर होगी। मैं यहां सिर्फ नैतिकता की बात नहीं कर रहा, व्यवहार और परंपरा की भी बातें कर रहा हूं। दुर्घटना की जिम्मेदारी रेलमंत्री को लेनी ही होगी। पूर्व की तरह बेशर्म हो अगर वे जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं तब फैसला प्रधानमंत्री करें कि ममता बनर्जी समान अयोग्य व्यक्ति को रेल जैसे महत्वपूर्ण बड़े मंत्रालय की जिम्मेदारी क्यों जारी रखी जाए?

1 comment:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

रेलवे समेत तमाम जगहों पर कर्मचारियों पर कार्यभार बहुत अधिक है, इसके लिये कुछ नहीं किया जाता. निकम्मे लोगों को हटाया नहीं जाता और अच्छे लोगों को प्रोत्साहित नहीं किया जाता. बने रहोगे पगले, काम करेंगे अगले
बने रहोगे लुल्ल, सैलरी पाओगे फुल्ल
अगर ली टेंशन, बीवी पायेगी पेंशन
काम करो या मत करो
उसकी फिक्र जरूर करो
और फिक्र करो या मत करो
उसका जिक्र जरूर करो
जब सरकारी नौकरी में यह हाल होने लगे तो फिर कार्य तो ऐसे ही होंगे.