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Thursday, October 15, 2009

'लालू स्वांग' न अपनाएं नीतिश!

कभी लालू प्रसाद यादव के 'फ्रेंड-फिलॉस्फर- गाइड' रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने इस बार अपने प्रशंसकों को निराश किया है। पिछड़े बिहार में चाहे मामला विकास का हो या फिर कानून व्यवस्था का, नीतिश गंभीरता के साथ हर मोर्चे पर बिहार हित के लिए सक्रिय हैं। इनके विरोधी भी इस हेतु नीतिश की प्रशंसा करते हैं। पेशे से इंजीनियर नीतिश ने कभी भी मसखरेपन को तव्वजो नहीं दिया। विपक्ष के हमलों का जवाब नीतिश ने हमेशा अपने कार्यों से दिए। फिर ऐसा क्या हुआ जो उन्होंने सतही शब्दों में लालू यादव और रामविलास पासवान का मजाक उड़ा डाला। धीर-गंभीर नीतिश के व्यक्तित्व के लिए यह अशोभनीय है। कहीं ऐसा तो नहीं कि पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और लोजपा का सफाया करने के बाद विधानसभा के लिए संपन्न उपचुनाव में राजद और लोजपा के बेहतरीन प्रदर्शन से नीतिश अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं? यह एक कड़ी टिप्पणी है किंतु नीतिश के ताजा आचरण से दु:खी ऐसे शब्दों के इस्तेमाल के लिए मैं मजबूर हूं। क्या कहा था लालू ने? अपने कार्यकर्ताओं को अनुशासन में रहने की सलाह ही तो दी थी उन्होंने! इसमें गलत क्या था? देर आयद, दुरुस्त आयद की तर्ज पर लालू के इस आह्वान की तो प्रशंसा की जानी चाहिए थी। ऐसा कर नीतिश एक आदर्श प्रस्तुत कर सकते थे। किंतु उन्होंने इसके लिए लालू का मजाक उड़ा स्वयं को सामान्य नेताओं की पंक्ति में खड़ा कर लिया। जानकार उन दिनों को अभी भूले नहीं है जब लालू प्रसाद यादव के प्रथम मुख्यमंत्रित्वकाल में नीतिश सर्वाधिक शक्तिशाली माने जाते थे। केंद्र में मंत्री रहते हुए नीतिश की बिहार पर पकड़ मजबूत थी। सच तो यह है कि तब मुख्यमंत्री के रुप में लालू के प्राय: सभी निर्णय 'नीतिश प्रभावित' हुआ करते थे। फिर आज अनुशासन के नाम पर लालू की आलोचना क्यों? यह कोई नहीं कहेगा कि लालू कभी अनुशासन प्रिय रहे हैं। यह भी कि लालू के इर्द-गिर्द हमेशा अनुशासनहीन-अराजक तत्वों का जमावड़ा रहा है। लालू की अपनी प्राथमिकताएं भी अनुशासन आधारित कभी नहीं रहीं। बावजूद इसके अब अगर वे चाहते हैं कि उनके कार्यकर्ता अनुशासन में रहें तब उनके इस कदम का विरोध क्यों? वह भी नीतिश कुमार की ओर से! सत्ता से हटने के बाद ही सही अगर लालू ने अनुशासन के महत्व को समझ लिया है तब अच्छा होता कि नीतिश अपने इस पुराने बड़े भाई की पीठ थपथपा प्रोत्साहित करते। सुबह का भूला जब शाम को लौट आता है तब उसका स्वागत करने की हमारी पुरानी संस्कृति रही है। नीतिश कुमार की पिछले दिनों एक सकारात्मक -उत्साहवर्धक राष्ट्रीय छवि बनी है। एक कुशल व ईमानदार प्रशासक के रूप में तेजी से भारतीय राजनीति के क्षितिज पर उभरने वाले नीतिश की चर्चा अब देश के एक संभावित प्रधानमंत्री के रूप में भी होने लगी है। फिर लालू बनने की राह पर नीतिश क्यों चल पड़े? यह पीड़ादायक है। नीतिश अपने महत्व को समझें और धीर-गंभीर आचरण का त्याग तो नहीं ही करें।

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