पूरे देश को ठेंगे पर रखने की सत्तापक्ष की कवायद के क्या कहने! मामला चाहे आपातकाल की ज्यादतियों के लिए संजय गांधी को दोषी ठहराने का हो, बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव को कटघरे में खड़ा करने का हो, बोफोर्स कांड के अभियुक्त क्वात्रोकी को बाइज्जत बरी करवाने का हो, भोपाल महात्रासदी के अभियुक्त एंडरसन को देश से पलायन करवा देने का हो, 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में प्रधानमंत्री को पाक साफ निरूपित किये जाने का हो या फिर राष्ट्रमंडल खेलों और मुंबई के आदर्श घोटाले में अशोक चव्हाण की बलि लेने का हो। सत्तापक्ष चतुराई के साथ सांप-सीढ़ी का खेल खेलता हुआ स्वयं को बचाता रहा। ताजा मामला तो और भी दिलचस्प है।
रोचक है 'दिग्विजय-पुराण' में जुड़ा नया अध्याय। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अपने जादू के पिटारे से भारत संचार निगम के टेलीफोन का वह विवरण निकाल लाए जो पहले आधिकारिक तौर पर, जी हां आधिकारिक तौर पर, उपलब्ध नहीं था। किसी और ने नहीं स्वयं दिग्विजय ने कहा था कि निगम 'फोन कॉल्स' का एक साल से अधिक का रिकार्ड नहीं रखता। फिर अब वे इसका विवरण कहां से और कैसे ले आए? इस विवरण के आधार पर दिग्विजय अपने उस दावे की पुष्टि कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि 26/11 की घटना के कुछ घंटों पूर्व शहीद पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे ने उन्हें फोन पर बताया था कि देश के हिंदू संगठन उन्हें जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। जाहिर है दिग्विजय के बयान पर राजनीतिक बवंडर पैदा हुआ और स्वयं कांग्रेस पार्टी ने उनसे इस मुद्दे पर किनारा कर लिया। करकरे की पत्नी के खंडन के बाद दिग्विजय बचाव की मुद्रा में आ गये थे। स्वयं महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने विधानसभा में बयान दे डाला था कि दिग्विजय के साथ करकरे की बातचीत का कोई रिकार्ड सरकार के पास नहीं है। दिग्विजय पर आरोप लगा कि वे झूठ बोल रहे हैं, जानबूझकर देश का ध्यान बंटाने के लिए हिंदू संगठनों को निशाने पर ले रहे हैं। भगवा आतंकवाद का शिगूफा छोड़ दिग्विजय देश का ध्यान बंटा रहे हैं। अब टेलीफोन के दस्तावेज को लहराते हुए दिग्विजय उन लोगों से माफी मांगने को कह रहे हैं, जिन्होंने उन्हें झूठा करार दिया था। लेकिन दिग्विजय इस शाश्वत सत्य को नजरअंदाज कर गये कि झूठ का छुुपाने का चाहे जितना प्रयत्न किया जाए, वह बेनकाब हो ही जाता है। इस मामले में ऐसा ही हो रहा है। लोगों को यह अच्छी तरह याद है कि दिग्विजय ने स्वयं कहा था कि उन्होंने अपने फोन से करकरे को फोन किया था। बाद में पलटते हुए कहा था कि फोन शहीद करकरे ने उन्हें किया था। अब जो दस्तावेज वे सार्वजनिक कर रहे हैं उसका कमाल देखें। इसके अनुसार दिग्विजय के बीएसएनएल फोन नम्बर 09425015461 पर 26 नवम्बर 2008 को मुंबई पुलिस एटीएस के लैंडलाइन नम्बर 022-23087336 से फोन आया था। गौर करें, एटीएस के जिस लैंडलाइन नम्बर से दिग्विजय के नम्बर पर फोन किया गया, वह करकरे का सीधा नम्बर नहीं था। वह एटीएस कार्यालय का नम्बर है। क्या दिग्विजय यह प्रमाणित कर सकते हैं कि उस नम्बर से करकरे ने ही उनसे बात की थी? यह संदिग्ध है। सवाल यह भी कि एटीएस प्रमुख करकरे को अगर अपनी जान पर खतरा नजर आ रहा था तो उन्होंने इसकी जानकारी अपने प्रदेश महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री या फिर प्रधानमंत्री को न देकर कांग्रेस पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह को क्यों दी? करकरे न तो दिग्विजय के मित्र थे और न ही दिग्विजय के हाथों में कोई ऐसी एजेंसी थी जो करकरे के लिए सुरक्षा मुहैया करवा सकती थी। बल्कि अब जांच इस बात की हो कि दिग्विजय सिंह के फोन पर मुंबई पुलिस एटीएस के नम्बर से किसने फोन किया। एटीएस कार्यालय से दिग्विजय से संपर्क करने वाला व्यक्ति कौन था? 26/11 के हमले के कुछ घंटों पूर्व दिग्विजय से संपर्क क्यों साधा गया? चूंकि 26/11 का मुंबई पर हमला 2001 में संसद पर हमले के बाद सबसे बड़ा आतंकवादी हमला था, दिग्विजय सिंह और मुंबई एटीएस कार्यालय के बीच हुई बातचीत के ब्यौरे की जानकारी जरूरी है। हाल के दिनों में दिग्विजय सिंह देश में हिंदू और मुसलमान के बीच न केवल खाई पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि हिंदू संगठनों को निशाने पर लेकर हिंदू आतंकवाद के नये जुमले को प्रचारित-प्रसारित भी कर रहे हैं। अत्यंत ही पीड़ा के साथ ऐसी टिप्पणी करने को मैं मजबूर हूं कि दिग्विजय नारायण सिंह की ये हरकतें राष्ट्र विरोधी हरकतों की श्रेणी की हैं। दिग्विजय इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहे, यह आश्चर्यजनक है। अगर वे हाल के दिनों में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कांग्रेस सरकार की ओर से जनता का ध्यान बंटाना चाहते हैं तो क्षमा करेेंगे, यह हरकतें बचकानी हैं। चूंकि दिग्विजय कोई बच्चे नहीं हैं, लगता है जाने-अनजाने वे किसी बड़ी साजिश के मोहरे बन गये हैं। बेहतर हो दिग्विजय शांति से इस पर चिंतन-मनन करें और स्वयं के तथा देश हित में धर्म संप्रदाय के नाम पर राजनीति की तलवार से समाज को बांटने की कोशिश न करें।
3 comments:
अभी कुछ देर पहले ही मैंने एक ब्लाग पर यह टिप्पणी दी थी.
आप किसी के आफिस में फोन करें तो अव्वल यह नहीं सिद्ध होता कि आपकी उससे बात हुई या नहीं. किसी और से भी हो सकती है. और होल्ड पर भी फोन रखा जा सकता है. दूसरा यह कि क्या बात हुई इसे बताने करकरे तो वापस आ नहीं सकते. इसलिये राजनीतिक रोटियां सेंकने में क्या हर्ज है..
इस मामले की गंभीर जांच होना चाहिये.
आप से पूर्णतया सहमत
ये दिग्विजय सिंह जब भी बोलता है तो देश को तोड़ने और झूठ को सच बताने की ही कोसिस करता है
आप जाँच किससे करवा रहे है, जाँच कौन करेगा ? नक्कार खाने में तूती की आवाज
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