Friday, October 30, 2009
अमेरिकी दिलचस्पी आपत्तिजनक
जिस बात की आशंका थी, वह सच होती नजर आ रही है। भारत के आंतरिक मामलों में अमेरिका की 'दिलचस्पी' अपशकुन सूचक है। भारत को सतर्क रहना होगा। अमेरिकी प्रशासन की धार्मिक स्वतंत्रता की ताजा रिपोर्ट पर केंद्र की संप्रग सरकार खुश न हो। रिपोर्ट में केंद्र सरकार की पीठ अमेरिका ने तो थपथपाई है किन्तु हमारे देश के कतिपय आंतरिक कानून, संशोधन और भारतीय नेता के भाषण पर चिंता जताकर उसने सीधे-सीधे हमारे मामले में दखल दी है। अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिका की यह पहली रिपोर्ट है। अमेरिका की इस रिपोर्ट में धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी केंद्र सरकार की नीति की प्रशंसा करते हुए चिंता व्यक्त की गई है कि कुछ राज्यों में केंद्र की इस नीति को स्थानीय स्तर पर कैसे लागू किया जाए। धर्मांतरण विरोधी कुछ राज्यों में बनाए गए कानूनों पर भी अमेरिका की इस रिपोर्ट में चिंता व्यक्त की गई है। चिंता यह भी व्यक्त की गई है कि धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक समुदाय पर हमला करने वाले लोगों के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की जाती। और तो और पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता वरुण गांधी के कथित भड़काऊ भाषण का जिक्र भी है। यह घटना विकासक्रम अत्यंत ही खतरनाक है। हमारे आंतरिक मामलों में ऐसी दिलचस्पी दिखाने वाला अमेरिका होता कौन है? लगता है, उसने भारत को पाकिस्तान समझ लिया है। अमेरिका के सामने नतमस्तक पाकिस्तान की दयनीय अवस्था से सारा संसार परिचित है। वहां चाहे राष्ट्रपति की नियुक्ति का मामला हो या प्रधानमंत्री का, अमेरिकी सुझाव ही निर्णायक होता है। सेनाध्यक्ष की नियुक्ति में भी अमेरिकी पसंद को तरजीह दी जाती है। पिछले वर्षों में अमेरिका के साथ परमाणु ऊर्जा करार विवाद के समय से ही ऐसी आशंका व्यक्त की जाने लगी थी कि अंतत: भारत अमेरिकी इच्छा के आगे नतमस्तक हो जाएगा। पाकिस्तान की तरह भारत में भी अमेरिका आंतरिक मामलों में दखल देना शुरू कर देगा। ऐसे आरोप लगने शुरू हो गए हैं कि भारत की विदेश व आर्थिक नीतियां अमेरिका प्रभावित हैं। संसद के अंदर और बाहर विपक्ष ऐसे आरोप लगाता रहा है। सरकार की ओर से पुरजोर खंडन के बावजूद आम जनता आश्वस्त नहीं हो पा रही है। इस पाश्र्व में अमेरिकी प्रशासन की रिपोर्ट पर आपत्ति स्वाभाविक है। देश में भाजपा शासित राज्यों की स्थिति पर चिंता प्रकट करना और वरुण गांधी के कथित भड़काऊ भाषण का जिक्र अमेरिकी मंशा को चिह्नित करता है। भारत सरकार इसे साधारण घटना मान खारिज न करे। यह शुरुआत है। तत्काल आपत्ति दर्ज कर अमेरिका को चेतावनी दे दी जाए कि वह हमारे आंतरिक मामलों में दिलचस्पी लेना बंद कर दे। पिछले दिनों बलूचिस्तान, आतंकवाद और कश्मीर के मुद्दों पर अमेरिकी रुख संदिग्ध रहा है। एक तरफ तो वह पाकिस्तान को आतंकवादियों की शरणस्थली बताता है, दूसरे ही क्षण उसे आतंक पीडि़त निरूपित कर देता है। कश्मीर को पाकिस्तानी तर्ज पर परोक्ष में अमेरिका विवादित क्षेत्र बताने से नहीं चूकता। पाकिस्तान और चीन की तरह अमेरिका पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। भारत पर पाकिस्तान और चीनी आक्रमण के समय अमेरिकी भूमिका भारत विरोधी ही रही है। आज अगर वह भारत के साथ मित्रता का हाथ बढ़ा रहा है तो यह उसका स्वांग मात्र है। ठीक उसी तरह का जैसे 1962 में आक्रमण के पूर्व चीन ने स्वांग रचा था। शांति और सहयोग के मार्ग पर हम चलें अवश्य किन्तु किसी अन्य देश को अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की इजाजत न दें। वरुण गांधी का आपत्तिजनक भाषण हो या धर्मांतरण विरोधी कानून, ये सब हमारे निजी मामले हैं। बेहतर हो अमेरिका इनसे दूर रहे।
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1 comment:
लेख मे व्यक्त लेखक चिन्ता सच मे चिन्ताजनक तो है,परन्तु क्या सरकार तक आप की बात पहुच पायेगी और सरकार अपने सरकार होने का परिचय देगी। सुचित करियेगा
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