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Monday, November 23, 2009

राजनीति चमकाने की ऐसी होड़!

राजनीति को अनिश्चितताओं का एक गंदा खेल यूं ही नहीं कहा जाता है। अब देखिए! बाल ठाकरे, राज ठाकरे और संजय राउत के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई का आश्वासन देने वाले कम से कम एक मुद्दे पर ठाकरे एंड कंपनी के साथ खड़े दिखने लगे हैं। जी हां, संकीर्ण क्षेत्रीयता के नाम पर राजनीति चमकाने को उद्दत इन घोर अतिवादियों के साथ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल भी दौड़ में शामिल हो गए हैं। राजनीति के विद्रुप चेहरे के कारण ही लोगबाग इस 'पेशे' से घृणा करने लगे हैं। अच्छे लोग राजनीति में आने से कतराते हैं। इस वर्ग से जो आ गए हैं, निश्चय मानिये किसी न किसी मजबूरी के कारण। दिल से नहीं आते अच्छे लोग आज की राजनीति में। क्षेत्रीयता और भाषा को मुद्दा बनाकर लोगों को बरगलाने वाले ठाकरे बंधु राजनीतिक लाभ के लिए हिंसा का सहारा लेने से परहेज नहीं करते। अशिक्षा और बेरोजगारी का लाभ उठाकर ये लोग वोट बटोरने में माहिर होते हैं। मूल्य आधारित राजनीति को बला-ए-ताक रख लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदल ये जब चाहें डंडों का इस्तेमाल करने से नहीं चूकते। भय और दहशत भी इनके हथियार हैं। इनके कुकृत्य की आलोचना कर देख लें, सिर फोड़ दिया जाएगा, हाथ-पैर तोड़ दिए जाएंगे। मीडिया के साथ-साथ सत्ताधारी भी इन्हें 'गुंडा' निरूपित कर रहे हैं। फिर कांग्रेस के मुख्यमंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस के उपमुख्यमंत्री इनके 'फार्मूले' को क्यों अपना रहे हैं? राज ठाकरे ने बाम्बे स्टाक एक्सचेंज को धमकी दी कि वे अपने वेबसाइट मराठी में भी तैयार करें। एक्सचेंज के पदाधिकारी तुरंत तैयार भी हो गए। अब मीडिया में चाहे जितनी बहस हो जाए कि आखिर राज ठाकरे आदेश देने वाले कौन होते हैं, मराठी अस्मिता की रक्षा का श्रेय वे ले उड़े। यह देख ताबड़तोब मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने मांग कर डाली कि रेलवे भर्ती परीक्षाएं मराठी में भी हों। रेल मंत्री ममता बनर्जी ने हरी झंडी दिखा दी। श्रेय कांग्रेस की झोली में। भला राष्ट्रवादी कांगे्रस क्यों पीछे रहे? उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल ने मांग कर दी कि मुंबई-नागपुर दुरंतो ट्रेन का नामकरण क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के नाम पर किया जाए। खूब प्रचार मिला इन्हें। प्रचार की वही भूक जिसकी खातिर ठाकरे एंड कंपनी सड़क से लेकर विधान भवन के अंदर तक गुंडागर्दी पर उतर आई है। इन सभी की जड़ में प्रचार की भूख है। वही प्रचार जिसका तमगा लगा आज के राजनीतिक और राजदल सियासत का गंदा खेल खेल रहे हैं। पहले इस पर अंकुश लगे। पहल राजनेता तो करें ही, मीडिया भी आत्मचिंतन करे। राजनीति चमकाने की ऐसी होड़ से नुकसान राज्य का होता है, देश का होता है और लोकतंत्र का होता है।

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