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Thursday, April 2, 2009

'मैं' नहीं, 'लोक' की बात करें राहुल!


चूंकि किस्मत इनके साथ है, सत्ता सिंहासन इन्हें मिलते रहे हैं. शायद इसीलिए नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य इतिहास तो छोडि़ए, प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने वाली ताजातरीन घटनाओं से भी ये सबक लेने को तैयारी नहीं. विरासत में मिली 'राजनीति' का भरपूर उपयोग करना ये अच्छी तरह जानते हैं. 'परिवार' के आभामंडल से प्रभावित कांग्रेस जन पलक बिछाकर इनके लिए सत्ता का मार्ग प्रशस्त करते रहते हैं. बावजूद इसके यह सचाई भी तो अपनी जगह कायम है कि 'सत्ता' इनके लिए अब अस्थायी आवास नहीं रह गई है. मीमांसा करने पर कारण तो अनेक मिलेंगे, मुख्य कारण पारिवारिक अहं और चाटुकारिता को प्रोत्साहन है. कांग्रेस अगर बीच-बीच में धराशायी होती रही तो इसी कारण. नेहरू की नई पीढ़ी का 'अज्ञान' भी इन कारणों के फलने-फू लने का सबब बना है. अगर ऐसा नहीं होता तो परिवार के उत्तराधिकारी राहुल गांधी वर्धा के सार्वजनिक संबोधन में 'मैं' का इस्तेमाल नहीं करते. चूंकि यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है कि राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी पहले से बताए गए तैयार भाषण दिया करते हैं, अधिक दोषी चाटुकार सलाहकार हैं. 'गरीबी हटाओ' का आकर्षक -लोकप्रिय नारा इंदिरा गांधी ने तब दिया, जब उनके नेतृत्व को ही कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिली थी. आज राहुल जब वर्धा में यह कहते हैं कि 'जब तक देश में एक भी गरीब बचा रहेगा, तब तक मैं व सोनिया गांधी गरीबों की आवाज सुनते रहेंगे.', उन्होंने इस कड़ी में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम अवश्य लिया. किन्तु सभी जानते हैं कि ऐसा सिर्फ उन्हें फुसलाने के लिए किया गया. वह भी इसलिए, ताकि मनमोहन का इस्तेमाल ढाल के रूप में किया जा सके. राहुल के सलाहकार यहां चूक गए. वे भूल गए कि 'मैं' से 'डिक्टेटर' की बू आती है. लोकतंत्र की आजाद जनता इसे पसंद नहीं करती. उत्तरप्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान राहुल गांधी ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की चर्चा करते हुए यह कह डाला था कि अगर नेहरू-गांधी परिवार का कोई व्यक्ति तब प्रधानमंत्री होता, तो मस्जिद नहीं गिरती. 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्ध और बांग्लादेश उदय का श्रेय भी राहुल गांधी ने अपनी दादी इंदिरा गांधी को दे दिया था. नतीजतन उत्तरप्रदेश के उस चुनाव में न केवल कांग्रेस की सीटें घटीं, बल्कि वोट का प्रतिशत भी गिरा. क्या यह बताने की जरूरत है कि मतदाता ने राहुल की बातों को खारिज कर दिया था. देश का लोकतंत्र सामूहिक नेतृत्व का आग्रही है, न कि व्यक्तिवादी नेतृत्व का. सलाहकारों की अज्ञानता (या कुटिलता) की चर्चा के बीच गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान सोनिया गांधी के आत्मघाती तेवर की चर्चा प्रासंगिक होगी. ध्यान रहे, उस काल में देश के सभी राजनीतिक समीक्षक लगभग सहमत थे कि वहां नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली भाजपा का सफाया कर कांग्रेस सत्ता में आ जाएगी. चुनावी हवा कुछ ऐसी ही बह रही थी. लेकिन तभी सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी व उनकी सरकार को 'मौत का सौदागर' निरूपित कर डाला. रातोंरात सारी फिजा बदल गई. हवा ने रुख पलट लिया. कांग्रेस पराजित हो गई. उत्तरप्रदेश में राहुल की तरह गुजरात की पराजय का दोष सोनिया के सिर मढ़ दिया गया. सोनिया-राहुल ऐसे सलाहकारों से सावधान रहें. उत्तेजक व लुभावने शब्द तालियां तो बटोर लेते हैं, वोट नहीं. और दु:खद पहलू यह कि छवि खराब होती है नेतृत्व की. सलाहकार अपनी कुटिल मुस्कानों के साथ ऐश करते मिल जाएंगे.
2 अप्रैल 2009

2 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

राहुल अगर मैं का प्रयोग करते हैं तो कांग्रेस इस बात के लिए उन्‍हें मजबूर करती है। सारी ही कांग्रेस जानती है कि इस परिवार के बिना उनका अस्तित्‍व नहीं है तभी तो जिन नेताओं को भाषण देना तक नहीं आता वे आज सबके दुलारे बने हुए हैं। शायद पत्रकारों ने भी उन्‍हें प्रोजेक्‍ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज तक किसी ने भी उनसे प्रेस वार्ता नहीं की और न ही उनके रोड-शो और देखकर पढ़ने के प्रति प्रश्‍न किया। मुझे तो लगता है कि नौकरशाह और पत्रकार दोनों ही ऐसे नेताओं से प्रसंन्‍न रहते हैं क्‍योंकि तब असल में सत्ता में वे ही रहते हैं, जो अपने विचार भी प्रगट नहीं कर सकता भला वो देश को नेतृत्‍व कैसे दे सकता है? एक तरफ ओबामा है जिन्‍होंने अपने उदबोधन से ही सबको प्रभावित किया और अमेरिका में एक गुलाम को राष्‍ट्रपति बना दिया। काश यह देश भी बुद्धि की कीमत समझ पाता। तभी तो हमारी सेना युद्ध में जीत जाती है और टेबल पर हमारे नेता हार जाते हैं। पत्रकार भी चुनाव आते ही वही पुराने मुद्दे निकाल लेते हैं जिनसे भूलकर भी देश में प्रबुद्ध नेतृत्‍व जन्‍म न ले लें। बस नौकरशाहों और पत्रकारों की दुकानदारी चलनी चाहिए। जय हो।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

neharoo gaandi parivaar ne saath saalon me kya diya??? bhookh berojgaari garibi jansankhya me vriddhi bhrastachar hinduon ko doyam darje ka naagrik banaya.