मीडिया का बढ़ता कुनबा
पतित बिरादरी
पहले समाचार पत्र-पत्रिकाएं होती थीं। कम पारिश्रमिक या वेतन के बावजूद पत्रकारों का झुंड जुड़ा था। इन्हें 'प्रेस' का सम्मानित दर्जा प्राप्त था। फिर दौर आया 'छोटे बाक्स' अर्थात 'इडियट बाक्स' का मतलब 'टेलीविजन' का। 'प्रेस' का आकार बढ़कर 'मीडिया' हो गया। 'प्रिंट' व 'इलेक्ट्रानिक' में विभाजित। और फिर दौर चला 'सामाजिक माध्यम' अर्थात 'सोशल मीडिया' का। कहा गया, लोकतंत्र का चौथा खंभा और मजबूत हो गया। इनकी निगरानी में लोकतंत्र सुरक्षित रहेगा। क्या सचमुच? बहस के पहले वीभत्स परिणाम सामने आने लगे। रोग साधारण मलेरिया से बढ़कर टायफाइड और फिर कैंसर में परिवर्तित हो गया। 'सोशल मीडिया' अर्थात सामाजिक माध्यम तो बिल्कुल असामाजिक बन महामारी के रूप में फैलता जारहा है। यह एक ऐसा अकेला मीडिया, जिसमें न तो कोई संपादक है और न ही जवाबदेही निर्धारित करनेवाला संचालक। बेलगाम यह कथित मीडिया झूठ और अश्लीलता के प्रचार-प्रसार का माध्यम बनता जा रहा है। अब इलाज हो तो भी कैसे, जब चिकित्सक स्वयं रोगी बन बैठे।
मीडिया के हाथों प्रताडि़त या अपमानित राजनेताओं को मौका मिला और उन्होंने प्रेमपूर्वक मीडिया को 'बाजारु' और 'वेश्या' के विशेषण से विभूषित कर डाला। मीडिया तिलमिलाया तो किंतु भ्रष्टाचार, व्यभिचार और कथित रूप से चमचागिरी में आपादमस्तक डूबे रहने के कारण जवाब क्या देता, प्रतिरोध में भी अक्षम! कुछ अपवाद छोड़ दें, तो समाचार पत्र-पत्रिकाएं और खबरिया चैनल हर पल - हर दिन समाज को स्वच्छ अनुकरणीय बनाने, शिक्षित करने की जगह गंदगी और भ्रम से प्रदूषित करते पाये जाते हैं। कोई किसी का महिमा-मंडन कर रहा होता है या फिर कपड़े फाड़ नंगे करता। सच से दूर प्रायोजित और सिर्फ प्रायोजित उपक्रम-कार्यक्रम मुद्रित और प्रसारित होते देखे जा रहे हैं। समाज और शासकों को प्रतिदिन नैतिकता, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठता का उपदेश देने में तो मीडिया चार कदम आगे दिखता है किंतु जब बात खुद पर आती है तब घोर अनैतिक बेईमान और कर्तव्यविमुख चिन्हित होता है-कतिपय अपवाद छोड़कर। आज मीडिया का कड़वा सच यही है।
इस पाश्र्व में, ईमानदार पत्रकारिता की ओर उन्मुख कुछ पुराने और नई पीढ़ी की बड़ी फौज अगर हतप्रभ है, निराश है तो दोषियों की पहचान क्यों न की जाये?
नागपुर से प्रकाशित साप्ताहिक 'सेंट्रल ऑब्ज़र्वर' ने अपने एक स्तंभ 'मीडिया मंडी' के माध्यम से इसी का बीड़ा उठाया है। बगैर किसी पूर्वाग्रह के, राग-द्वेष या कुंठा के। प्रत्येक सप्ताह 'मीडिया मंडी' जहां मीडिया को आईना दिखाने का काम करेगा, वहीं ईमानदारी से कर्तव्य निष्पादन के कटिबद्ध नये-पुराने पत्रकारों को अपनी सीमा के अंतर्गत शिक्षित व प्रोत्साहित करने का भी। तथ्य और भाषा की पवित्रता-गरिमा को कायम रखते हुए ऊंचाई देने को भी 'मीडिया मंडी' कृत संकल्प हैं। हम यहां दोहरा दे कि इस स्तंभ का उद्देश्य किसी को भी नीचा दिखाने या अपमानित करने का नहीं है। झूठ का पर्दाफाश कर सच को प्रस्तुत करने की प्रक्रिया में कुछ छीटें तो पड़ेगें, किंतु हमें विश्वास है कि वे छींटे संशोधन के लिए संबंधित पात्र को प्रेरित करेंगे। 'मीडिया मंडी' के अभियान की सफलता इसी पर निर्भर है। और तब शायद कोई राजनेता मीडिया को 'बाजारु' या 'वेश्या' निरुपित करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा।
'मीडिया मंडी' पाठकों का आह्वान करता है कि वे भी मीडिया को लेकर अपनी शिकायतें हमें प्रेषित करें। बेखौफ होकर हमें बताएं, हम उनके नाम गुप्त रखते हुए समुचित स्थान देगें। सिर्फ स्थान ही नहीं देंगे, निराकरण भी सुनिश्चित करेगें। हां शिकायतें सप्रमाण हों, बेबुनियाद नहीं। 'मीडिया मंडी' का यह अभियान जोखिम भरा है, क्योंकि हम उस घर की सफाई करने निकले है, जिसके हमाम में सभी नंगे कहे जाते हैं। हम इस धारणा को कालांतर में बदल देने को कटिबद्ध हैं। बगैर किसी स्वार्थयुक्त अपेक्षा के। समय चाहे जो लगे, परिणाम चाहे आत्मघाती ही क्यों न निकले।
पतित बिरादरी
