Saturday, January 15, 2011
काले धन के ये काले संरक्षक!
एक सीधा सवाल देश के हुक्मरानों से! कहां गई उनकी बहुप्रचारित शासन में पारदर्शिता? कथित रूप से पारदर्शिता लाने का श्रेय लेने वाली भारत सरकार जवाब दे कि जब चोर सामने हैं, उनके नाम-पता की पूरी जानकारी उन्हें है, तब फिर उनके पैर-हाथ में हथकडिय़ां क्यों नहीं डाली जा रहीं? उन्हें कटघरे में खड़ा क्यों नहीं किया जा रहा? अगर सचमुच हमारी एक लोकतांत्रिक सरकार है, पारदर्शी सरकार है तब निश्चय ही देश की जनता को इन चोरों के नाम-पते जानने का हक प्राप्त है। भारत सरकार इस अधिकार से जनता को वंचित क्यों कर रही है? देश को विश्वास में क्यों नहीं लिया जा रहा है? हमें जवाब चाहिए। विदेशी बैंकों में कालाधन रखने वाले भारतीयों के खिलाफ कार्रवाई और वैसे धन की भारत वापसी संबंधी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और फिर देश की जनता यह जानकर हतप्रभ रह गई कि कम से कम जर्मन सरकार वहां की बैंकों में काले धन जमा करवाने वाले भारतीयों की सूची तो भारत सरकार को उपलब्ध करा चुकी है, किन्तु सरकार किन्हीं कारणों से उसे सार्वजनिक नहीं कर रही है। क्या यह पारदर्शिता के सिद्धांत के अनुरूप है? कदापि नहीं। स्वयं सुप्रीम कोर्ट हैरान है कि नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किए जा रहे हैं। उनके नाम सार्वजनिक कर दिए जाने चाहिए। बावजूद इसके भारत सरकार हिचक रही है। उसका कहना है कि जर्मनी के साथ एक संधि के तहत वे उन नामों को सार्वजनिक नहीं कर सकते। सरकार की इस दलील को देश स्वीकार नहीं करेगा। यह कैसी संधि जो अपने देश के पैसे को कालाधन बना विदेशी बैंकों में जमा करवाने वालों को संरक्षण प्रदान करे! यह तो न केवल ऐसे काले धन धारकों का बचाव है बल्कि देश के साथ विश्वासघात भी है। देश के कानून के साथ धोखा भी है यह। पूरी की पूरी न्याय प्रक्रिया को ठेंगा दिखा भारत सरकार इन चोरों को बेनकाब करने से आखिर क्यों हिचकिचा रही है? लगभग 20 लाख करोड़ रुपए को काला धन बना विदेश भेज देने वाले लोग देशद्रोही ही तो हैं। काले धन से समानान्तर अर्थव्यवस्था का संचालन करने वाले ऐसे 'कालिए' ही देश की चरमराती अर्थव्यवस्था के जिम्मेदार हैं। ध्यान रहे, यह मामला केवल टैक्स चोरी का नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को चूर-चूर करने का षड्यंत्र है। यह एक ऐसा गंभीर विषय है जिसका दायरा व्यापक है। फिर इन्हें दंडित किए जाने की जगह सरकार संरक्षण प्रदान क्यों कर रही है? देश के अर्थशाी प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह इस मामले की गंभीरता व दुष्परिणाम से अनजान नहीं हो सकते। चूंकि विदेशी बैंकों में भारतीय खाताधारकों के नाम सरकार को मिल गए हैं, अविलंब मामले दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया जाए। कुछ दिनों पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से आश्वासन दिया गया था कि काले धन के राज से पर्दा उठा कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। लेकिन विगत कल शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने जिस प्रकार खाताधारकों को संरक्षण प्रदान करने की कोशिश की, उससे निराशा हुई है। फिर भी सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से ऐसी आशा बंधी है कि अंतत: सरकार झुकेगी और काले धन के पोषकों के चेहरों से नकाब उतर जाएंगे। अगर सरकार सचमुच देश की सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के पक्ष में विदेशों में जमा काले धन को वापस भारत लाने में सफल रहती है, खाताधारकों को दंडित करती है तब वह देश हित में अपनी अच्छी नीयत को रेखांकित करेगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो शासक वर्ग यह हृदयस्थ कर ले कि देश की जनता वैसे अपराधियों के साथ-साथ उन्हें संरक्षण प्रदान करने वाली सरकार को दंडित करने में भी सक्षम है।
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1 comment:
धन यदि उन का होगा जो सत्ता चलाने में, बनाने में मदद करते हैं तो खुलासा कैसे होगा..
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