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Sunday, November 29, 2009

कांग्रेस संस्कृति के शिकार नरसिंह राव!

यह असहनीय है। राजनीतिकों ने यह कैसे मान लिया कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है। बाबरी मस्जिद विध्वंस प्रकरण में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव पर प्रतिकूल टिप्पणियों से परेशान कांग्रेस ने अपने प्रवक्ता डा. शकील अहमद के मार्फत देश को यह बता दिया कि दंडस्वरूप कांग्रेस ने 1998 के लोकसभा चुनाव में राव को टिकट देने से इंकार कर दिया था। देश की राजनीति पर नजर रखने वाला कोई भी यह बता देगा कि तब राव को टिकट नहीं मिलने का असली कारण क्या था। दरअसल 1991 में कांग्रेस लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं कर पाई थी। सरकार को बचाए रखने के लिए प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के सदस्यों का समर्थन जुटा लिया था। कुख्यात सांसद रिश्वत कांड का जन्म उसी प्रयास में हुआ था। पूरे देश ने तब कांग्रेस और नरसिंह राव के नाम पर थू-थू किया था। 1998 में राव को टिकट नहीं दिए जाने का एक और कारण 10, जनपथ बना था। तब कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी थे। 1996 के चुनाव में कांग्रेस की पराजय का ठीकरा नरसिंह राव के सिर फोड़ डाला गया था। 5 वर्षों तक प्रधानमंत्री रहने वाले नरसिंह राव के कांग्रेस संगठन पर वर्चस्व को समाप्त करने का षड्यंत्र रचा गया। केसरी स्वयं उस षड्यंत्र को समझ नहीं पाए। उनसे यह ऐलान करा दिया गया था कि बाबरी मस्जिद की रक्षा में विफलता के कारण नरसिंह राव को टिकट नहीं दी गई। जबकि यह झूठ था। बाद में केसरी स्वयं 10, जनपथ के चापलूसों के शिकार बने। शकील अहमद यह बताना क्यों भूल गए कि 1991 में भी नरसिंह राव को टिकट नहीं दी गई थी। तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। जवाहरलाल नेहरू के बाद की कांग्रेस संस्कृति किसी विद्वान के प्रादुर्भाव को बर्दाश्त नहीं करती है। राव का विद्वान व्यक्तित्व ही उनकी मार्ग का रोड़ा बना। 21 मई जिस दिन राजीव गांधी की हत्या हुई, उस दिन नरसिंह राव नागपुर में ही थे। तब उस दिन दोपहर को करीब घंटे भर मेरी उनसे बातचीत हुई थी। बता दूं कि बातचीत के दौरान उन्होंने राजीव गांधी की जिन शब्दों में आलोचना-भत्र्सना की थी, तब वह मेरे लिए अकल्पनीय था। नेहरू परिवार के लिए उनके पास सिर्फ विष भरे शब्द थे। उसी दिन संध्या को जब उनकी हत्या की खबर पहुंची और उनके दिल्ली जाने के लिए विशेष विमान की व्यवस्था की गई, तब तक 'कांग्रेस की राजनीति' एक करवट ले चुकी थी। राव प्रधानमंत्री बना दिए गए। वह कौन सी मजबूरी थी, कौन सी राजनीति थी, जिसने चुनाव में पार्टी टिकट से वंचित कर दिए गए व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना डाला? शकील अहमद क्या इस जिज्ञासा को शांत कर पाएंगे? लिबरहान आयोग ने राव को दिन में सपने देखने वाला प्रधानमंत्री निरूपित किया है। शायद सच ही है। कांग्रेस संस्कृति नेहरू गांधी परिवार से बाहर के किसी नेता को स्वप्र देखने की इजाजत नहीं देती। शकील अहमद की विवशता मैं समझ सकता हूं। सन 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान बाबरी मस्जिद विध्वंस पर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने कहा था कि 'अगर उस समय नेहरू-गांधी परिवार का कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री होता तब बाबरी मस्जिद नहीं गिरती।' भला इस मंतव्य से पृथक शकील अहमद या कोई और कांग्रेसी प्रवक्ता बयान देता तो कैसे? वे कांग्रेस का बचाव करें, नरसिंह राव को लेकर सफाई दें लेकिन कृपा कर सच पर पर्दा डालने की कोशिश न करें।

1 comment:

जीत भार्गव said...

सटीक और शानदार विश्लेषण. हार्दिक साधुवाद. आपने सही कहा.. अब नरसिम्हा रावजी कहा स्वर्ग से उतरकर कोंग्रेस्सी नेता शकील अहमद के झूठ को बेनकाब करने आयेंगे??