पहले समाचार पत्र-पत्रिकाएं होती थीं। कम पारिश्रमिक या वेतन के बावजूद पत्रकारों का झुंड जुड़ा था। इन्हें 'प्रेस' का सम्मानित दर्जा प्राप्त था। फिर दौर आया 'छोटे बाक्स' अर्थात 'इडियट बाक्स' का मतलब 'टेलीविजन' का। 'प्रेस' का आकार बढ़कर 'मीडिया' हो गया। 'प्रिंट' व 'इलेक्ट्रानिक' में विभाजित। और फिर दौर चला 'सामाजिक माध्यम' अर्थात 'सोशल मीडिया' का। कहा गया, लोकतंत्र का चौथा खंभा और मजबूत हो गया। इनकी निगरानी में लोकतंत्र सुरक्षित रहेगा। क्या सचमुच? बहस के पहले वीभत्स परिणाम सामने आने लगे। रोग साधारण मलेरिया से बढ़कर टायफाइड और फिर कैंसर में परिवर्तित हो गया। 'सोशल मीडिया' अर्थात सामाजिक माध्यम तो बिल्कुल असामाजिक बन महामारी के रूप में फैलता जारहा है। यह एक ऐसा अकेला मीडिया, जिसमें न तो कोई संपादक है और न ही जवाबदेही निर्धारित करनेवाला संचालक। बेलगाम यह कथित मीडिया झूठ और अश्लीलता के प्रचार-प्रसार का माध्यम बनता जा रहा है। अब इलाज हो तो भी कैसे, जब चिकित्सक स्वयं रोगी बन बैठे।
मीडिया के हाथों प्रताडि़त या अपमानित राजनेताओं को मौका मिला और उन्होंने प्रेमपूर्वक मीडिया को 'बाजारु' और 'वेश्या' के विशेषण से विभूषित कर डाला। मीडिया तिलमिलाया तो किंतु भ्रष्टाचार, व्यभिचार और कथित रूप से चमचागिरी में आपादमस्तक डूबे रहने के कारण जवाब क्या देता, प्रतिरोध में भी अक्षम! कुछ अपवाद छोड़ दें, तो समाचार पत्र-पत्रिकाएं और खबरिया चैनल हर पल - हर दिन समाज को स्वच्छ अनुकरणीय बनाने, शिक्षित करने की जगह गंदगी और भ्रम से प्रदूषित करते पाये जाते हैं। कोई किसी का महिमा-मंडन कर रहा होता है या फिर कपड़े फाड़ नंगे करता। सच से दूर प्रायोजित और सिर्फ प्रायोजित उपक्रम-कार्यक्रम मुद्रित और प्रसारित होते देखे जा रहे हैं। समाज और शासकों को प्रतिदिन नैतिकता, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठता का उपदेश देने में तो मीडिया चार कदम आगे दिखता है किंतु जब बात खुद पर आती है तब घोर अनैतिक बेईमान और कर्तव्यविमुख चिन्हित होता है-कतिपय अपवाद छोड़कर। आज मीडिया का कड़वा सच यही है।
इस पाश्र्व में, ईमानदार पत्रकारिता की ओर उन्मुख कुछ पुराने और नई पीढ़ी की बड़ी फौज अगर हतप्रभ है, निराश है तो दोषियों की पहचान क्यों न की जाये?
नागपुर से प्रकाशित साप्ताहिक 'सेंट्रल ऑब्ज़र्वर' ने अपने एक स्तंभ 'मीडिया मंडी' के माध्यम से इसी का बीड़ा उठाया है। बगैर किसी पूर्वाग्रह के, राग-द्वेष या कुंठा के। प्रत्येक सप्ताह 'मीडिया मंडी' जहां मीडिया को आईना दिखाने का काम करेगा, वहीं ईमानदारी से कर्तव्य निष्पादन के कटिबद्ध नये-पुराने पत्रकारों को अपनी सीमा के अंतर्गत शिक्षित व प्रोत्साहित करने का भी। तथ्य और भाषा की पवित्रता-गरिमा को कायम रखते हुए ऊंचाई देने को भी 'मीडिया मंडी' कृत संकल्प हैं। हम यहां दोहरा दे कि इस स्तंभ का उद्देश्य किसी को भी नीचा दिखाने या अपमानित करने का नहीं है। झूठ का पर्दाफाश कर सच को प्रस्तुत करने की प्रक्रिया में कुछ छीटें तो पड़ेगें, किंतु हमें विश्वास है कि वे छींटे संशोधन के लिए संबंधित पात्र को प्रेरित करेंगे। 'मीडिया मंडी' के अभियान की सफलता इसी पर निर्भर है। और तब शायद कोई राजनेता मीडिया को 'बाजारु' या 'वेश्या' निरुपित करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा।
'मीडिया मंडी' पाठकों का आह्वान करता है कि वे भी मीडिया को लेकर अपनी शिकायतें हमें प्रेषित करें। बेखौफ होकर हमें बताएं, हम उनके नाम गुप्त रखते हुए समुचित स्थान देगें। सिर्फ स्थान ही नहीं देंगे, निराकरण भी सुनिश्चित करेगें। हां शिकायतें सप्रमाण हों, बेबुनियाद नहीं। 'मीडिया मंडी' का यह अभियान जोखिम भरा है, क्योंकि हम उस घर की सफाई करने निकले है, जिसके हमाम में सभी नंगे कहे जाते हैं। हम इस धारणा को कालांतर में बदल देने को कटिबद्ध हैं। बगैर किसी स्वार्थयुक्त अपेक्षा के। समय चाहे जो लगे, परिणाम चाहे आत्मघाती ही क्यों न निकले।
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