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Monday, May 31, 2010

'राजनीति' के लिए निर्दोषों की बलि!

अगर ममता बनर्जी के आरोप में दम है तब राजनीति के इस घिनौने पक्ष को तत्काल मौत दे दी जाए। विलंब की स्थिति में निर्दोष और आम लोगों के खून से हमारी धरती लाल होती रहेगी, इतिहास बदरंग हो जाएगा। सत्ता की राजनीति करने वाले छल-कपट, जातीयता, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता और धनबल-बाहुबल का इस्तेमाल करते रहे हैं। ये आचरण अब आश्चर्य पैदा नहीं करते। सत्ता में बने रहने के लिए अदालती आदेश को धता बता एक प्रधानमंत्री देश को आपातकाल के हवाले कर चुकी हैं। एक राष्ट्रीय दल सत्ता में बने रहने के लिए एक वैसे क्षेत्रीय दल के साथ सत्ता में भागीदारी करता है जिसे पूर्व में वह अपने नेता की हत्या का षडय़ंत्रकारी निरूपित कर चुका होता है। यह सत्ता की अवसरवादी राजनीति ही है जिसने लालू प्रसाद यादव, शिबू सोरेन, मधु कोडा, सुखराम, मायावती आदि को फलने-फूलने दिया। क्वात्रोची और नीरा राडिया जैसे दलाल पैदा हुए। किंतु ताजा दृष्टांत स्तब्धकारी है।
रेलमंत्री ममता बनर्जी का आरोप है कि झाडग़्राम रेल हादसा वस्तुत: एक राजनीतिक साजिश की परिणति है। तो क्या लगभग 150 निर्दोष लोग राजनीतिक स्वार्थवश मौत की नींद सुला दिए गए? ममता बनर्जी कुछ ऐसा ही मानती हैं। अब यह पता लगाया जाना जरूरी है कि साजिशकर्ता कौन हैं! अगर सिर्फ 'राजनीति' के लिए ममता बनर्जी ऐसी आशंका प्रकट कर रही हैं तब वे स्वयं एक गलत आचरण की दोषी मानी जाएंगी। हालांकि उन्होंने सीधे तौर पर नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा निश्चय ही पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ वामपंथियों की ओर है। चूंकि आरोप ममता बनर्जी लगा रही हैं, प्रमाण उन्हें ही देना होगा। वामपंथी तो आरोप को खारिज करेंगे ही। विस्फोट कर निर्दोषों को मौत देने की घटना देशद्रोह की श्रेणी की है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने इसकी जांच करने की पहल की है, इसका स्वागत है। लेकिन शर्त यह कि जांच पूर्णत: निष्पक्ष हो। सीबीआई के दुरुपयोग पर इन दिनों बहस जारी है। अगर सीबीआई की जांच भी राजनीति प्रेरित हो गई तब जो झूठ सच बनकर सामने आएगा, उस पर भला कोई कैसे विश्वास करेगा? एक और विस्मयकारी तथ्य! रेलमंत्री तो माओवादियों को निशाने पर लेने का संकेत दे रही हैं। राज्य के आला पुलिस अधिकारी दुर्घटनास्थल के आसपास माओवादियों की मौजूदगी की बातें कर रहे हैं। तब फिर रेलवे की ओर से जो एफआईआर दर्ज कराई गई उसमें माओवादियों का जिक्र क्यों नहीं है? क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है? एफआईआर में इसे साधारण तोडफ़ोड़ की घटना निरूपित किया जाना अनेक शंकाओं को जन्म दे रहा है। बहरहाल मैं चाहूंगा कि पूरी घटना की निष्पक्ष जांच तो हो ही, सभी राजनीतिक दल व संगठन अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए निर्दोष लोगों की बलि लेने से परहेज करें।

1 comment:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

ये तो मैकियावलियन राजनीति का एक घृणित चेहरा है जनाब... सबसे अधिक...क्रूर...