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Tuesday, January 11, 2011

... अब कपिल सिब्बल भी इस्तीफा दें!

नैतिकता का तकाजा है कि केंद्रीय संचार मंत्री कपिल सिब्बल अविलंब अपने पद से इस्तीफा दे दें। यह सोच पूरे देश की है, जिसे मैं यहां शब्दांकित कर रहा हूं - बगैर किसी पूर्वाग्रह के। यह कोई निजी मांग नहीं, किसी विचारधारा विशेष की उपज नहीं। चूंकि तत्कालीन केंद्रीय संचार मंत्री ए. राजा को इस्तीफा देना पड़ा था 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाले के आरोप लगने पर, अब जबकि नये संचार मंत्री सिब्बल ऐसे किसी घोटाले से इन्कार कर रहे हैं, उन्हें पद पर बने रहने का अधिकार नहीं। सिब्बल का यह कदम भ्रष्टाचार को संवैधानिक स्वीकृति प्रदान करने के समान है। आजाद भारत के इतिहास में इस सबसे बड़े घोटाले की जांच का आदेश भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है। संसद की लोकलेखा समिति उस 'कैग' रिपोर्ट पर मंथन कर रही है जिसने घोटाले का खुलासा किया था। पूरा का पूरा विपक्ष घोटाले की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से कराने की मांग पर अड़ा है। संसद में इसे लेकर गतिरोध कायम है। ऐसे में एक जिम्मेदार (?) केंद्रीय मंत्री का ऐसा बयान! यह न केवल सर्वोच्च न्यायालय बल्कि भारतीय संसद की अवमानना का भी मामला है। सिब्बल भले ही तर्क-कुतर्क देते रहें, यह साफ है कि उन्होंने घोटाले की जांच को प्रभावित करने की कोशिश की है, पूर्व मंत्री ए. राजा को बचाने की कोशिश की है। यह तो सर्वोच्च न्यायालय और संसद को चुनौती भी है। एक ऐसा मामला जिसकी सीबीआई जांच सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में किए जाने संबंधी सुझाव स्वयं केंद्र सरकार दे चुकी है, एक मंत्री मामले पर फैसला सुना रहा है।
क्या हम प्रधानंमत्री डा. मनमोहन सिंह से आशा करें कि वे तत्काल कदम उठाते हुए या तो कपिल सिब्बल से इस्तीफा ले लें या फिर उन्हें बरखास्त कर देंगे? इसके पूर्व किसी केंद्रीय मंत्री ने कभी भी भारतीय संसद और सर्वोच्च न्यायालय की ऐसी अवमानना नहीं की थी। लोकलेखा समिति के अध्यक्ष डा. मुरली मनोहर जोशी और जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने बिल्कुल सही आलोचना की है। यह आश्चर्यजनक है कि दूरसंचार सचिव जब पीएसी के समक्ष पेश हुए थे, तब उन्होंने स्पेक्ट्रम आवंटन में संभावित नुकसान के आंकड़े पर कभी सवाल नहीं उठाया। विभागीय सचिव के विपरीत मंत्री सिब्बल ने नुकसान के आंकड़े को झूठा और काल्पनिक निरूपित कर स्वयं को मंत्री पद के अयोग्य प्रमाणित कर दिया है। इससे साथ ही सिब्बल ने अपने आचरण से केंद्र सरकार और अपनी कांग्रेस पार्टी को भी संदेहो के घेरों में ला दिया है। यह उचित समय है जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह अपनी चुप्पी तोड़ सिब्बल को तो पदमुक्त कर ही दें, स्पेक्ट्रम घोटाले की संयुक्त संसदीय समिति से जांच को भी मंजूरी दे दें।

3 comments:

Himanshu said...

आपने बिलकुल सही आकलन किया है. स्वार्थ संपोषित राजसत्ता तो एक दूजे को बचाने के लिए ही तो होती है, यही सन्देश कपिल सिब्बल अपने वक्तव्यों से जाहिर कर रहे हैं. उनसे इस्तीफा मांगना बिकुल जायज है.

माधव( Madhav) said...

greed

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

विचारणीय है.