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Sunday, May 30, 2010

भाजपा नेताओं का यह कैसा दीवानापन!

''तेरे दीवानों का कम होगा
अब ना दीवानापन
ऐ वतन, मेरे वतन,
अच्छे वतन, प्यारे वतन।''

कभी एजाज सिद्दीकी के इन शब्दों को अपने होंठों पर निरंतर सम्मान देने वाले भाजपा के कतिपय नेताओं को अब हो क्या गया है?अनुशासन के नाम पर या फिर तथाकथित छवि के नाम पर स्वनामधन्य नेता भले ही स्वीकार न करें किंतु यह सच चीख-चीख कर अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के अंत:पुर में खड़ी हर दीवार में साजिश की इबारत लिखी जा रही है! कभी अनुशासन और मूल्य आधारित राजनीति की प्रतीक के रूप में सुख्यात इस पार्टी के बुजुर्ग नेतागण स्वर्णिम 'दल-इतिहास' को तोड़ कलंक और साजिश का नया इतिहास लिखने पर उतारू हैं। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ सैद्धांतिक- वैचारिक मतभेद के कारण मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे भारतीय जनसंघ (अब भारतीय जनता पार्टी) की स्थापना करने वाले डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अब भला यह नेता याद क्यों करें? दूसरों से भिन्न पार्टी का दावा करते रहे इन नेताओं ने वस्तुत: उस कांग्रेस संस्कृति का वरण कर लिया है जिसकी आलोचना ये पानी पी-पी कर करते रहे हैं। फिर क्या आश्चर्य कि जिस भाजपा को देश की जनता ने कांग्रेस के विकल्प के रूप में सम्मान दिया उसी भाजपा के शीर्ष नेतागण आज भाजपा की मिट्टी पलीद करने पर आमादा हैं!
झारखंड की घटनाएं इसकी पुष्टि कर रही हैं। इन नेताओं के अहम्ï और निजी स्वार्थ ने ही भाजपा को आराम से चल रही राज्य सरकार से अलग होने पर मजबूर कर दिया। हां! झारखंड और भाजपा का सच यही है।
ज्यादा विस्तार में जाने की जरूरत नहीं! पूरे घटनाक्रम का लब्बो-लुबाब यह कि अपेक्षाकृत युवा, तेज तर्रार, सांगठनिक क्षमता के धनि, दूरदृष्टिधारक, कर्मठ, नितिन गडकरी को ये नेता पार्टी के सफल अध्यक्ष के रूप में स्थापित नहीं होने देना चाहते। पूरे घटना विकास क्रम को अत्यंत निकट से देखने के पश्चात मैं इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं। झारखंड में इन लोगों ने पार्टी को सिर्फ सत्ता से ही अलग नहीं किया, प्रदेश में पार्टी को आम जनता की नजरों में गिरा डाला। इतना कि अगले चुनाव में पार्टी को सीटों की संख्या के लिए नहीं बल्कि अपने अस्तित्व की रक्षा की लड़ाई लडऩी होगी। और यह सब किया गया पार्टी अध्यक्ष गडकरी की छवि को धूमिल करने के लिए। यह भूलकर कि उनका यह षडय़ंत्र अंतत: पूरी पार्टी अर्थात्ï उनके लिए भी आत्मघाती सिद्ध होगा। सभी को साथ लेकर चलने की उदार गडकरी नीति को इन लोगों ने गडकरी की कमजोरी मान लिया। सो षडय़ंत्र रचे गए गडकरी को नीचा दिखाने के लिए। गडकरी को ये क्या रिपोर्ट देते हैं, इसकी जानकारी तो नहीं, आम जनता में फैल रहे संदेश की जानकारी है। संदेश यह फैला है कि, कथित बड़े नेता पार्टी के अस्तित्व की कीमत पर ही सही अध्यक्ष के रूप में गडकरी को सफल होते देखना नहीं चाहते। इसी वर्ष झारखंड के पड़ोसी बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा वहां जद (यू) के साथ गठबंधन सरकार में शामिल है। अगर झारखंड के 'कलंक' को धोया नहीं गया, तब शायद भाजपा को वहां वर्तमान विधायकों की संख्या को बचाए रखना मुश्किल होगा। चुनावी पंडितों की मानें तो वर्तमान के 55 में से अधिकांश सीटों पर उसे नुकसान का मुंह देखना होगा। जातिरोग से पीडि़त बिहार का वर्तमान राजनीतिक सच अत्यंत ही कड़वा है। जद (यू) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मौके की तलाश में हैं। भाजपा में प्रदेश स्तर पर परस्पर विरोधी अनेक गुट सक्रिय हैं। भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय नेतृत्व के वफादार वहां भी गडकरी की छवि को धूमिल करने की दिशा में प्रयत्नशील हैं। अगर चुनाव परिणाम पार्टी की अपेक्षा के प्रतिकूल गया तब षडय़ंत्रकारी गडकरी के खिलाफ मुखर हो उठेंगे। इन संभावनाओं के बीच यक्षप्रश्न यह कि क्या नितिन गडकरी यह सब कुछ घटित होते देखते रहेंगे? पूरे मामले का सुखद पहलू यह अवश्य है कि षडय़ंत्रकारी नेताओं से अलग पार्टी कार्यकर्ता नये अध्यक्ष नितिन गडकरी के साथ हैं। फिर क्यों नहीं गडकरी कार्यकर्ताओं की विशाल फौज की कमान सीधे अपने हाथ में ले लेते? नेताओं के तुष्टीकरण का प्रयास अब वे छोड़ दें। कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद स्थापित करें। नेतृत्व करें उनका! उनका मनोबल बढ़ाएं। इंदौर सम्मेलन में दिये गये अपने उद्बोधन को याद करें। कार्यकर्ताओं का उत्साह हिलोरें मारने लगेगा। और तब साजिश की दीवारें स्वत: ध्वस्त हो जाएंगी।

5 comments:

Aashu said...

सिर्फ एक सवाल विनोद जी। आपको क्या लगता है कि एक हत्या के लिए उम्र कैद पाए हुए एक व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनकर सरकार बनाने के लिए समर्थन देने के फैसले से गडकरी की छवि धूमिल नहीं हुई?

मिलकर रहिए said...

मेरे नए ब्‍लोग पर मेरी नई कविता शरीर के उभार पर तेरी आंख http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html और पोस्‍ट पर दीजिए सर, अपनी प्रतिक्रिया।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

aap jo kahen lekin BJP kee yah bewqoofi ( diwangee nahee) mujhe shuru se pasand nahee aai ki unhone shibu soren jaise nihaayat... se samjhautaa kiyaa.

एस.एन. विनोद ! said...

भाई आशु जी,
तकनीकी और कानून की दृष्टि से आपका सवाल गलत है। हत्या के आरोप से शिबू सोरेन उच्च न्यायालय द्वारा बरी किए जा चुके हैं। जहां तक उनके साथ सरकार बनाने का सवाल है यह मालूम किया जाना चाहिए कि निर्णय गडकरी का था या फिर उन नेताओं का जो झारखंड के लूट में शामिल हैं। मैंने चर्चा ही इस बात की छेड़ी है कि गडकरी अब स्वयं निर्णय लेना शुरु करें।

एस.एन. विनोद ! said...

पलक जी,
नि:संदेह आपका प्रयास प्रशंसनीय है। किंतु कविता का अंत इसके निहितार्थ पर संदेह प्रकट करता है। आपके पास कल्पना है, शब्द हैं, प्रस्तुति की कला है, रचनात्मकता है। शब्दों की माला पिरोती रहें, संपुष्टता आ जाएगी। शुभकामनाएं!