यह समझ से बिलकुल परे है और अनेक संदेहों का आमंत्रक है। आखिर भारत सरकार देश के खजाने को लूट विदेशी बैंकों में जमा कराने वाले 'डकैतों' के नाम सार्वजनिक क्यों नहीं करना चाहती? शासन में पारदर्शिता का तो तकाजा है ही, लोकतांत्रिक अपेक्षा भी है कि सरकार उन 'डकैतों' के नाम न केवल सार्वजनिक करे, उन्हें कठोर दंड भी दे। देश की जनता को यह जानने का अधिकार है कि उनकी खून-पसीने की कमाई को लूटनेवाले कौन है! उनके सफेद धन को काले धन में परिवर्तित कर विदेशी बैंको में जमा करानेवाले राष्ट्रद्रोही कौन हैं? देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करनेवाले नकाबपोश आखिर हैं कौन? पूरे संसार में भारत देश को भ्रष्टतम की श्रेणी में रखनेवाले लोगों के चेहरों को सरकार बेनकाब क्यों नहीं करना चाहती? निश्चय ही केंद्र सरकार का यह रवैया देशहित के विरुद्ध है।
सर्वोच्च न्यायालय में सरकार की ओर से कहा गया कि वह विदेशी बैंकों में पैसे जमा करानेवालों के नाम कोर्ट को तो बता सकती है। मगर सार्वजनिक नहीं कर सकती, देश स्तब्ध रह गया। साफ है कि सरकार की नीयत में खोट है। यह तो सभी समझते हैं कि विदेशी बैंकों में धन कोई साधारण व्यक्ति जमा नहीं करा सकता। ऊंची पहुंच वाले, सामथ्र्यवान ही ऐसा कर सकते हैं। सरकार की हिचक का कारण भी स्पष्टत: यही है। वह ऐसे प्रभावशाली लोगों को बचाना चाहती है। यह न केवल सामथ्र्यवानों का बचाव है बल्कि राष्ट्रद्रोही हरकत भी है। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कर दिया है कि विदेशी बैंकों में जमा काला धन राष्ट्रीय संपत्ति की लूट है। ऐसे लुटेरों को आखिर भारत सरकार सामने क्यों नहीं लाना चाहती? सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे काले धन के आतंकी गतिविधियों में इस्तेमाल किए जाने की आशंका जगाकर मामले को और भी गंभीर बना दिया है। अगर आतंकवादियों द्वारा ऐसे धन के इस्तेमाल की बात पुष्ट होती है, तब क्या स्वयं भारत सरकार आतंकवादियों की सहयोगी नहीं बन जाएगी? वैसी स्थिति में निश्चय ही सरकार सत्ता में बने रहने का हक खो देगी। अपराधी कही जाएगी वह! आरोप है कि स्विस बैंकों में लगभग 21 लाख हजार करोड़ रुपए की राशि कुछ भारतीयों के नाम जमा है। क्या यह बताने की जरूरत है कि इस राशि के भारत में वापस लाए जाने के बाद देश की अर्थव्यवस्था सकारात्मक करवट ले विकास के क्षेत्र में क्रांति पैदा कर देगी! धनाभाव में रुकी योजनाएं दु्रत गति से अपने लक्ष प्राप्त कर लेंगी! इसी बात का तो अचरज है कि इन सब बातों की जानकारी के बावजूद भारत सरकार काले धन के अपराधियों का अब तक बचाव करती रही है। भारत सरकार की 'सीमा' संबंधी दलीलें किसी के गले उतरने वाली नहीं। देश हित के मार्ग में किसी सीमा, किसी संधि को स्वीकार नहीं किया जा सकता। साफ और सीधी बात यह है कि काले धन के इन व्यापारियों का बचाव कर सरकार देश के साथ छल कर रही है। खोट भरी अपनी नीयत से देश का अहित कर रही है। किसी लोकतांत्रिक देश के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को ऐसा अधिकार कतई नहीं। अब भी समय है, सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश-अपेक्षा को राष्ट्रीय भावना समझ भारत सरकार अविलंब राष्ट्रीय संपत्ति को लूटनेवाले चेहरों को बेनकाब कर दे। अन्यथा दुखित-पीडि़त लोकतंत्र ने अगर अंगड़ाई ले ली तो उसके नीचे वे दब-कुचल जायेंगे।
1 comment:
उम्मीद तो सुप्रीम कोर्ट से ही है..
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