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Sunday, May 23, 2010

क्या जेपी की संपूर्ण क्रांति बेमानी थी? - 2

संपूर्ण क्रांति तो समाज में आमूलचूल परिवर्तन का एक सर्वमान्य आंदोलन था। जी हां, सर्वमान्य। अंग्रेजी साप्ताहिक 'ब्लिट्जÓ के संपादक आर.के. करंजिया हमेशा से जयप्रकाश और उनके दर्शन के आलोचक रहे थे। लेकिन जब जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा बुलंद किया तब अपनी नीति के बिल्कुल खिलाफ जाकर करंजिया ने जेपी व उनके आंदोलन का समर्थन किया था। कोई आश्चर्य नहीं कि तब इंदिरा गांधी की कांग्रेस के युवा तुर्क चंद्रशेखर सहित अनेक वरिष्ठ नेताओं ने जयप्रकाश का साथ दिया था। तब देश के बच्चे-बच्चे की जुबान पर संपूर्ण क्रांति का नारा था। हर व्यक्ति तब देश में एक नई प्रभात की प्रतीक्षा करने लगा था। भ्रष्टाचार मुक्त शासन, वर्ग विहीन समाज, सभी के लिए समान पाठ्यक्रम- रोजगार आधारित शिक्षा नीति, सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के पक्ष में क्रांति का आगाज था जेपी आंदोलन। जयप्रकाशजी ने संपूर्ण क्रांति को स्पष्ट करते हुए बताया था कि सामाजिक क्रांति, आर्थिक क्रांति, राजनीतिक क्रांति, सांस्कृतिक क्रांति, वैचारिक अथवा बौद्धिक क्रांति, शैक्षणिक क्रांति और आध्यात्मिक क्रांति जैसी 7 क्रांतियां मिलकर संपूर्ण क्रांति होती है। आर्थिक क्रांति, समाज की आर्थिक रचना तथा आर्थिक संस्थाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन और उनका नया क्रांतिकृत रूप जेपी ने स्पष्ट किया था। क्रांति शब्द से परिवर्तन और नवनिर्माण दोनों ही अभिप्रेत हैं। उनसे पूछा गया था, कि परिवर्तनशील जगत में जब हर कुछ का नित नवीनीकरण होता रहता है तब क्रांति या क्रांतिकारी परिवर्तन से क्या अभिप्रेत है? जेपी ने जवाब दिया था कि क्रांति या क्रांतिकारी परिवर्तन बहुत शीघ्र गति से होता है। और परिवर्तन बड़ा दूरगामी और मूलगामी होता है- कभी-कभी ऐसा कि परिवर्तित वस्तु में गुणात्मक परिवर्तन हो जाता है। इन्हीं सब को लेकर जेपी ने देश में संपूर्ण क्रांति का स्वप्न देखा था। उनका उद्घोष था - 'संपूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है!Ó किंतु अंतत: हुआ क्या? जेपी का पल्लू पकड़ इंदिरा गांधी व कांग्रेस जैसी शक्तिशाली व्यक्ति व पार्टी को सत्ता से दूर फेंक कोई प्रधानमंत्री बना, कोई उपप्रधानमंत्री बना। सत्ता की वस्तुत: बंदरबाट हुई। जेपी के साथ विश्वासघात किया उनके अनुयायियों ने। देश की जनता को धोखा दिया जेपी के उन चेलों ने। सभी नारे-सभी वादे धरे के धरे रह गए। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां कि ''... सिंहासन खाली करो कि जनता आती हैÓÓ सफल तो हुईं किंतु इन शब्दों को बुलंद करने वालों ने कुछ ऐसा मुखौटा धारण किया कि उनकी पहचान भी गुम हो गई। अच्छा ही हुआ, चेहरे विद्रुप जो हो गए थे! संपूर्ण क्रांति को संपूर्ण प्रतिक्रांति ने लील लिया। जेपी को हाशिए पर रख जी-हुजूर, कायर, बुजदिल अंग्रिम पंक्ति में बैठ विहंसते दिखे। यही नहीं, व्यंग्यबाण छोड़े गए कि 'आसमान के सितारे तोडऩे चले थे, गिरे हैं अब जाकर नर्क में।Ó आहत जेपी ने फिर भी आशा नहीं छोड़ी थी। उनका जवाब था कि दुनिया में जो कुछ किया है, वह सितारें तोडऩे वालों ने ही किया है, भले ही उसके लिए उन्हें प्राणों का मूल्य चुकाना पड़ा है।
क्या आश्चर्य! जेपी को भी प्राणों का मूल्य चुकाना पड़ा! (जारी)

4 comments:

Satish Chandra Satyarthi said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया.
देखकर दुःख होता है कि जहां और ब्लोग्स की सड़ी गली अनर्गल पोस्ट्स पर सैंकडों टिप्पणियां पडी हैं वहीं ऐसे सामयिक और ज्वलंत लेखों पर विचार देने वालों की संख्या नगण्य है... इसे हिन्दी ब्लोगिंग के दुर्भाग्य के अलावा क्या कहा जा सकता है!

संजय पाराशर said...

aapke dwara JP pr likhi pahli aur dusri post padi.
purana SMS hai... sagar me fish ki nanhi bitiya maa se puchhti hai .. maa hm prathvi kyo nhi rah sakte... fish kahti hai bitiya hme jivanparyant yhi rahna hai..prathvi pr to selfish ki bhid hai...
JP aaye aur chle gaye... unhone apna jeevan nihswarth jiya..apna FarZ hai JP ko ab uchit samman pradan kre.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जेपी अपने मकसद में कामयाब हुये या नहीं, इनके चेलों ने तो खूब मलाई काटी इनके नाम पर..

PD said...

कई दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया हूँ, इस ब्लॉग का लिंक मिस हो गया था.. अब अपने गूगल रीडर से जोड़ लिया है इसे, अब नहीं छूटेगी कोई पोस्ट..

इत्मीनान से इस पोस्ट को और पुरानी पोस्ट को पढता हूँ. :)