centeral observer

centeral observer

To read

To read
click here

Sunday, October 11, 2009

यही तो है आज की राजनीति!

देश की राजनीति के असली चेहरे को रेखांकित करने के लिए अजीत दादा पवार का अभिनंदन। मराठा क्षत्रप शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने बगैर किसी लाग-लपेट के साफ-साफ कह दिया है कि, 'महत्वपूर्ण यह है कि सरकार बनाकर सत्ता पर कब्जा कैसे किया जाए। ' शाबाश, अजीत दादा। आपने बता दिया कि मूल्य, सिद्धान्त, नीति, चरित्र, आदर्श आदि-आदि की बातें वर्तमान राजनीति में कोई मायने नहीं रखती। अगर कुछ मायने रखती है तो वह है सत्ता और सिर्फ सत्ता। इसे हासिल करने के लिए राजनीतिक दल कुछ भी कर सकते हैं। महाराष्ट्र में इसी माह 13 तारीख को विधानसभा चुनाव के मतदान पड़ेंगे। चुनावी पंडितों ने खंडित जनादेश की भविष्यवाणी कर दी है। शायद हो भी ऐसा ही। जाहिर है तब सरकार बनाने के लिए जोड़-तोड़, खरीद-फरोख्त का बाजार गर्म होगा। इसी स्थिति को भांप राष्ट्रवादी कांग्रेस के अजीत पवार ने घोषणा कर दी है कि सरकार बनाने के लिए अगर जरूरत पड़ी तो उनकी पार्टी राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का सहयोग लेने से नहीं हिचकेगी। उन्होंने मनसे को समान विचार वाली पार्टी करार दिया है। यह दु:खद है। अजीत पवार इस सत्य से अच्छी तरह परिचित हैं कि दिवंगत भिंडरावाले और प्रभाकरण की तरह राज ठाकरे भी कांग्रेस के एक मोहरा हैं। कभी इंदिरा गांधी ने पंजाब पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए संत भिंडरावाले की मदद ही नहीं ली थी बल्कि उन्हें अच्छी तरह पाला-पोसा था। श्रीलंका में हिंसक अस्थिरता के लिए जिम्मेदार प्रभाकरण को भी परोक्ष में इंदिरा गांधी का सहयोग प्राप्त था। दोनों के हश्र से संसार वाकिफ है। एक इंदिरा गांधी की हत्या का कारण बना तो दूसरा राजीव गांधी की हत्या का। महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा युति को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस, शिवसेना से रूठ कर अलग हुए बाल ठाकरे के भतीजे राजठाकरे का इस्तेमाल कर रही है। पिछले लोकसभा चुनावों में नि:संदेह इस मोहरे ने कांग्रेस को लाभ पहुंचाया। राजनीति में कब, कौन, किसके साथ हमविस्तर होगा- यह बताना कठिन है। किंतु राजठाकरे की सेना को समान विचारों वाला दल बताकर अजीत पवार ने स्वयं अपनी पार्टी को कठघरे में खड़ा कर दिया है। क्या राकांपा भी राज ठाकरे की तरह जाति, धर्म और क्षेत्रियता की राजनीति कर रही है या करना चाहती है? जिस राज ने महान महाराष्ट्र को एक संकुचित प्रदेश के रुप में संसार के सामने पेश करने की कोशिश की है, उसे सभी नकार चुके हैं। हिंसा और घृणा के हथियार से प्रदेश में अराजकता पैदा कर सत्ता पर काबिज होने की 'राज ठाकरे नीति' को मान्यता नहीं दी जा सकती। स्वयं कांग्रेस इस नीति का विरोध कर चुकी है। फिर अजीत पवार अगर राजस्तुति कर रहे हैं तो उन्हीं के अनुसार, 'सत्ता पर कब्जे के लिए'। राजनीति में मूल्यों के गिरावट का यह एक घिनौना उदाहरण है। हालांकि देश में ऐसा पहले भी होता आया है। 70 के दशक में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कथित कुशासन के खिलाफ जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति के अनेक योद्धा कांग्रेस नेतृत्व की केंद्र सरकार में शामिल हुए और सत्ता की मलाई खाई, आज भी खा रहे हैं। ऐसे में अजीत पवार की साफगोई की आलोचना न कर राजनीतिक मूल्यों के क्षरण पर बहस जरूरी है। पहल हो और तत्काल हो। अन्यथा, निश्चय मानिए भारतीय राजनीति का भावी चेहरा अत्यंत ही विद्रूप-कुरुप होगा। और लोकतंत्र बदल जाएगा जोक-तंत्र में।

No comments: