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Sunday, May 30, 2010

नीतीश और बिहार पर सार्थक बहस

'नीतीश का बिहार , नीतीश के पत्रकार' में बिहार की वर्तमान पत्रकारिता पर की गई मेरी टिप्पणी पर अनेक प्रतिक्रियाएं मिली हैं। विभिन्न ब्लॉग्स पर भी टिप्पणियां की जा रहीं हैं। कुछ सहमत हैं, कुछ असहमत हैं। एक स्वस्थ- जागरूक समाज में ऐसी बहस सुखद है। लेकिन मेरी टिप्पणी से उत्पन्न भ्रम को मैं दूर करना चाहूंगा।
अव्वल तो मैं यह बता दूं कि अपने आलेख में मैंने कहीं भी बिहार अथवा नीतीश कुमार की आलोचना विकास के मुद्दे पर नहीं की है। मेरी आपत्ति उन पत्रकारों के आचरण पर है जो कथित रुप से सच पर पर्दा डाल एकपक्षीय समाचार दे रहें हैं या विश्लेषण कर रहें हैं। कथित इसलिए कि मेरा पूरा का पूरा आलेख एक पत्रकार मित्र द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित था । अगर वह जानकारी गलत है तो मैं अपने पूरे शब्द वापस लेने को तैयार हूं। और अगर सच है तब पत्रकारिता के उक्त कथित पतन पर व्यापक बहस चाहूंगा। उक्त मित्र के अलावा अनेक पत्रकारों सहित विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पत्रकारों को प्रलोभन के जाल में फांस लेने की जानकारियां दी हैं। मेरे आलेख पर विभिन्न ब्लॉग्स में ऐसी टिप्पणियां भी आ रहीं हैं। फिर दोहरा दूं, अगर पत्रकारों के संबंध में आरोप सही हैं तब उनकी आलोचना होनी ही चाहिए।
'उसका सच' ब्लॉग पर भाई सुरेंद्र किशोरजी का साक्षात्कार पढ़ा। सुरेंद्र किशोरजी मेरे पुराने मित्र हैं। उनकी पत्रकारीय ईमानदारी को कोई चुनौती नहीं दे सकता। ठीक उसी प्रकार जैसे नीतीश कुमार की व्यक्तिगत ईमानदारी पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता। सुरेंद्रजी की बातों पर अविश्वास नहीं किया जा सकता लेकिन अगर पत्रकारों को प्रलोभन और प्रताडि़त किए जाने की बात प्रमाणित होती हैं तब निश्चय मानिए, सुरेंद्र किशोरजी उनका समर्थन नहीं करेंगे।
किसी ने टिप्पणी की है कि मैं नागपुर में रहकर राज ठाकरे की भाषा बोलने लगा हूं। उन्हें मैं क्षमा करता हूं कि निश्चय ही मेरे पाश्र्व की जानकारी नहीं होने के कारण उन्होंने टिप्पणी की होगी। मेरे ब्लॉग के आलेख पढ़ लें तो उन्हें मालूम हो जाएगा कि राज ठाकरे सहित ठाकरे परिवार पर मैं क्या लिखता आया हूं। 1991 में, जब उन दिनों बाल ठाकरे के खिलाफ लिखने की हिम्मत शायद ही कोई करता था, मैंने अपने स्तंभ में 'नामर्द' शीर्षक के अंतर्गत उनकी तीखी आलोचना की थी। क्योंकि तब शिवसैनिकों ने मुंबई में पत्रकारों के मोर्चे पर हथियारों के साथ हमला बोला था। पत्रकार मणिमाला पर घातक हथियार से हमला बोला गया था। मेरी टिप्पणी से क्रोधित दर्जनों शिवसैनिकों ने मेरे आवास पर हमला बोल दिया था। आज भी उत्तर भारतीयों के खिलाफ राज ठाकरे के घृणित अभियान पर कड़ी टिप्पणियों के लिए मुझे जाना जाता है।
सभी जान लें, बिहार की छवि और विकास की चिंता मुझे किसी और से कम नहीं है। हां, अगर अपनी बिरादरी अर्थात पत्रकार बिकाऊ दिखेंगे तब उन पर भी मेरी कलम विरोध स्वरुप चलेगी ही। लालूप्रसाद यादव का उल्लेख मैंने जिस संदर्भ में किया है उस पर बहस जरूरी है। लालू ने पत्रकारीय मूल्य को चुनौती दी है। उन्हें जवाब तो देना ही होगा।

3 comments:

संजय पाराशर said...

kriya ki pratikriya yhi hai vigyan aur yhi hai jeevan. maine padi thi aapki post kafi prabhavi thi . isme jra duri banate nazar aa rhe ho.

honesty project democracy said...

मेरी आपत्ति उन पत्रकारों के आचरण पर है जो कथित रुप से सच पर पर्दा डाल एकपक्षीय समाचार दे रहें हैं या विश्लेषण कर रहें हैं।
ये स्थिति शर्मनाक है एक सच्चे पत्रकार और इंसानियत दोनों के लिए ,इसे बदलने की कोशिस आप भी करिए और हर इन्सान को करना चाहिए क्योकि सच्ची पत्रकारिता ही जब कलम से तलवार बनेगी तब जाकर बदलाव आएगा |

Arun sathi said...

आपने जिस बात की चर्चा की है उसमें बहुत सच्चाई है। और यहां बिहार मे रहकर मेरे जैस लोग रोज रोज इससे रूबरू हो रहे है। पत्रकार अधोषित रूप से इस बात का पालन कर रहे कि सरकार के खिलाफ खबर नहीं लगेगी। इससे सम्बंधित एक बाकाया मैं सुनाना चाहूंंगा। राष्ट्रीय सहारा की बैठक में जब एक पत्रकार बंधू ने संपादक श्री हरीश पाठक से यह पूछ लिया कि नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ जब खबर भेजते है तो वह क्यों नहीं छपती तो आदरणीय संपादक महोदय खामोश हो कर इस तरह बगले झांकने लगे जैसे किसी ने उनकी चोरी पकड़ ली हो और जब इस बात पर फिर से जोर दिया गया तो झुंझला कर बोले के इसके लिए प्रबंधक से बात करीए।
हम और हमारे साथी इसके भुग्तभोगी है और जानते है कि सरकार के खिलाफ खबर नहीं छपनी है। एक और बाकया मैं बताना चाहूंगा। मैं बिहार के शेखपुरा जिले से रिपाZेटिंग का काम करता हूं और आज से एक साल पहले पशु हाट के विवाद को लेकर कांग्रेसी नेता सुरेश सिंह कें पशु हाट के लाइसेंस को रदद कर जदयू नेता एवं अनन्त सिंह के भाई त्रिशुलधारी सिंह ने पशु हाट को अपने आदमी के नाम कर ली। इस प्रकरण में पूरा जिला पुलिस जानवर को पकड़ कर नये पशु हाट पर ले गई और जिसने इसका विरोध किया उसपर मुकदमा किया गया तथा मारपीट हुई हम सभी ने इस खबर को लगातार कितनी बार भेजा पर एक बार भी प्रकाशित नहीं किया गया। शेखपुरा जिला के बरबीघा-शेखोपुरसराय सड़क के किनारे पत्थर का टुकड़ा देने तथा सफेद पटटी बनाने का ठीका एक जदयू के चहेते को दे दिया गया बिना किसी टेण्डर कें 12 लाख का ठेका। इस समाचार को सभी अखबारो में भेजा गया पर किसी ने इसे प्रकाशित नहीं किया।
जदयू के एक नेता जी है जिनके अनुसार अब हमलोगेां बेकार अकड़ते है अखबार को ही मैनेज कर लिया गया है।
हां अभी कल ही एक बहुत ही बुरी खबर आई है एसएमएस के जरीए। साधना न्यूज चैनल के लिए मैं काम करता हूं और कल से पहले सरकार के खिलाफ खबर नहीं ली जाती थी पर आज सरकार के खिलाफ खबर भेजने के लिए आशुतोष सहाय जी का एसएमएस आया है लगता है चैनल का सरकार के साथ सौदा नहीं पटा और पटाने को दबाब बनाया जाएगा। क्या क्या लिखे। आठ साल से ग्रामीण क्षेत्र से समाचार प्रेशण का काम कर रहा हूं पर आज लगता है कि यह सब बेकार कर रहा। पहले जन समस्याओं को लेकर लड़ता था, नेताओं की पोल खोलता था, डाक्टर अस्पताल में नहीं इसके लिए समाचार लगातार भेजता था पर आज यह सब करने को मन नहीं करता पता नहीं शायद अब मुझे भी लगने लगा है कि किसी से दुश्मनी मोल लेकर क्या मिलेगा, फयादा क्या होगा। इसी उधेरबुन मे आज कल जी रहा हुं।