क्या 'दो टूक बोलना अपराध है ? समाज में इस पर मतविभाजन हो सकता है, किंतु अधिकांश 'दो टूक' के पक्षधर ही मिलेंगे। इसे नकारात्मक रूप में देखने वालों की भी कमी नहीं। कारण, दो दूक रुपी बाण की 'चोट' कभी-कभी असहनीय होती है। लेकिन सकारात्मक सोच वाले 'दो टूक' को प्रेरणा के रूप में ले, अनुसरण करने में पीछे नहीं रहते। हालांकि, 'दो टूक' प्राय: विवाद पैदा कर बहस का मुद्दा भी बनते रहे है। एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो टूक को सकारात्मक रूप में ले समर्थक-प्रशंसक प्रेरणा पुंज के रुप में उद्धृत करते रहते हैं, वहीं दूसरी ओर मंत्री द्वय जनरल वी. के. सिंह, गिरिराज सिंह तथा सांसद योगी आदित्यनाथ, साध्वी निरंजना आदि के 'दो टूक' को लोगबाग नकारात्मक श्रेणी में डाल आलोचना करने से नहीं चूकते। किंतु, मंत्री नितिन गडकरी इन सबों से पृथक 'दो टूक' उवाचक हैं। निश्छल, निष्काम, निडर, 'दो टूक' के स्वामी नितिन गडकरी परिणाम से बेखौफ आम जिंदगी से
दो-चार कड़वी सचाईयों को 'दो टूक' पेश करने से नहीं हिचकते। उद्देश्य साफ है- लोगबाग सचाई से अवगत हो सके।
ताजा 'दो टूकश' का उद्भव नागपुर के एक कार्यक्रम में तब हुआ जब अपने संबोधन के दौरान गडकरी ने मजाकिया लहजे में पहले तो कथित 'मीडिया मैनेजमेंट' को आड़े हाथों लिया, वहीं यह टिप्पणी कर सनसनी पैदा कर दी कि इन दिनों पद्म पुरस्कार के लिए 'लाबिंग' आम बात हो गई है। तब गडकरी सामान्य मजाकिया 'मूड' में थे। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए गडकरी ने प्रसंग को यह कहकर गंभीर बना दिया कि अपने जमाने की विख्यात अभिनेत्री आशा पारेख ने एक बार, लिफ्ट खराब होने के कारण सीढिय़ों से चढ़ बारहवें माले पर स्थित उनके निवास पर पहुंच 'पद्म भूषण' सम्मान की याचना की थी। पद्मश्री सम्मान प्राप्त आशा पारेख पद्म भूषण सरीखा उच्च सम्मान चाहती थीं। अतिरिक्त उत्साहित किंतु गैर-जिम्मेदार मीडिया ने गडकरी के मजाकिया कथन को गंभीर विवादित बयान के रुप में परोस दिया। गैर-जिम्मेदाराना बयान बताने से भी वे नहीं चूके। मीडिया के इस चरित्र से परिचित लोगों ने तो ध्यान नहीं दिया लेकिन गडकरी जैसे कद्दावर नेता के मुख से निकले इन शब्दों को जिस रुप में मीडिया ने परोसा उसने एक प्रकार से गडकरी के खिलाफ नकारात्मक वातावरण तैयार करने का कार्य किया। अपने उल्लेखनीय कार्यों के कारण मोदी सरकार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुके गडकरी के लिए क्या जानबूझकर ऐसे वातावरण का निर्माण किया गया? यह एक अलग बहस का मुद्दा हो सकता है किंतु सत्य के धरातल पर आलोच्य विषय को मैं आगे ले जाना चाहूंगा।
गडकरी तब गलत थे जब उन्होंने कहा कि 'इन दिनों' लाबिंग होती है। 'दो टूक' सच जान लीजिए- लाबिंग 'पद्म पुरस्कारों' के जन्म के समय अर्थात 50 के दशक से ही शुरू हो चुकी थी। बगैर किसी दुराग्रह या विपरीत मंशा के, मैं सचाई को रेखांकित करने के लिए ये उदाहरण दे रहा हूं। व्यक्तिगत संबंध होने के बावजूद, एक प्रत्यक्षदर्शी के नाते मैं यह बताने को मजबूर हूं। तब पटना में विख्यात ज्योतिष विष्णुकांत झा हुआ करते थे। उन्होंने प्रथम राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद पर संस्कृत में 'राजेंद्र वंशों प्रशस्ति' (जहां तक मुझे स्मरण है) नामक एक पुस्तक लिखी। पटना से ध्यान आकृष्ट करते