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Tuesday, October 6, 2009

दफन हो गई सीबीआई की साख

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व निदेशक जोगिंदरसिंह के इस दावे को कोई चुनौती देगा कि ''बोफोर्स आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत नहीं होने की बात सफेद झूठ है!ÓÓ हमारे देश की शीर्ष खुफिया जांच एजेंसी उसी सीबीआई के निदेशक रह चुके हैं जोगिंदरसिंह, जिसने बोफोर्स मामले को इस आधार पर मौत दे दी कि मुकदमा जारी रखना अनुचित होगा। अदालत में एजेंसी ने मामला खत्म करने का आवेदन सद् भावना और जनहित में दिया। यह कथन है सीबीआई का। लगभग 22 वर्ष पूर्व बोफोर्स मामले के उजागर होने के बाद आक्टिविया क्वात्रोकी मुख्य अभियुक्त बनाए गए थे। आरोप लगे थे कि क्वात्रोकी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी अब कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के काफी निकट हैं। 1986 मेें बोफोर्स दलाली मामले का विस्फोट होने के बाद स्वीडन के प्रधानमंत्री की रहस्यमय परिस्थितियों में हत्या कर दी गई थी, तब संदेह के अनेक बादल उमड़े थे। दलाली मामले में विपक्ष ने ही नहीं, सत्ता पक्ष के कुछ लोगों ने राजीव गांधी को सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया था। राजीव मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य विश्वनाथप्रतापसिंह बगावत कर बैठे। उन्होंने कांग्रेस छोड़ जनमोर्चा का गठन किया और 1989 के लोकसभा चुनाव में बोफोर्स को चुनाव का राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर चुनौती दे डाली। कांग्रेस पराजित हुई और विश्वनाथप्रतापसिंह प्रधानमंत्री बने। तब कहा गया था कि चुनाव परिधाम सत्ता के भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता का फैसला है। लोकतंत्र की वह बड़ी विजय थी। फिर आज उसी लोकतंत्र में ऐसा क्यों हो रहा है कि बोफोर्स पर सरकारी निर्णय घोर शासकीय अराजकता को चिन्हित कर रहा है। देश की सर्वोच्च खुफिया जांच एजेंसी सीबीआई को शासकों के पक्ष में रेंगते देखा जा रहा है। सीबीआई और सरकार के तर्कों को सीबीआई के ही एक पूर्व निदेशक चुनौती दे रहे हैं। सरकार के इस दावे को कि क्वात्रोकी के खिलाफ कोई सबूत नहीं है, जोगिंदरसिंह सफेद झूठ निरूपित कर रहे हैं। किसी स्वतंत्र संस्था से सर्वेक्षण करा लें, देश का बहुमत जोगिंदरसिंह के समर्थन में खड़ा मिलेगा। बोफोर्स प्रकरण के दो दशक की यात्रा के दौरान जो-जो तथ्य उभरकर सामने आए, वे चीख-चीखकर कह रहे हैं कि सीबीआई के पास पूरे प्रमाण तो हैं किंतु वह सरकार के दबाव में सबूतों को झुठला गई। सचमुच यह आश्चर्यजनक है कि जो दस्तावेज स्वयं बोफोर्स कंपनी ने सीबीआई व भारत सरकार को उपलब्ध कराए थे, उन्हीं दस्तावेजों को स्वयं सरकार ने झुठला दिया। हमें पीड़ा हो रही है किंतु उपलब्ध तथ्यों के आलोक में हम यह कहने को मजबूर हैं कि सीबीआई ने सत्ता केंद्र के एक पुराने एजेंडे को पूरा कर दिया। किस कीमत पर? स्वयं अपनी साख और विश् वसनीयता की कीमत पर? अर्थात् सिर्फ बोफोर्स का भूत ही मरा, सीबीआई की साख भी दफन हो गई।

1 comment:

SP Dubey said...

अब भी नही सम्हले तो………………………क्या होगा इस देश का………?