Wednesday, November 4, 2009
और अपमानित न करें झारखंड को!
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री अपने पुराने दल भारतीय जनता पार्टी के कुछ 'मित्रों' को सबक सिखाना चाहते हैं तो सिखा दें। उनकी औकात बताना चाहते हैं, जरूर बताएं। कांग्रेस के साथ गठबंधन कर प्रदेश में सत्ता के भागीदार बनना चाहते हैं, कुछ गलत नहीं। केंद्र में मंत्री बनने की इच्छा रखते हैं, जरूर बनें। राजनीति के खिलाड़ी हैं, सो ऐसे खेलों पर किसी को आश्चर्य नहीं होगा। प्रेम और जंग की तरह राजनीति में भी अब सब कुछ जायज माना जाता है। बाबूलाल मरांडी ऐसे खेल खेलना चाहते हैं तो खेलें और खूब खेलें। किसी को आपत्ति नहीं होगी। हां! एक शर्त प्रदेश की झारखंडी जनता की ओर से है। वह यह कि वे महाराष्ट्र की तरह कांग्रेस के लिए राज ठाकरे और कभी पंजाब में अवतरित भिंडरावाले न बनें। आरंभ में कांग्रेस पोषित और बाद में भस्मासुर बने भिंडरावाले का हश्र इतिहास में दर्ज है। घोर उत्तर भारतीय और हिंदी विरोधी राज ठाकरे के अंतिम हश्र की प्रतीक्षा है। दशकों के संघर्ष के बाद झारखंड राज्य प्राप्त करने वाला प्रत्येक झारखंडी आज व्यथित है प्रदेश की लूट पर। मुझे याद है पृथक झारखंड राज्य के लिए आंदोलन के दिनों की। तब हम पूरे आत्मविश्वास के साथ पृथक राज्य के पक्ष मे तर्क दिया करते थे कि राज्य निर्माण के बाद झारखंड अपनी वन व खनिज संपदा के बल पर एक दिन देश का सर्वाधिक समृद्ध राज्य बन जाएगा। लेकिन राज्य निर्माण के बाद पिछले 10 वर्षों के इतिहास पर विलाप और सिर्फ विलाप करने को मजबूर हैं हम। चारों ओर लूट-खसोट का आलम रहा है। प्रदेश के विकास को बला-ए-ताक रख नेतागण व्यक्तिगत विकास की दौड़ में शामिल हो गए। लूटा जाता रहा यह प्रदेश। झारखंड के साथ ही गठित पड़ोसी छत्तीसगढ़ जहां विकास के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ रहा है, वहीं झारखंड इस बिंदु पर शर्म से मुंह छिपाता फिर रहा है। प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री होने के नाते बाबूलाल मरांडी भी प्रदेश के पिछड़ेपन के लिए, लूट-खसोट के लिए, अपमान के लिए अन्यों की तरह समान रूप से दोषी हैं। अपने कार्यकाल में उपलब्धियों की सूची मरांडी दे सकते हैं किंतु मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के लिए वे पार्टी नेतृत्व को दोषी नहीं ठहरा सकते। आसन्न विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लडऩे के लिए उनकी आलोचना नहीं हो सकती। समीक्षकों की आपत्ति इस बिंदु पर है कि वे अपने कुछ पुराने 'मित्रों' के साथ हिसाब चुकाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। ऐसे नकारात्मक सोच को समर्थन नहीं दिया जा सकता। राजनीति के इस मकडज़ाल में विकास अथवा प्रगति उलझकर सिसकने लगती है। अंतत: छला जाता है प्रदेश, छली जाती है जनता। प्रदेश को एक सशक्त नेतृत्व की जरूरत है। ऐसा नेतृत्व जो झारखंड प्रदेश की जनता के सपनों को पूरा कर सके। राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय जगत में मिल रहे अपमान से निजात दिला सके। पृथक झारखंड के लिए आंदोलन से जुड़ा हर झारखंडी ऐसे नेतृत्व की तलाश में है। चाहे वह कांग्रेस से आए अथवा भारतीय जनता पार्टी या झारखंड मुक्ति मोर्चा आदि से। झारखंडी दलगत पसंद-नापसंद से पृथक एक इमानदार झारखंडी नेतृत्व चाहते हैं। कांग्रेस से गलबहियां करनेवाले बाबूलाल मरांडी, कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय, भाजपा के अर्जुन मुंडा और झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबू सोरेन सहित सभी राजनेता इस आकांक्षा के साथ बलात्कार करने की कभी न सोचें।
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1 comment:
बहुत सटीक विनोद साहब , आपका लेख पढ़ कर बस इतना ही कहूंगा कि यह जो कोडा परकरण है इसमें २००५ में बीजेपी ने इसी आधार पर इनको टिकट देने से इनकार किया था कि यह पंचायत राज्य मंत्री के तौर पर भी घपले कर चुके थे ! मगर इसका नसीब देखो, अल्प,मत के कारण अर्जुन मुंडा ने इन्हें मुह्मांगा खान विभाग दे दिया और तभी से इनका भाग्य खुल गया ! इसने जो अंधी कमाई वहा से उठाई उसे २००६ में बीजेपी के विधायको को खरीदने में ही इस्तेमाल की !
आअज इसी विषय पर मैंने भी छोटा सा एक लेख अपने ब्लॉग पर लिखा है, आप पढ़ना चाहे तो पढ़ सकते है !
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