अब तो हद हो गई! पहले अमेरिकी पत्रिका 'टाइम', फिर अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा और अब इग्लैंड का दैनिक अखबार 'द इंडिपेंडेंट'! ये सभी हमारे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को दिशाहीन, भ्रष्ट मंत्रियों के समूह का मुखिया और 'सोनिया का गुड्डा' निरूपित कर रहे हंै। भारत की बढ़ती ताकत व प्रगति से ईष्र्या करने वाले पश्चिमी देशों की ऐसी टिप्पणियों को हमने रद्दी की टोकरियों में फेंक दिया है। हमें अपने प्रधानमंत्री की योग्यता, ईमानदारी और कार्य कुशलता पर इनके प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं। पश्चिम के शासक और उनके पिठ्ठू पत्रकार यह न भूलें कि भारत, वह भारत नहीं जिसकी उदारता का फायदा उठा छल-कपट से उन्होंने लगभग 200 वर्षो तक गुलाम बना रखा था। वह तो भोला 'भारतीय मन' था जिसे गुमराह करने में अंग्रेज सफल हुए थे। लेकिन असलियत सामने आने पर उठी विद्रोह की ज्वाला में झुलस अंग्रेजों को सात समंदर पार वापस जाने को मजबूर होना पड़ा था। संभवत: उन दिनों की 'कसक' के वशीभूत, स्वयं को सर्व शक्तिमान मानने वाले पश्चिम के देश हमारे शासकों पर अश्लील टिप्पणि कर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। इन भड़ासों की तह में छुपे हैं इनके वे स्वार्थ जो अब भारत पूरा नहीं कर पा रहा। खुदरा बाजार में विदेशी निवेश को अनुमति नहीं दिए जाने से तिलमिलाए अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने अभी हाल में हमारी आर्थिक नीति की आलोचना की थी। अपने अधिकार क्षेत्र की सीमा लांघ हमारे आंतरिक मामलों में दखल देने वाले ओबामा भूल गए कि हमारे इसी प्रधानमंत्री मनमोहन ने सन 2008 में परमाणु उर्जा पर अमेरिका के साथ करार के पक्ष में भारत सरकार के अस्तित्व को ही दांव पर लगा दिया था। तब देश में मनमोहन सिंह पर अमेरिका परस्त होने के आरोप लगे थे। आज वही मनमोहन अमेरिका-इग्लैंड की नजरों में दिशाहीन हो गए। यह तो भारत का मजबूत लोकतंत्र है, जो किसी को भी मनमानी करने की छूट नहीं देता। चाहे वे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हों या कांग्रेस अध्यक्ष व सप्रंग प्रमुख सोनिया गांधी ही क्यूं ना हो! अमेरिका-इग्लैंड की पत्रिका, समाचार पत्र व अमेरिकी राष्ट्रपति की टिप्पणियों पर सप्रंग सरकार व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आलोचक तथा विपक्ष खुश न हों। हमारे प्रधानमंत्री नकारा हैं, दिशाहीन हैं, कठपुतली हैं, गुड्डा हैं या भ्रष्ट मंत्री परिषद के मुखिया, इसका फैसला तो समय आने पर देशवासी स्वंय करेंगे। विचारणीय यह है कि पश्चिमी देशों से अचानक ऐसे आक्रमण क्यों हो रहे हैं। ध्यान रहे, ऐसे सभी आक्रमणों के केंद्र बिंदु एक अकेले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं। वह मनमेाहन सिंह जिनका अपना कोई राजनीतिक आधार नहीं है। अगर वे प्रधानमंत्री पद पर बने हुए हैं तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की कृपा से। यह कड़वा और दु:खद तथ्य भारत के राजनीतिक इतिहास में मोटी रेखा से चिंहित है। भारत का बच्चा-बच्चा इस तथ्य से परिचित है। कांग्रेस नेतृत्व की सप्रंग सरकार के घटक दल हों या विपक्षी दल, सुविधानुसार सभी इसे बहस का मुद्दा बनाते रहे हैं। इस खुली सचाई के बावजूद पश्चिमी मीडिया द्वारा इसे तूल दिए जाने का अर्थ है कि कहीं कोई गहरी साजिश रची जा रही है। ऐसी साजिश जिसकी परिणति उनके मनोनुकूल सत्ता परिवर्तन के रूप में हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा । इस शंका की गहरी छानबीन के बाद पता चलेगा कि षडयंत्र में हमारे कुछ 'अपने' शामिल हैं। यह संभव है। देश के इतिहास में जयचंदों और मीरजाफरों की उपस्थिति हमेशा दर्ज रही है। अनजाने में ही सही, पश्चिमी मीडिया ने जमीर को जगाने के लिए हर भारतीय का आह््वान कर डाला है। हमारा आग्रह है कि इस मुकाम पर पक्ष-विपक्ष एक हो जाएं। आजादी की लड़ाई के लक्ष्य और इसके लिए प्राणों की आहुति देने वालों को भूल देश के साथ गद्दारी न करंे। हजारों-लाखों कुर्बानियों के बाद हमने लक्ष्य हासिल किया। आज वही पश्चिमी कौम भारत को आर्थिक गुलामी की जंजीरों में जकड़ अपरोक्ष में उस पर शासन करना चाहते हैं। भारतीय प्रधानमंत्री के खिलाफ पश्चिम की ताजा सुगबुगाहट से साफ संकेत मिल रहे हैं कि उन्होंने साजिश को अंजाम तक पहुंचाने के लिए गति बढ़ा दी है। यह एक ऐसा संकट है जिसका मुकाबला दलगत राजनीति का त्याग कर एकजुट हो एक 'भारतीय परिवार' के रूप में करना होगा। यह साजिश अथवा संकट कोई कोरी कल्पना नहीं। इस संभावना के पुख्ता आधार स्पष्टता से दृष्टिगोचर हैं। सत्ता परिवर्तन तो लोकतंात्रिक पद्धति की स्वाभाविक प्रक्रिया है। किंतु, किसी परिवार विशेष अथवा व्यक्ति विशेष के पक्ष में अगर अंजाम की कोशिश होती है तो इसे सफल नहीं होने दिया जाना चाहिए। चुनौती है सत्तारूढ़ कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को और चुनौती है मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और अन्य विपक्षी दलों को भी। और हां, कोई यह न भूले कि इस संघर्ष में उनके योगदान को अंतत: देश की जनता अपनी कसौटी पर कस अंतिम निष्कर्ष निकालेगी।
Thursday, July 19, 2012
पश्चिम की नई खतरनाक साजिश !
अब तो हद हो गई! पहले अमेरिकी पत्रिका 'टाइम', फिर अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा और अब इग्लैंड का दैनिक अखबार 'द इंडिपेंडेंट'! ये सभी हमारे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को दिशाहीन, भ्रष्ट मंत्रियों के समूह का मुखिया और 'सोनिया का गुड्डा' निरूपित कर रहे हंै। भारत की बढ़ती ताकत व प्रगति से ईष्र्या करने वाले पश्चिमी देशों की ऐसी टिप्पणियों को हमने रद्दी की टोकरियों में फेंक दिया है। हमें अपने प्रधानमंत्री की योग्यता, ईमानदारी और कार्य कुशलता पर इनके प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं। पश्चिम के शासक और उनके पिठ्ठू पत्रकार यह न भूलें कि भारत, वह भारत नहीं जिसकी उदारता का फायदा उठा छल-कपट से उन्होंने लगभग 200 वर्षो तक गुलाम बना रखा था। वह तो भोला 'भारतीय मन' था जिसे गुमराह करने में अंग्रेज सफल हुए थे। लेकिन असलियत सामने आने पर उठी विद्रोह की ज्वाला में झुलस अंग्रेजों को सात समंदर पार वापस जाने को मजबूर होना पड़ा था। संभवत: उन दिनों की 'कसक' के वशीभूत, स्वयं को सर्व शक्तिमान मानने वाले पश्चिम के देश हमारे शासकों पर अश्लील टिप्पणि कर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। इन भड़ासों की तह में छुपे हैं इनके वे स्वार्थ जो अब भारत पूरा नहीं कर पा रहा। खुदरा बाजार में विदेशी निवेश को अनुमति नहीं दिए जाने से तिलमिलाए अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने अभी हाल में हमारी आर्थिक नीति की आलोचना की थी। अपने अधिकार क्षेत्र की सीमा लांघ हमारे आंतरिक मामलों में दखल देने वाले ओबामा भूल गए कि हमारे इसी प्रधानमंत्री मनमोहन ने सन 2008 में परमाणु उर्जा पर अमेरिका के साथ करार के पक्ष में भारत सरकार के अस्तित्व को ही दांव पर लगा दिया था। तब देश में मनमोहन सिंह पर अमेरिका परस्त होने के आरोप लगे थे। आज वही मनमोहन अमेरिका-इग्लैंड की नजरों में दिशाहीन हो गए। यह तो भारत का मजबूत लोकतंत्र है, जो किसी को भी मनमानी करने की छूट नहीं देता। चाहे वे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हों या कांग्रेस अध्यक्ष व सप्रंग प्रमुख सोनिया गांधी ही क्यूं ना हो! अमेरिका-इग्लैंड की पत्रिका, समाचार पत्र व अमेरिकी राष्ट्रपति की टिप्पणियों पर सप्रंग सरकार व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आलोचक तथा विपक्ष खुश न हों। हमारे प्रधानमंत्री नकारा हैं, दिशाहीन हैं, कठपुतली हैं, गुड्डा हैं या भ्रष्ट मंत्री परिषद के मुखिया, इसका फैसला तो समय आने पर देशवासी स्वंय करेंगे। विचारणीय यह है कि पश्चिमी देशों से अचानक ऐसे आक्रमण क्यों हो रहे हैं। ध्यान रहे, ऐसे सभी आक्रमणों के केंद्र बिंदु एक अकेले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं। वह मनमेाहन सिंह जिनका अपना कोई राजनीतिक आधार नहीं है। अगर वे प्रधानमंत्री पद पर बने हुए हैं तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की कृपा से। यह कड़वा और दु:खद तथ्य भारत के राजनीतिक इतिहास में मोटी रेखा से चिंहित है। भारत का बच्चा-बच्चा इस तथ्य से परिचित है। कांग्रेस नेतृत्व की सप्रंग सरकार के घटक दल हों या विपक्षी दल, सुविधानुसार सभी इसे बहस का मुद्दा बनाते रहे हैं। इस खुली सचाई के बावजूद पश्चिमी मीडिया द्वारा इसे तूल दिए जाने का अर्थ है कि कहीं कोई गहरी साजिश रची जा रही है। ऐसी साजिश जिसकी परिणति उनके मनोनुकूल सत्ता परिवर्तन के रूप में हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा । इस शंका की गहरी छानबीन के बाद पता चलेगा कि षडयंत्र में हमारे कुछ 'अपने' शामिल हैं। यह संभव है। देश के इतिहास में जयचंदों और मीरजाफरों की उपस्थिति हमेशा दर्ज रही है। अनजाने में ही सही, पश्चिमी मीडिया ने जमीर को जगाने के लिए हर भारतीय का आह््वान कर डाला है। हमारा आग्रह है कि इस मुकाम पर पक्ष-विपक्ष एक हो जाएं। आजादी की लड़ाई के लक्ष्य और इसके लिए प्राणों की आहुति देने वालों को भूल देश के साथ गद्दारी न करंे। हजारों-लाखों कुर्बानियों के बाद हमने लक्ष्य हासिल किया। आज वही पश्चिमी कौम भारत को आर्थिक गुलामी की जंजीरों में जकड़ अपरोक्ष में उस पर शासन करना चाहते हैं। भारतीय प्रधानमंत्री के खिलाफ पश्चिम की ताजा सुगबुगाहट से साफ संकेत मिल रहे हैं कि उन्होंने साजिश को अंजाम तक पहुंचाने के लिए गति बढ़ा दी है। यह एक ऐसा संकट है जिसका मुकाबला दलगत राजनीति का त्याग कर एकजुट हो एक 'भारतीय परिवार' के रूप में करना होगा। यह साजिश अथवा संकट कोई कोरी कल्पना नहीं। इस संभावना के पुख्ता आधार स्पष्टता से दृष्टिगोचर हैं। सत्ता परिवर्तन तो लोकतंात्रिक पद्धति की स्वाभाविक प्रक्रिया है। किंतु, किसी परिवार विशेष अथवा व्यक्ति विशेष के पक्ष में अगर अंजाम की कोशिश होती है तो इसे सफल नहीं होने दिया जाना चाहिए। चुनौती है सत्तारूढ़ कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को और चुनौती है मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और अन्य विपक्षी दलों को भी। और हां, कोई यह न भूले कि इस संघर्ष में उनके योगदान को अंतत: देश की जनता अपनी कसौटी पर कस अंतिम निष्कर्ष निकालेगी।
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