हुए राष्ट्रपति को एक पत्र लिख पंडित विष्णुकांत झा को पद्मश्री सम्मान के लिए अनुशंसा की गई। पंडित विष्णुकांत झा को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। दूसरी घटना भी 50 के दशक की है। राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने दक्षिण की एक महिला का नाम पद्मश्री पुरस्कार के लिए तत्कालीन गृह मंत्री गोविंदवल्लभ पंत को सुझाया। गृह मंत्रालय ने पता लगा कर उस नाम की एक शिक्षिका का नाम पद्मश्री पुरस्कार के लिए अनुशंसित कर राष्ट्रपति के पास भेज दिया। तब राष्ट्रपति की ओर से संशोधन किया गया कि वह शिक्षिका नहीं बल्कि एक नर्स है जिसने अस्वस्थता के दौरान कभी उनकी सेवा-सुश्रुषा की थी। उसे भी पद्मश्री सम्मान प्राप्त हुआ। निश्चय ही ये दोनों उदाहरण उच्चस्तरीय 'लॉबिंग' को ही रेखांकित करते हैं। नितिन गडकरी ने तो बात 'इन दिनों' के लिए की। उन्हें आश्वस्त हो जाना चाहिए कि सिलसिला नया नहीं, पुराना है।
ताजा उदाहरण क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर का भी है। पद्म सम्मान के बाद तेंदुलकर को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। यह स्वयं में एक चौंकाने वाला निर्णय था। जिस आयु वर्ग में और जिस क्षेत्र से सचिन तेंदुलकर का भारत रत्न के लिए चयन किया गया उसे 'दो टूक' कहा जाये तो भारत राष्ट्र ने स्वीकार नहीं किया। कुछ निहित स्वार्थियों को छोड़ दें, तो किसी के गले के नीचे वह निर्णय नहीं उतरा। निर्विवाद रुप से सचिन तेंदुलकर विश्व के एक महान क्रिकेट खिलाड़ी रहे हैं। किंतु, 'भारत रत्न' जैसे सर्वोच्च सम्मान के लिए उनकी 'पात्रता'? नि:संदेह संदिग्ध ! बाद में खबरें प्रकट भी हुईं कि तेंदुलकर को 'भारत रत्न' सम्मान सत्ता पक्ष की एक तगड़ी लॉबिंग के कारण संभव हुआ। कहने का लब्बो-लुआब यह कि समाज के हर क्षेत्र में चाहे राजनीति हो, शिक्षा हो, उद्योग व्यापार हो या फिर सार्वजनिक जीवन हो, 'लॉबिंग' का बोलबाला पहले भी था और आज भी है। नितिन गडकरी की इस मुद्दे पर आलोचना करने से पूर्व इस सत्य को भी जान लेना चाहिए। और गडकरी भी आश्वस्त हो जाए कि वे गलत नहीं हैं।
दो-चार कड़वी सचाईयों को 'दो टूक' पेश करने से नहीं हिचकते। उद्देश्य साफ है- लोगबाग सचाई से अवगत हो सके।
ताजा 'दो टूकश' का उद्भव नागपुर के एक कार्यक्रम में तब हुआ जब अपने संबोधन के दौरान गडकरी ने मजाकिया लहजे में पहले तो कथित 'मीडिया मैनेजमेंट' को आड़े हाथों लिया, वहीं यह टिप्पणी कर सनसनी पैदा कर दी कि इन दिनों पद्म पुरस्कार के लिए 'लाबिंग' आम बात हो गई है। तब गडकरी सामान्य मजाकिया 'मूड' में थे। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए गडकरी ने प्रसंग को यह कहकर गंभीर बना दिया कि अपने जमाने की विख्यात अभिनेत्री आशा पारेख ने एक बार, लिफ्ट खराब होने के कारण सीढिय़ों से चढ़ बारहवें माले पर स्थित उनके निवास पर पहुंच 'पद्म भूषण' सम्मान की याचना की थी। पद्मश्री सम्मान प्राप्त आशा पारेख पद्म भूषण सरीखा उच्च सम्मान चाहती थीं। अतिरिक्त उत्साहित किंतु गैर-जिम्मेदार मीडिया ने गडकरी के मजाकिया कथन को गंभीर विवादित बयान के रुप में परोस दिया। गैर-जिम्मेदाराना बयान बताने से भी वे नहीं चूके। मीडिया के इस चरित्र से परिचित लोगों ने तो ध्यान नहीं दिया लेकिन गडकरी जैसे कद्दावर नेता के मुख से निकले इन शब्दों को जिस रुप में मीडिया ने परोसा उसने एक प्रकार से गडकरी के खिलाफ नकारात्मक वातावरण तैयार करने का कार्य किया। अपने उल्लेखनीय कार्यों के कारण मोदी सरकार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुके गडकरी के लिए क्या जानबूझकर ऐसे वातावरण का निर्माण किया गया? यह एक अलग बहस का मुद्दा हो सकता है किंतु सत्य के धरातल पर आलोच्य विषय को मैं आगे ले जाना चाहूंगा।
