Saturday, January 22, 2011
जिसके पास 'बोफोर्स' वही राजा, वही रानी!
पूरे संसार के काले धन अर्थात बेईमानी के धन को अपने यहां सहेजकर रखनेवाला स्वीटजरलैंड धरती के स्वर्ग के रुप में विख्यात है। फिर इस कहावत पर चकित क्या होना कि बेईमानी का धन रखनेवाले ही फलते-फूलते हैं। ईमानदार पसीना बहाते रहें, खून सुखाते रहें, समाज में वे दीन-हीन ही बने रहते हैं। ईमानदार के रूप में कोई अगर चर्चित हुआ, तो पीठ पीछे उसे मूर्ख या विदूषक निरुपित करनेवालों की संख्या गिनी नहीं जा सकती। इस विलाप को किसी ओर ने नहीं स्वयं हमारे महान देश के ईमानदार अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आंमत्रित किया है। एक अनुमान के अनुसार लगभग 21 लाख हजार करोड़ रुपए काले धन के रुप में हमारे देश के कुछ महान लोगों ने विदेशी बैंकों में जमा करवा रखे हैं। इस धन को भारत वापस लाने और जमाकर्ताओं पर कार्रवाई करने की मांग संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी से बेचैन केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में चर्चा हुई। कुछ मंत्रियों की जिज्ञासा पर सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामा के अनुरुप ही प्रधानमंत्री ने दो-टूक शब्दों में कह डाला कि सरकार के पास काले धन जमा करानेवालों के नाम तो उपलब्ध हैं किंतु वे बतायेंगे नहीं। दलील वही पुरानी कि खातों के बारे में जानकारी बाहरी सरकारों ने इसी शर्त पर उपलब्ध कराई है कि उनके नाम सार्वजनिक नहीं किए जायेंगे। अगर उन नामों का खुलासा कर दिया तब भविष्य में विदेश की कोई सरकार हमें ऐसी जानकारी नहीं देगी। हां, सरकार इन लोगों से टैक्स अवश्य वसूलेगी। सरकार की ओर से बार-बार दिए जा रहे तर्क को स्वीकार करने को देश तैयार नहीं। भारत सरकार का रवैया बिल्कुल हास्यास्पद है, बल्कि देशहित के खिलाफ है। विदेशी बैंको में जमा काले धन को टैक्स चोरी के रुप में लेकर भारत सरकार आखिर क्या संदेश देना चाहती है। कहीं यह तो नहीं कि चोरी-डकैती करते रहो, सिर्फ टैक्स भर दो, अपराध माफ !!! यह तो चोरी-डकैती रोकने की जगह उसे बढ़ावा देना हुआ। काले धन को जप्त करने, खाताधारकों को जेल भेजने की जगह उनसे टैक्स मात्र वसूल करने की बात करनेवाली सरकार देश की अर्थव्यवस्था को चौपट नहीं कर रही? जिस कथित संधि की आड़ में सरकार देश को लुटनेवालों का बचाव कर रही है, उस संधि को तोड़ क्यों नहीं दिया जाता? विदेशी बैंक कालाधन जमा करनेवालों की गोपनीयता संबंधी शर्त तब स्वत: तोड़ देंगे, और तब भारत सरकार विदेशी बंैकों को वहां की सरकारों के माध्यम से कह सकती है कि वे भारतीयों के खाते या तो न खोलें या भारत सरकार की पूर्वानुमति ले लें। पारदर्शिता की ऐसी अवस्था में राष्ट्रीय संपत्ति को लूटनेवाले विदेशी बैंकों का सहारा ले ही नहीं पायेंगे। भारत के उपर विदेशी कर्ज से लगभग 13 गुना अधिक विदेशी बैंको में जमा भारतीय काला धन क्या इस बात का आग्रही नहीं कि उसे तत्काल भारत वापस लाया जाए? इस प्रक्रिया में किसी भी तकनीकी अड़चन या संधि को सरकार स्वीकार न करें। बकौल सुप्रीम कोर्ट जब यह विशाल धनराशि राष्ट्रिय संपत्ति है, जिसे लुटा गया है, तब सभी कथित बंधनों को तोड़ यह धन भारत वापस लाया ही जाना चाहिए। भारत सरकार जिस प्रकार काले धन के अपराधियों का बचाव कर रही है उससे अनेक गलत संदेश समाज में जा रहे हैं। पूरे देश में चर्चा गरम है कि विदेशों में जमा काला धन किसी और के नहीं बल्कि राजनीतिक दलों एवं सत्ता से जुड़े बड़े-बड़े नेताओं, नौकरशाहो और बड़े व्यापारियों का है। लोग तो अब खुलकर यह भी कहने लगे हैं कि देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार सहित विपक्ष के भी बड़े नेताओं ने विदेशों में कालेधन जमा करा रखे हैं। ऐसी अवस्था में देश सचाई जानना चाहेगा। सत्ता-शासन की कमान संभाल रहे लोग लोकप्रतिनिधि हैं, कोई राजा या रानी नहीं। वे सभी लोक अर्थात जनता के प्रति जिम्मेदार हैं। फिर जनता को अंधकार में क्यों रखा जा रहा है? यह सरकार की ढुलमुल व रहस्य पूर्ण आचरण ही है कि लोग-बाग अब यह मान बैठे हैं कि जिसके पास जितना बड़ा 'बोफोर्स', वही राजा और वही रानी! क्या प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह इस मंतव्य पर सरकारी मुहर लगाना चाहेंगे? देश को जवाब चाहिए।
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1 comment:
चोरी-डकैती करते रहो, सिर्फ टैक्स भर दो, अपराध माफ !!! यह तो चोरी-डकैती रोकने की जगह उसे बढ़ावा देना हुआ।
यही सही है...
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