गडकरी तब गलत थे जब उन्होंने कहा कि 'इन दिनों' लाबिंग होती है। 'दो टूक' सच जान लीजिए- लाबिंग 'पद्म पुरस्कारों' के जन्म के समय अर्थात 50 के दशक से ही शुरू हो चुकी थी। बगैर किसी दुराग्रह या विपरीत मंशा के, मैं सचाई को रेखांकित करने के लिए ये उदाहरण दे रहा हूं। व्यक्तिगत संबंध होने के बावजूद, एक प्रत्यक्षदर्शी के नाते मैं यह बताने को मजबूर हूं। तब पटना में विख्यात ज्योतिष विष्णुकांत झा हुआ करते थे। उन्होंने प्रथम राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद पर संस्कृत में 'राजेंद्र वंशों प्रशस्ति' (जहां तक मुझे स्मरण है) नामक एक पुस्तक लिखी। पटना से ध्यान आकृष्ट करते हुए राष्ट्रपति को एक पत्र लिख पंडित विष्णुकांत झा को पद्मश्री सम्मान के लिए अनुशंसा की गई। पंडित विष्णुकांत झा को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। दूसरी घटना भी 50 के दशक की है। राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने दक्षिण की एक महिला का नाम पद्मश्री पुरस्कार के लिए तत्कालीन गृह मंत्री गोविंदवल्लभ पंत को सुझाया। गृह मंत्रालय ने पता लगा कर उस नाम की एक शिक्षिका का नाम पद्मश्री पुरस्कार के लिए अनुशंसित कर राष्ट्रपति के पास भेज दिया। तब राष्ट्रपति की ओर से संशोधन किया गया कि वह शिक्षिका नहीं बल्कि एक नर्स है जिसने अस्वस्थता के दौरान कभी उनकी सेवा-सुश्रुषा की थी। उसे भी पद्मश्री सम्मान प्राप्त हुआ। निश्चय ही ये दोनों उदाहरण उच्चस्तरीय 'लॉबिंग' को ही रेखांकित करते हैं। नितिन गडकरी ने तो बात 'इन दिनों' के लिए की। उन्हें आश्वस्त हो जाना चाहिए कि सिलसिला नया नहीं, पुराना है।
ताजा उदाहरण क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर का भी है। पद्म सम्मान के बाद तेंदुलकर को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। यह स्वयं में एक चौंकाने वाला निर्णय था। जिस आयु वर्ग में और जिस क्षेत्र से सचिन तेंदुलकर का भारत रत्न के लिए चयन किया गया उसे 'दो टूक' कहा जाये तो भारत राष्ट्र ने स्वीकार नहीं किया। कुछ निहित स्वार्थियों को छोड़ दें, तो किसी के गले के नीचे वह निर्णय नहीं उतरा। निर्विवाद रुप से सचिन तेंदुलकर विश्व के एक महान क्रिकेट खिलाड़ी रहे हैं। किंतु, 'भारत रत्न' जैसे सर्वोच्च सम्मान के लिए उनकी 'पात्रता'? नि:संदेह संदिग्ध ! बाद में खबरें प्रकट भी हुईं कि तेंदुलकर को 'भारत रत्न' सम्मान सत्ता पक्ष की एक तगड़ी लॉबिंग के कारण संभव हुआ। कहने का लब्बो-लुआब यह कि समाज के हर क्षेत्र में चाहे राजनीति हो, शिक्षा हो, उद्योग व्यापार हो या फिर सार्वजनिक जीवन हो, 'लॉबिंग' का बोलबाला पहले भी था और आज भी है। नितिन गडकरी की इस मुद्दे पर आलोचना करने से पूर्व इस सत्य को भी जान लेना चाहिए। और गडकरी भी आश्वस्त हो जाए कि वे गलत नहीं हैं।
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